टाइम ने इस बार जोनाथन फ्रैंजन पर कवर स्टोरी दी है. बरसों बाद कोई लेखक टाइम के कवर पर आया है. फ्रैंजन का नाम सुना है, पर उसकी कोई किताब पढ़ी नहीं है. टाइम ने उस पर बढि़या लिखा है, ऐसा कि उसे पढ़ने की दिलचस्पी जग गई. इसी में पढ़ा कि एक लंबे राइटर्स ब्लॉक के दौरान जब फ्रैंजन कुछ नहीं लिख पा रहे थे, तो उन्होंने तंबाकू खाना शुरू कर दिया. यह आदत उनके लेखक दोस्त डेविड फॉस्टर वैलेस में थी. वैलेस की आत्महत्या के बाद वह आदत उनमें आ गई. उनकी एक और आदत के बारे में इसी से पता चला कि जब वह लिखते हैं, तो अपने पुराने डेल के लैपटॉप के आगे ज़ोर-ज़ोर से अपने डायलॉग्स बोलते हैं. छह घंटे के लेखन-सेशन के बाद उनका गला बैठ जाता है और यह लगभग रोज़ की बात है. उनका कहना है, ऐसा करने से उनके डायलॉग्स सरल, सहज, अमेरिकी बोलचाल की भाषा में हो जाते हैं. वे फिलिप रॉथ के डायलॉग्स को किताबी मानते हैं. लिखते समय अपना लिखना उच्चारने की आदत फॉकनर में भी थी.
राइटर्स ब्लॉक से जूझने का लेखकों का तरीक़ा कई बार अद्भुत होता है. जैसे हारुकि मुराकामी ने तो पूरी एक किताब ही इस पर लिख दी है. उनके संस्मरणों की किताब व्हाट आय टॉक व्हेन आय टॉक अबाउट रनिंग दौड़ने की उनकी आदत के बहाने की उनकी रचना-प्रक्रिया की पड़ताल है. अपनी किताबों के कई हिस्से उन्होंने इसी तरह दौड़ते हुए ही सोचे हैं.
लिखते समय की कई अजीब आदतें हैं लोगों की. कई तो इतने अनुशासित होते हैं कि कल जहां छोड़ा था, वहीं से आज शुरू कर दिया. जैसे सलमान रूश्दी. वह सुबह उठने के बाद पहला काम जो करते हैं, वह है लिखना. टेबल पर पहुंच गए. कल क्या-क्या, कितना लिखा था, उसे पढ़ डाला. फिर आगे लिखने बैठ गए. तीन घंटे लिखने के बाद फ्रेश होने जाएंगे. फिर दुनियादारी. शाम को पेज तीन वाली जि़ंदगी में घुसने से पहले एक बार फिर पढ़ेंगे कि सुबह क्या-क्या लिखा था. फिर अगली सुबह छुएंगे. कोई करेक्शन हुआ, तो वह भी अगली सुबह. मिडनाइट्स चिल्ड्रन लिखते समय वह नौकरी पर थे. पांच दिन नौकरी करते थे, पांचवीं शाम घर पहुंच घंटा-डेढ़ घंटा गरम पानी से नहाते, फिर लिखने बैठ जाते. सोमवार की सुबह तक सोते-जागते लिखते, फिर अपने काम पर चले जाते, पांच दिन के लिए.
ओरहन पमुक ने अदर कलर्स में बहुत दिलचस्प कि़स्से लिखे हैं अपनी ऐसी आदतों के बारे में. एक निबंध में वह कहते हैं- उन्हें घर में लेखन करना अजीब लगता था. उन्हें हमेशा एक दफ़्तर चाहिए होता, जो घर से अलग हो, जहां वह सिर्फ़ लिख सकें. (यह आदत कई लेखकों की रही है. इसके लिए उन्होंने घर के पास या तो कोई फ़्लैट ख़रीद लिया या किराये पर ले लिया और वहां काम किया.) ख़ैर, पमुक घर में लिखने की मजबूरी से अलग ही ढंग से निपटे. वह सुबह उठते, नहाते-धोते, नाश्ता करते, बाक़ायदा फॉर्मल सूट पहनते और पत्नी से यह कहकर कि अब मैं ऑफिस जा रहा हूं निकल पड़ते, पंद्रह-बीस मिनट सड़क पर टहलने के बाद वह वापस घर लौटते, अपने कमरे में घुसते, और उसे अपना ऑफिस मान लिखने लग जाते.
सुनने-पढ़ने में यह जितना आसान लग रहा है, उतना होता नहीं होगा. मैंने कुछ दोस्तों को यह तरीक़ा बताया है, और वे अब तक ऐसा नहीं कर पा रहे. घर पहुंचने के बाद घर, उन्हें हर तरह से घर ही लगता है. अब हम लोग जो घर में ही लिखते रहे हैं, लिख लेते हैं, लेखन के लिए दफ़्तर वाला चस्का लगा नहीं है, सो इस पूरी प्रताड़ना को समझने से भी बचे हुए हैं. लेकिन यह ज़रूर अचरज में डालता है कि ये सारे बड़े लेखक कितनी कमिटमेंट के साथ लिखते हैं. कोई नियमित दिन में बारह घंटे लिखता है जैसे पमुक इस्तांबुल के लिए, मारकेस सॉलीट्यूड के समय और बाद में भी सुबह नौ से दोपहर तीन बजे तक लिखते थे और उसके बाद पॉपुलर संगीत सुना करते थे. लिखते समय उनकी टेबल पर पीला गुलाब होना ज़रूरी था, यह तो कई बार कही गई बात है.
पर मुझे सबसे अजीब आदत हेमिंग्वे की लगती है. वह आदमी खड़े-खड़े लिखता था, बैठकर लिख ही नहीं पाता था. उसने बाक़ायदा अपने लिए स्टडी बनवाई थी, लेकिन लिखने का काम बेडरूम में करता था. अपने लिए एक ऐसी डेस्क बनवाई थी, जिस पर उसके काग़ज़, टाइप राइटर और तुरंत काम में आने वाली किताबें रखे रहता. एक टांग मोड़कर, दूसरी अकेली टांग पर खड़े रहता. कभी इस पैर पर वज़न डालता, कभी उस पैर पर. इस दौरान पेंसिल से पुराने लिखे काग़ज़ों में करेक्शन करता रहता, इस बीच जब उसे लगता कि अब वह रौ में आ गया है, आनन-फानन टाइप करना शुरू कर देता. ओल्ड मैन एंड द सी ऐसे ही लिखा गया है. दूसरे उपन्यास भी. एक लंबे राइटर्स ब्लॉक से निकलने के लिए उसने यह आदत पैदा कर ली थी, जो ऐसी चिपकी कि उससे अलग हो कुछ लिखा ही न जाता.
राइटर्स ब्लॉक बहुत ख़राब चीज़ होती है. जो न कराए सो कम. जैसे क्रिकेटर फॉर्म खो जाने से ख़ाइफ़ रहते हैं, वैसे ही लेखक ब्लॉक से. वैसे, विलियम फॉकनर इस बारे में बहुत ही बेरहम बात करते हैं कि जो लेखक बहुत नखरे करते हैं, लिखने के लिए ढेर सारी मांग करते हैं, मन की शांति से लेकर धन की शांति तक, वे दरअसल फर्स्ट रेट लेखक होते ही नहीं, लिखने के लिए तो सिर्फ़ कुछ सादे काग़ज़ और एक छिली हुई पेंसिल की ज़रूरत होती है. फॉकनर आजोबा की यह सच्ची बात माथे पर बल डालने के लिए काफ़ी थी. पर एक दूसरे निबंध में यह भी पढ़ लिया कि इन्हीं फॉकनर आजोबा ने यह भी कहा था कि लेखक दिन-भर नौकरी और पैसे के जुगाड़ में लगा रहेगा, तो क्या खा़क लिखेगा. (यह उन्होंने तब कहा था, जब उन्हें पोस्ट ऑफिस की एक नौकरी से इसलिए निकाल दिया गया था कि वह ड्यूटी अवर्स में बैठकर किताब पढ़ते पकड़े गए थे.)
यह सारी बातें तो मुझे इसलिए याद आईं कि कल दिन में किसी दोस्त से बात हो रही थी और मैं उसे बता रहा था कि मैंने चैट और एसएमएस करते हुए अपनी कविता या कहानी की पंक्तियां पाई हैं. फिर उन्हें पिरोया है. चीज़ों को सब अपनी-अपनी तरह पाते हैं, और कई चीज़ें कई दूसरे लोगों जैसे ही मिलती हैं. कुछ संयोग है, कुछ आदत की बात, कुछ हालात हैं, तो कुछ प्रेरणाओं का दबाव. आखि़र हम सब ही जानते हैं, हिकमत की कविताएं जेल में सिगरेट की डिब्बियों पर लिखी गई थीं.
ऐसी बहुत-सी स्मृतियां हैं. कई लेखकों की आदतें याद आ रही हैं. अब बस. उन पर फिर कभी.
ऐसी बहुत-सी स्मृतियां हैं. कई लेखकों की आदतें याद आ रही हैं. अब बस. उन पर फिर कभी.