तुम टूटी हुई आई थी मेरे पास
अपनी टूटन को छिपाती हुई.
एक दिन तुम्हारे एक टुकड़े में कहीं दर्द हुआ और तुमने कुछ घाव मुझे दिखाए.
कुछ मरहम थे मेरे पास. छोटी-छोटी गोलियां. हरी नीली लाल पीली.
चिंदियां थीं कुछ, जिन्हें मैं पट्टी की तरह बांध देता था घाव पर.
अपनी आत्मा का हर दराज़ टटोला मैंने
बहुत सारा प्यार था. बहुत सारी हंसी. शरारतें थीं जाड़ों की रज़ाइयों जैसी. हमारी गुदगुदियों से उचक लहर-लहर जाती.
मैंने ज़मीन पर बिछा दिया अपने भीतर का सारा जल
और तुमसे कहा-
ऐसे ही खिलो इस पर, जैसे खिलती है कुमुदिनी पोखर पर.
मैं होंठों का यात्री. अपने होंठों से तुम्हारी देह पर चलता रहा.
बरसों से बंद तुम्हारे मन के दरवाज़ों पर रोग़न किया मैंने क़ब्ज़ों में लगी ज़ंग को होंठों से पोंछ दिया
सकुचाई तुम्हारी आत्मा के लिए नई-नई झालरें सिलीं टांक दिया उन्हें पंखों की जगह
यह क्षण की यात्रा थी सदियों पुराने दीर्घ उस क्षण की जो अभी तक बीत न सका
राह में आने वाले घावों को, टूटन को, खुरचन को, तिड़कन को, दरारों को अपने होंठों से सहलाता रहा मैं.
हर सहलाहट बनी तुम्हारे होंठों की मुस्कराहट.
तुम बिखरी हुई आई थी.
मैंने तुम्हें रूप दिया.
बदले में तुमने मुझे तोड़ दिया.
बार-बार कहा मैंने कि देखो, मैं टूट रहा
तुम मानती रही इस बात को
ऐसा कुछ भी नहीं किया फिर भी कि मैं जुड़ सकूं ज़रा भी
मुझ पर करती ही रही घनहथौड़ों से प्रहार
इतने कि हाथ में छाले पड़ गए तुम्हारे.
जब चूर-चूर हो जाऊं
मुझे उबटन बना लेना
उसका लेप लगा लेना
अपने हाथ के छालों पर.
10 comments:
behad khuubsurat
hain sabse madhur ve geet jinhe hum dard ke sur mein gate hain.geet ke dardbhari kavitayen sach ein marmsparshi aur bahut hi gahrayi wali hoti hain.prem ki anubhuti aksar dukh mein sath dene par hi tivr hoti hai.prem se dukh bant jata hai magar bad mein vahi aur bhi bade dukh ka karan bhi ban jata hai.atyant sanvedansheel kavita.
यह क्षण की यात्रा थी सदियों पुराने दीर्घ उस क्षण की जो अभी तक बीत न सका... prem aisa hi hota hai... bahut bhavpoorn rachna ke liye badhai..
मैंने तुम्हें रूप दिया.
बदले में तुमने मुझे तोड़ दिया.
जाने क्या से क्या हुआ.....
बेहतरीन... अद्बुद ..... एक अनोखा रंग.
आह ! लोग गलत कहते हैं कि कलेजा चीर कर नहीं दिखाया जा सकता। बड़ी खूबसूरती से ....
इतना बड़ा दिल.......! गीत जी, क्या ये महज़ शब्द हैं ?
Painting bhi hai, Ajey bhai. :-)
सुंदर
तुम बिखरी हुई आई थी.
मैंने तुम्हें रूप दिया.
बदले में तुमने मुझे तोड़ दिया.
बार-बार कहा मैंने कि देखो, मैं टूट रहा
तुम मानती रही इस बात को
ऐसा कुछ भी नहीं किया फिर भी कि मैं जुड़ सकूं ज़रा भी... Kuch Pighalta hai andar ye panktiyan padhte huye...waah!!
तुम बिखरी हुई आई थी.
मैंने तुम्हें रूप दिया.
बदले में तुमने मुझे तोड़ दिया.
बार-बार कहा मैंने कि देखो, मैं टूट रहा
तुम मानती रही इस बात को
ऐसा कुछ भी नहीं किया फिर भी कि मैं जुड़ सकूं ज़रा भी... Bheetar tak pighalta huaa dard mahsoos karati kavita hai Sir ji
Post a Comment