tag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post903123191874655625..comments2023-08-07T20:16:34.743+05:30Comments on वैतागवाड़ी: जो चाहो, मानो मुझे...Geet Chaturvedihttp://www.blogger.com/profile/14811288029092583963noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-18075019811686925232008-08-11T10:18:00.000+05:302008-08-11T10:18:00.000+05:30नाम में क्या रक्खा है - रूह की कहानी हो या कविता क...नाम में क्या रक्खा है - रूह की कहानी हो या कविता की रूह - ऐसा और भी हो तो बिल्कुल हर्ज़ नहीं - और बार बार पढा भी जाय - लगा अलग हिस्सों की अपनी अपनी अलग जान है - बहुत बढ़िया - साभार - मनीषAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/08624620626295874696noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-40099280516106131662008-08-07T16:34:00.000+05:302008-08-07T16:34:00.000+05:30प्रेम से लेकर घृणा तक, पेड़ से लेकर मछली तक। इतिहा...प्रेम से लेकर घृणा तक, पेड़ से लेकर मछली तक। इतिहास से लेकर आधुनिक तक। पर मुझे विजेता मत कहिए। विजेता कभी छिपकर चलते हैं क्या? मैं एक पराजित मनुष्य हूं।<BR/>बहुत सुन्दर लिखा है। सरल शब्दों में जीवन का सम्पूर्ण निचोड़ रख दिया। बधाईशोभाhttps://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-50638192106862739032008-08-07T14:18:00.000+05:302008-08-07T14:18:00.000+05:30गीत जी, आपको पढ़कर अच्छा लगा। आपमें छिपी अनन्त ...गीत जी, आपको पढ़कर अच्छा लगा। आपमें छिपी अनन्त सम्भावनाओं को देखकर आपसे काफी उम्दा चीजें मिलने की आशा है । विजय जी का इशारा कि इसे स्थायी भाव न बनाए जाए,एक दम उचित है ।कुमार नवीनhttps://www.blogger.com/profile/02854930755722805805noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-85367521002814716572008-08-07T12:19:00.000+05:302008-08-07T12:19:00.000+05:30विचार आजाद हैं...इन्हे ग्राह करने वाले कम ही लोग ह...विचार आजाद हैं...इन्हे ग्राह करने वाले कम ही लोग है... हर कोई ना पकड़ पाता है तिस पर दम्भ भी है की हमने कई और चीजे पकड़ी हैं, गैर जरुरी चीजे..... कई विचारोतेजक विचारRajesh Roshanhttps://www.blogger.com/profile/14363549887899886585noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-21076024710948514182008-08-07T11:35:00.000+05:302008-08-07T11:35:00.000+05:30अद्भुत लिखा है आपने.बहुत ही उम्दा.विजय भाई की बात ...अद्भुत लिखा है आपने.<BR/>बहुत ही उम्दा.<BR/>विजय भाई की बात से पूर्ण सहमति.बालकिशनhttps://www.blogger.com/profile/18245891263227015744noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-9863812950487995342008-08-07T10:20:00.000+05:302008-08-07T10:20:00.000+05:30लेकिन मै तो आपसे ईर्ष्या करता हूं... नही जानता कि...लेकिन मै तो आपसे ईर्ष्या करता हूं... नही जानता कि ये घृणा में बदलेगी या प्रेम में ।।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-44999827682874988042008-08-07T05:27:00.000+05:302008-08-07T05:27:00.000+05:30एकदम्मे सटीक.एकदम्मे सटीक.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-83030827641550032072008-08-07T02:53:00.000+05:302008-08-07T02:53:00.000+05:30मुझे लगता है कि अब तक की पढ़ी कुछ अच्छी पोस्टों मे...मुझे लगता है कि अब तक की पढ़ी कुछ अच्छी पोस्टों में से एक है ये पोस्ट। पता नहीं कितने विचार इसमें समाए हैं। इस पर सिर्फ कह सकता हूं अलग और सही विचार। और कुछ नहीं कहुंगा।Nitish Rajhttps://www.blogger.com/profile/05813641673802167463noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-11057237115148110932008-08-07T01:29:00.000+05:302008-08-07T01:29:00.000+05:30बहुत उम्दा गद्य. अगरचे इसे स्थायी भाव मत बनाओ.बहुत उम्दा गद्य. अगरचे इसे स्थायी भाव मत बनाओ.विजयशंकर चतुर्वेदीhttps://www.blogger.com/profile/12281664813118337201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-29675411587341609432008-08-07T00:03:00.000+05:302008-08-07T00:03:00.000+05:30मैंने इसे एक बार पढ़ा, दो बार पढा, बार-बार पढा, कू...मैंने इसे एक बार पढ़ा, दो बार पढा, बार-बार पढा, कूछेक अनुच्छेद तो झकझोर देने वाले थे, मसलन, "जाने कब से, सुने जाने के इंतज़ार में हवा में भटकती सिसकी और अपने नाम की एक पुकार को, अपने पीछे दौड़ता पाता हूं।"<BR/>इतिहास का सच्चा बोध, इस हद तक कि वो भोगा हुआ सत्य लगने लगे, व्यक्ति को सदियों तक सालती हैं। इतिहास अपने आप को दोहराने के क्रम में न केवल अपने अतीत के प्रति निर्मम हो जाता है, बल्कि वह सत्य को अपनी मुट्ठी में भींचकर खत्म करता जाता है,इस पीड़ा ने मनुष्य को अकेला कर दिया है , जिसे वह अकेले भोगने के लिए अभिशप्त है।<BR/>गद्य की यह भाषा यहॉ कविता की लय में मालूम पड़ती है, इस एकालाप में एक जादुई आकर्षण है।<BR/>मैं कहना चाहूँगा कि पढ़ने के बाद मुझे आनंद की अनुभूति तो बिल्कुल ही नहीं हुई, क्योंकि यह आनंद के लिए लिखा ही नहीं गया। इसमें जो सार्वभौम पीड़ा का विस्मित सम्मोहन है,वह मुझे अब तक कहीं घसीट-सा रहा है।जितेन्द़ भगतhttps://www.blogger.com/profile/05422231552073966726noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-19714351417481184002008-08-06T23:42:00.000+05:302008-08-06T23:42:00.000+05:30इन्सानियत का एह्सास कभी ना भूलेँ हमवैचारिक यात्रा ...इन्सानियत का एह्सास कभी ना भूलेँ हम<BR/>वैचारिक यात्रा :<BR/>"वाहीक पार नदियों के किनारे तक, अवेस्ता की जगह तक, मगध में बहुत रहा मैं, जब महामाया गुज़री थीं और थोड़ी देर बाद दुनिया ने छोटे-से सिद्धार्थ का रुदन सुना था, तो उस वक़्त लुंबिनी के मार्ग पर मैं पेड़ बनकर रहा करता था, एक दिन कटकर मैं एक नाव बन गया और बहते-बहाते काशी पहुंचा था, फिर काग़ज़ बनकर मैं मुग़लों के दरबार से लेकर उनके रद्दीगोदाम तक में रहा, मैं डि´गामा के गोवा और हेमू के पानीपत में भी रहा और इतिहास के भुला दिए गए क्षणों में, थके लोगों के पसीने और पराजित लोगों के लहू में रहा।"<BR/><BR/>बहुत अच्छी लिखी है आपने<BR/>-लावण्यालावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-15500753577281904512008-08-06T20:25:00.000+05:302008-08-06T20:25:00.000+05:30अजित भाई की बात से पूरी तरह सहमत.ज़रूरी बात । प्या...अजित भाई की बात से पूरी तरह सहमत.<BR/><BR/>ज़रूरी बात । प्यारी बात । सलीके की बात।Ashok Pandehttps://www.blogger.com/profile/03581812032169531479noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-36949460439570668152008-08-06T18:53:00.000+05:302008-08-06T18:53:00.000+05:30मनुष्य भी तो सिर्फ़ अपनी ही नज़र में हूं। वो भी जब...मनुष्य भी तो सिर्फ़ अपनी ही नज़र में हूं। वो भी जब तक हूं, तब तक ही हूं।<BR/><BR/>ज़रूरी बात । प्यारी बात । सलीके की बात।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.com