tag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post1590418966050172289..comments2023-08-07T20:16:34.743+05:30Comments on वैतागवाड़ी: समकोण : एक नई कविताGeet Chaturvedihttp://www.blogger.com/profile/14811288029092583963noreply@blogger.comBlogger12125tag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-31440423689183812842012-01-31T13:00:03.091+05:302012-01-31T13:00:03.091+05:30i am unable to express the happiness i felt after ...i am unable to express the happiness i felt after reading this..so just a small token of appreciation<br /><br />पलकों के किनारे छुपी ख्वाबों की कत्पुतली,<br />हिजाब-ए-सूफी ओढ़े चलीं तसव्वरी की सेर पे,<br />बंद हथेलियों में जकड़े हुए घाफिल का सच,<br />आवारा फिरता में हो कर खुद से मारूफ़...Saumya Sharmahttps://www.blogger.com/profile/13883179207924815969noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-38825424952549136152011-11-25T18:22:04.996+05:302011-11-25T18:22:04.996+05:30Ohhh kitni hi alag aur kitni hi jaani jaani si kav...Ohhh kitni hi alag aur kitni hi jaani jaani si kavita h.. jaise mann ise gun raha tha aur aankho ne aaj paaya to mann ne sun bhi lia.. behad sundar :)monalihttps://www.blogger.com/profile/00644599427657644560noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-86546774702496974692011-10-28T19:56:19.187+05:302011-10-28T19:56:19.187+05:30अनूठी अभिव्यक्ति!अनूठी अभिव्यक्ति!अनुपमा पाठकhttps://www.blogger.com/profile/09963916203008376590noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-89265441747404472732011-10-05T12:06:14.328+05:302011-10-05T12:06:14.328+05:30अबोध दिवसों में ही क्यों होता है आनंद का अतुल्य ...अबोध दिवसों में ही क्यों होता है आनंद का अतुल्य खुशी का भंडार...<br /><br />कुछ तो है जो बिन बताये अब भी ईश्वर की मुट्ठी में है ....हे मानव तेरी साइंस से परे !!!!!डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-10968562846096175172011-10-04T19:02:10.193+05:302011-10-04T19:02:10.193+05:30निःशब्द .....निःशब्द .....वंदना शुक्लाhttps://www.blogger.com/profile/16964614850887573213noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-72221146535466537012011-10-03T12:31:03.875+05:302011-10-03T12:31:03.875+05:30इक दिन तुमने मुझे ढूंढा ताकि मैं लापता हो जाऊं | व...इक दिन तुमने मुझे ढूंढा ताकि मैं लापता हो जाऊं | वाह क्या बात है | कितनी सुन्दर और गहरी बात | किसी को हम ताउम्र या तो इसलिए खोजते फिरते है की हम उसमे कहीं खो जाये | या फिर वो हममे लापता हो जाये | किसी में गुम हो जाना इक अलौकिक अनुभूति है | हमेशा के लिए गुम हो जाना बहुत बड़ी बात है | कुछ क्षण के लिए ही गुम हो जाए ये भी कोई छोटी बात नहीं | <br />कैसे कोई हमारे अन्दर लापता होजाता है| इक बार आते हुए तो उसे देखा था | फिर वो कभी दिखाई नहीं दिया | शायद वो भीतर जाकर कहीं गुम हो गया है मुझमे | या कहीं ऐसा तो नहीं की हम उसमे जाकर लापता हो गए हो ? -बड़े गहरे अर्थ है साहब फिर कभी --...........<br />हाँ बातों के सिरे जरुर छोड़े जा सकते है | की जिसे पकड़ कर आप अर्थों तक पहुँच जाये | अबोध दिवसों में क्यों होता है आनन्द अतुल्य .....कितना मासूम सा प्रश्न ? और उतना ही जटिल उत्तर जो कोई देता ही नहीं | जानता ही नहीं | अबोध दिवसों में आनन्द है , लेकिन जैसे ही बोध होता है | सब गायब ...कागज पर लिखा --जान चुका ---बहुत सुन्दर बात और आईने में देखा चुक जाना --बहुत बहुत बहुत ही गहरी बात | गीत जी अबकी बार मैं कागज पर लिखुगी चुक जाना --फिर आईने में देखुगी क्या प्रतिबिम्ब बनता है | बहुत सुन्दर बात आपकी |mamta vyas bhopalnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-62390690198902853932011-10-03T10:36:33.432+05:302011-10-03T10:36:33.432+05:30वर:मिहिर ने जिस सितारे से प्रेम किया था, किंतु जिस...वर:मिहिर ने जिस सितारे से प्रेम किया था, किंतु जिसके लिए वह सटीक नाम न खोज पाया था, वह सितारा क्या आसमान में अज्ञात लिपियों की तरह अंकित सितारों का सहोदर है? ('जाना सुना मेरा जाना')<br /><br />अवलंब का समकोण आलंबित के ऋजुत्व से प्रेम करता है या उसे कीलित करता है? या प्रेम का अर्थ ही है कीलित होना, कीलित करना?<br /><br />जिसे ईश्वर ने पुरुष की एक पसली से बनाया, उसके अस्थियों के स्मतिपुष्प बन जाने की आकांक्षा उसके प्रतिक्रमण की आकांक्षा है या उसके अभिशाप की आवत्ति?<br /><br />वेग की धुरी कहां है? वेग का विपर्यय क्या?<br /><br />विसर्जन विखंडन है तो सर्जना का सत्य क्या?<br /><br />अबोध और आनंद सहचर क्यों हैं? वेदना का अर्थ बोध भी क्यों होता है और संताप भी क्यों?<br /><br />जानना अगर चुक जाना है तो कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारा अक्षयत्व विस्मरण के एक व्यापक देश में निर्वासित है?<br /><br />सुशोभितSushobhit Saktawathttps://www.blogger.com/profile/08781190787140508251noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-13299895971490084862011-10-03T04:24:58.725+05:302011-10-03T04:24:58.725+05:30प्रेम की अनूठी अभिव्यक्ति जिसमें प्रेमिका के साथ अ...प्रेम की अनूठी अभिव्यक्ति जिसमें प्रेमिका के साथ अनंत काल तक जुड़े रहने की अभिलाषा है. ऐतिहासिक और पौराणिक सन्दर्भों का अवलंब लेकर मृत्यु के पश्चात भी अनुपस्थित जीवन में बचे रहने की कामना गयी है जो वेग को इंगित करते हैं.मोत्सार्ट की सिंफनी,आइंस्टीन की खोज और शिव की तरह गंगा को थामने ,रोपने और धार के पौधे की तरह अपने मस्तक पर उगाने के सर्वथा मौलिक बिम्ब कविता को नई दिशा और गति प्रदान करते हैं. वस्तुतः अबोधपन,कच्चापण और अभेद्य आकर्षण ही सच्चा प्रेम है.सोचने समझने पर ज्यादा जोर देने से भावों की बहती नदी में रूकावट आ जाती है.यह भ्रम क्यों पला जाए कि हमने सब जान लिया है .व्यक्ति हो या ज्ञान - इतने जटिल हैं कि उनके बहुत कम अंश तक हम पहुँच पाते हैं. पहेली के बाद पहेलियों की गुंजलक में उलझे रहना ही जिजीविषा को बनाये रखता है.और प्रेम का विश्लेषण तो किया ही नहीं जा सकता है,उसमें डूबना ही सब कुछ है.sarita sharmahttps://www.blogger.com/profile/03668592277450161035noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-49257506589790231922011-10-02T12:25:16.210+05:302011-10-02T12:25:16.210+05:30ईश्वर ने तुम्हें मेरी पसलियों से बनाया था...ईश्वर ने तुम्हें मेरी पसलियों से बनाया था...vandana khannahttp://gmail.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-2760013671403119352011-10-02T12:00:05.471+05:302011-10-02T12:00:05.471+05:30एक दिन एक काग़ज़ पर लिखा -- जान चुका
आईने में उसका...एक दिन एक काग़ज़ पर लिखा -- जान चुका<br />आईने में उसका प्रतिबिंब बना -- चुक जाना.<br />hmm.बाबुषाhttps://www.blogger.com/profile/05226082344574670411noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-14475131905112051902011-10-02T11:47:02.728+05:302011-10-02T11:47:02.728+05:30मैं अवलंब था तुम्हारा ऐसे ही खड़ा होता तुम पर जैस...मैं अवलंब था तुम्हारा ऐसे ही खड़ा होता तुम पर जैसे समकोण<br />तुम जगह थी छूट जाए जो तो अधर का अभिशाप है<br />मेरी मृत्यु के बाद भी बने रहना मेरे जीवन में<br />बही हुई मेरी अस्थियों में स्मृतिपुष्पों की तरह उगना और नदियों के पानी को सुवासित कर देना....<br />पराकाष्ठा ....प्रेम की..प्रेम की चाहत की...इच्छा की ..साथ की...बहुत सुन्दर!!Nidhihttps://www.blogger.com/profile/07970567336477182703noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-91844162323052719112011-10-02T02:43:59.500+05:302011-10-02T02:43:59.500+05:30बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति| धन्यवाद|बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति| धन्यवाद|Patali-The-Villagehttps://www.blogger.com/profile/08855726404095683355noreply@blogger.com