tag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post6540517621910240135..comments2023-08-07T20:16:34.743+05:30Comments on वैतागवाड़ी: दृश्य समंदरGeet Chaturvedihttp://www.blogger.com/profile/14811288029092583963noreply@blogger.comBlogger12125tag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-81900183350955426082011-10-05T05:47:46.724+05:302011-10-05T05:47:46.724+05:30समुद्र बहुत आकर्षित करता है.उसके सामने जाने पर दूर...समुद्र बहुत आकर्षित करता है.उसके सामने जाने पर दूर तक फैली भव्यता और विशालता के समक्ष अपनी लघुता का अहसास होने लगता है.पृथ्वी के पार आंसुओं में डूबा गहन संसार.सच है सपने हमारी वे आकांक्षाएं हैं जो पूरा होने पर भी रुलाते हैं और टूटने पर भी.लहरों की तरह हम भी औरों तक जाते हैं,फिर खुद में लौट आते हैं.मन की गहराई में गोता लगाकर लिखी गयी सुन्दर रचना.sarita sharmahttps://www.blogger.com/profile/03668592277450161035noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-31344670195897610392011-09-28T19:10:26.783+05:302011-09-28T19:10:26.783+05:30बहुत सुन्दर दर्शन | सागर और बूंद दोनों में कितना ब...बहुत सुन्दर दर्शन | सागर और बूंद दोनों में कितना बड़ा अंतर ..लेकिन कहाँ है अलग ? इक से बना दूजा | सागर से ही बूंद है जिन्दा ..और बूंद से ही सागर है जीवित | मैं तो अक्सर सोचती हूँ की मीठी नदियों को ये खारा सागर इतना आकर्षित क्यों करता है ? जीवन भर पहाड़ , घाटियों से गुजर गुजर कर आखिर में तलाश सागर पर पूरी होती है | जब सभी नदियाँ मीठी है तो वो अपनी सारी मिठास से इस खारे सागर को मीठा क्यों नहीं कर देती ? या ऐसा है की संसार भर में अपनी मिठास बांटती रहती है और अपने लिए आसूँ संचित करती रहती है | और जब सागर की बाँहों में समां जाती हैं तो आसुओं का सैलाब उमड़ पड़ता होगा | और सागर खारा हो जाता होगा |<br />गाल से नीचे समन्दर है | बहुत खूब | आसूँ भी तब तक ही आसूँ है जब तक वो किसी गाल पर चिपका हुआ है | जैसे ही नीचे गिरा ...समाप्त | दर्द भी तो ऐसे ही बहता है हममे से | रिसता रहता है धीरे धीरे और इक दिन फिर नए रूप लेकर प्रेम के रूप लेकर | प्रेम के लिबास में | सावन बन कर बरस जाता है | आखों में सपने सजाता है | हंसाता है | और यही रुलाता भी है |<br />कितने सपने बह गए गालों के रस्ते से ..कौन हिसाब रखे ? कितने समन्दर बनाये हमने कौन गिने ? कभी फुर्सत मिली तो सोचेगे की कितनी बूंदे दर्द की थी और कितने कण पीड़ा के .......चलिए इक शेर सुनिए --समन्दर ने मुझे प्यासा ही रख्खा | मैं सेहरा में था जब , प्यासा नहीं था |mamta vyas bhopalnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-73946498363342898542011-02-04T19:46:13.045+05:302011-02-04T19:46:13.045+05:30इस रात की कोई सुबह नहीं और इन सपनो का कोई अंत नहीं...इस रात की कोई सुबह नहीं और इन सपनो का कोई अंत नहीं...बेहतरिन post......anjule shyamhttps://www.blogger.com/profile/01568560988024144863noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-39306914533396454972011-02-04T18:39:31.138+05:302011-02-04T18:39:31.138+05:30जीवन से भरपूर रचना।
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ध्यान का विज्ञान।
...जीवन से भरपूर रचना।<br /><br />---------<br /><b><a href="http://sb.samwaad.com/" rel="nofollow">ध्यान का विज्ञान।</a><br /><a href="http://ts.samwaad.com/" rel="nofollow">मधुबाला के सौन्दर्य को निरखने का अवसर।</a></b>Dr. Zakir Ali Rajnishhttps://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-26147101734760821902011-02-04T12:41:19.118+05:302011-02-04T12:41:19.118+05:30समंदर जैसे विषय पर लीक से हट कर एक अद्भुत प्रस्तुत...समंदर जैसे विषय पर लीक से हट कर एक अद्भुत प्रस्तुति|www.navincchaturvedi.blogspot.comhttps://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-39340090626154111902011-02-04T10:00:52.315+05:302011-02-04T10:00:52.315+05:30आज ४ फरवरी को आपकी यह सुन्दर विचारोत्तेजक पोस्ट ...आज ४ फरवरी को आपकी यह सुन्दर विचारोत्तेजक पोस्ट और ब्लॉग चर्चामंच पर है... आपका धन्यवाद ..कृपया वह आ कर अपने विचारों से अवगत कराएं<br /><br />http://charchamanch.uchcharan.com/2011/02/blog-post.htmlडॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीतिhttps://www.blogger.com/profile/08478064367045773177noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-27374713714368901662011-02-03T14:08:28.965+05:302011-02-03T14:08:28.965+05:30जीवन जितना बारीकियों से बनता है, उतना ही विस्तारों...जीवन जितना बारीकियों से बनता है, उतना ही विस्तारों से भी।<br /> आकांक्षा की पूर्ति तुरंत दूसरी आकांक्षा के जन्म का क्षण होता है<br />दुनिया का कोई समंदर किनारे पर अपना घर नहीं बना पाया।<br /> सपने आंखों में रहते हैं। आंसू भी वहीं रहते हैं। और समंदर के पेट में भी दोनों साथ-साथ ही रहते हैं। <br /> पीड़ा न हो, तो आंसू न होगा। पीड़ा न हो, तो कोई बड़ा स्वप्न भी नहीं होगा।<br />लौटना, तो समंदर का ही गुण है।<br />आंसू के नुक्तों को पकड़कर गाल से नीचे कूद जाया जाए, तो समझ आएगा, समंदर और कुछ नहीं होता, सिवाय एक संचित रुदन के।<br />*****<br /><br />बेहद सूक्ष्म निरीक्षण है गीत जी. सम्पूर्ण समुन्दर में समा जाने जैसा. आंसू , जीवन, सपने, पीड़ा, घर, सबके साथ जोड़ लिया समुन्दर को. बहुत खूब . यूनानी लोक कथा का उदाहरण बहुत सटीक लग रहा है यहाँ. <br />शुभकामनाएं.Pooja Anilhttps://www.blogger.com/profile/11762759805938201226noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-59960518662371419322011-02-02T21:49:35.606+05:302011-02-02T21:49:35.606+05:30हर शै में एक दर्शन छुपा है..क्या पेड़, क्या समुंदर...हर शै में एक दर्शन छुपा है..क्या पेड़, क्या समुंदर..बस पारखी नज़र और चमत्कारी कलम की जरूरत है अभिव्यक्ति के लिए।<br />..बहुत सुंदर।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-27273295210078651282011-02-02T21:27:25.678+05:302011-02-02T21:27:25.678+05:30गीत भाई आपने स्पष्ट कर दिया है कि क्या सीधे शब्दों...गीत भाई आपने स्पष्ट कर दिया है कि क्या सीधे शब्दों में समंदर को एक गीला घर कहा जा सकता है या उसे सिर्फ एक संज्ञात्मक और प्राकृतिक "चीज़" के तौर पर देखा जाए. निश्चय ही "गीला घर"... इस लेख का यूनानी लोककथाओं से जो जुड़ाव है, वह अपने में अनूठा है. समंदर की गहराई को आपने बड़ी सफलता से उस घर के माहौल का हिस्सा बनाया है, जहां किसी भी तरह के भाव या मानसिकता में अंतर का मूल बिंदु ढूंढ पाना मुश्किल होता है. सपने अजीब होते हैं, अनुत्तरित भी...हमेशा की तरह उलझे हुए-से, लेकिन इस लेख में वे एक चक्र का हिस्सा हैं (जल-चक्र की तरह) जहाँ उसे फिर से अपने मूल स्रोत में मिल जाना होता है. ख़ूबसूरत...<br />एक अनुरोध है कि सपनों पर भी कुछ लिखिए, उनके अनुत्तरितपन में कुछ अलग और विशेष जोड़ने की दिशा में.ssiddhanthttp://ssiddhantmohan.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-81766107170097623042011-02-02T20:45:41.406+05:302011-02-02T20:45:41.406+05:30बहुत सुन्दर निर्दोष रचना... कोमल... आपकी कविताओं ...बहुत सुन्दर निर्दोष रचना... कोमल... आपकी कविताओं जैसी... इसमें कविता और संगीत को महसूसा जा सकता है... <br />''गाल जहां खत्म होते हैं, वहां से समंदर शुरू हो जाता है'' <br />इस लाइन में कितना गहरा दर्शन है अगर सूमंदर रूदन है तो पूरी देह भी रूदन हो जाती है...Anand Vyashttp://www.facebook.com/profile.php?id=100001060812379noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-80960815266900011632011-02-02T19:03:35.321+05:302011-02-02T19:03:35.321+05:30beautiful !!!!!beautiful !!!!!डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-45377189027776062532011-02-02T15:51:36.176+05:302011-02-02T15:51:36.176+05:30true....!true....!वंदना शुक्लाhttps://www.blogger.com/profile/16964614850887573213noreply@blogger.com