Tuesday, February 9, 2010
पुरानी, बहुत पुरानी, मेरी स्मृति से पुरानी नहीं पर
ठीक-ठीक याद नहीं है कि यह तस्वीर किस वर्ष की है, शायद 98 या 99; पर इस मुलाक़ात की यादें हैं. मुंबई में कवि अनूप सेठी का घर है, कुमार वीरेंद्र, संजय भिसे और गुरुदत्त पांडेय की कविताएं हैं, राकेश शर्मा जी की छेड़छाड़ है, रमन मिश्र-शैलेश के ठहाके हैं, अनूप जी की तस्वीरें हैं और आलोचकद्वय शिवकुमार मिश्र-अजय तिवारी के ‘युवा कवियों के लिए मशविरे’ हैं.
यानी यह चित्र है. रुका हुआ- स्टिल. पर निगाह-भर भी देखता हूं, तो चल-चित्र बन जाती है. ऐसे ही झटकों में मैं मुंबई पहुंच जाता हूं.
अब कितनों से कितने बरस हुए, बात न हो पाई.
अनुनाद पर अनूप सेठी जी के कमेंट ने उन्हीं की खींची इस तस्वीर की याद दिला दी, जो उन्होंने 16 अगस्त 2006 को एक मेल में भेजी थी. याद करते हुए. याद दिलाते हुए.
तस्वीर में सबसे बाएं बैठे मित्र का नाम भूल गया, उसके बाद इच्छाशंकर, मैं, गुरुदत्त, राकेश शर्मा, शिवकुमार मिश्र, रमन मिश्र (नीचे), अजय तिवारी, शैलेश सिंह (नीचे), संजय भिसे, ब्रजेश कुमार और कुमार वीरेंद्र (नीचे). क्लिक करके बड़ा कर लें, तो शायद बेहतर साफ़ दिखे.
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