tag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post8523254653395759232..comments2023-08-07T20:16:34.743+05:30Comments on वैतागवाड़ी: आंसू चांद की आंखों से नहीं, उसके थन से निकलते हैं दूध बनकरGeet Chaturvedihttp://www.blogger.com/profile/14811288029092583963noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-2194295588717866232012-03-28T12:29:54.892+05:302012-03-28T12:29:54.892+05:30बहुत खूबसूरत!!!!!!!!!!!!!!!!!
-अनुबहुत खूबसूरत!!!!!!!!!!!!!!!!!<br /> <br />-अनुANULATA RAJ NAIRhttps://www.blogger.com/profile/02386833556494189702noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-2412066047115358742012-03-20T16:36:50.178+05:302012-03-20T16:36:50.178+05:30गीत जी,यह एक अद्भुत अन्तर्यात्रा है जो भाषा में उल...गीत जी,यह एक अद्भुत अन्तर्यात्रा है जो भाषा में उलटे लटक कर की जा रही, झुटपुटे के प्रकाश की तरह काँपते हुए.....शानदार कहना भी कम ही होगा.....Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/03514753057178092961noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-25303522392848295902012-03-17T13:37:48.139+05:302012-03-17T13:37:48.139+05:30आपका लिखना दरअसल छोटे ईश्वर का बड़े ईश्वर से बातें...आपका लिखना दरअसल छोटे ईश्वर का बड़े ईश्वर से बातें करना है...<br />घाव लगने पर छोटा ईश्वर सिगरेट सुलगाता है<br />अ-घाव के दिनों में कंकड़ों का चूरा बना पानी में बहाता है...<br />बेहद, बेहद सुंदर...vandana khannahttp://gmail.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-91566335793803561882012-03-17T13:00:53.173+05:302012-03-17T13:00:53.173+05:30वाह! बेहद सुन्दर प्रस्तुति!वाह! बेहद सुन्दर प्रस्तुति!अनुपमा पाठकhttps://www.blogger.com/profile/09963916203008376590noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-7359250695572044052012-03-17T07:31:43.819+05:302012-03-17T07:31:43.819+05:30मछली होना दुखद है
गहरे तैरती है फिर भी थाह नहीं पा...मछली होना दुखद है<br />गहरे तैरती है फिर भी थाह नहीं पातीवंदना शुक्लाhttps://www.blogger.com/profile/16964614850887573213noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-782640702921363295.post-34611770646821303232012-03-17T07:19:22.098+05:302012-03-17T07:19:22.098+05:30मछली होना विस्तार के बावजूद गहराई न होना है.आत्मा ...मछली होना विस्तार के बावजूद गहराई न होना है.आत्मा अदृश्य पानियों में बहती है.अतीत की पगडंडियों तक यादें ले जाती हैं मगर सब कुछ बदल चुका होता हैकविता में प्रेम की आर्द्रता का बहुत कोमलता से जिक्र किया गया है.दरारों का हरापन और पेंसिल छीलने से बने फूल अंत के बाद की शुरुआत हैं.अंतिम कविता की थीम उदासी है.घाव लगाने पर भी वह मरहम नहीं लगाता है ,बल्कि अच्छे दिनों में कंकड को चूरा बना कर मरहम बनाता है ,फिर बहा देता है.बड़े ईश्वर के बारे में हम निश्चित रूप से कुछ बता नहीं सकते मगर हम सब में मौजूद छोटा ईश्वर रोजमर्रा के सुख दुःख को झेलता विचारों के भवसागर में गोते लगाता रहता है.sarita sharmahttps://www.blogger.com/profile/03668592277450161035noreply@blogger.com