दो-तीन दिनों से मैं एदुआर्दो गालेआनो की नई किताब 'मिरर्स' पढ़ रहा हूं. इसके लिए मुझे अपने दोस्त विनीत तिवारी का शुक्रिया कहना चाहिए. इससे पहले गालेआनो की 'ओपन वीन्स' और 'डेज़ एंड नाइट्स ऑफ लव एंड वार' पढ़ चुका हूं. गैल्यानो रचनात्मक गद्य की मीनार हैं. वह कालयात्री भी हैं. इतिहास को वर्तमान से और वर्तमान को इतिहास से देखते हैं. इससे दोनों के नए अर्थ उरियां होते हैं. 'मिरर्स' में वह अपने पूरे वैभव पर हैं. 365 पेज में छोटी-छोटी 600 कहानियां हैं, जो सृष्टि की उत्पत्ति से लेकर इक्कीसवीं सदी के शुरुआती बरसों की गुमशुदगियों तक को बयान करती हैं. कहानी-दर-कहानी समय नाम की दाई की काया को वह नापते हैं और इतिहास-लेखन की अद्भुत कला से झांकते हैं. इस किताब के कुछ अंश नीचे प्रस्तुत हैं. बिना अनुमति लिए अनुवाद करना व छापना नैतिकता के विरुद्ध है, लेकिन इस किताब की सुंदरता यहां अनैतिक होने पर विवश कर रही है. गालेआनो और उनके प्रकाशकों से क्षमा भी, उनका आभार भी. अगर आपने यह किताब न पढ़ी हो, तो ज़रूर पढ़ें.
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आईने बेशुमार इंसानों से भरे हुए हैं
जो अदृश्य हैं वे झांककर हमें देखते हैं
हमें याद करते हैं विस्मृत लोग
जब हम खु़द को देखते हैं, उन्हें देखते हैं
जब हम पीठ फेर मुड़ जाते हैं, क्या वे भी फिरा लेते हैं पीठ ?
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इच्छा का जन्म
जिंदगी अकेली थी. उसके पास न कोई नाम था, न कोई स्मृति. हाथ थे उसके पास, लेकिन छूने के लिए कोई नहीं था. उस के पास जु़बान भी थी, लेकिन बातें करने लिए कोई न था. जिंदगी इकलौती थी और इकलौता कुछ नहीं था.
तब इच्छा ने अपने धनुष की प्रत्यंचा खींची. उससे निकले तीर ने जिंदगी को ठीक बीच से काट दिया, और जिंदगी दो में बदल गई.
जब उन दोनों की नज़रें मिलीं, वे ज़ोर से हंसे. जब उन्होंने एक-दूसरे को छुआ, वे फिर से हंसे.
लिखाई का जन्म
इराक़ तब तक इराक़ नहीं बना था, जब वहां पहली बार लिखे गए शब्दों का जन्म हुआ था.
शब्द चिडि़यों की क़तार की तरह दिखते थे. उस्ताद हाथों ने नुकीली लकडि़यों से मिट्टी में उकेर-उकेरकर उन्हें लिखा था .
आग नाश करती है और रक्षा भी, जीवन देती है और लेती भी, जैसा कि हमारे देवता करते हैं, जैसा कि हम ख़ुद करते हैं. आग ने मिट्टी को तपा दिया और शब्दों को बचा लिया. आग का आभार कि इस दोआबे में ये शिलाखंड अब भी हमें वे सारी कहानियां सुनाते हैं, जो हज़ारों साल पहले सुनाया करते थे.
हमारे समयों में जॉर्ज डब्ल्यू. बुश को शायद यह भरोसा हो गया कि लेखन की खोज टैक्सस में हुई थी, अपने होहराते उल्लास में दंड देने की ठानी और इराक़ को मिटाने के लिए उस पर हमला बोल दिया. हज़ारों हज़ार शिकार हुए और ऐसा नहीं था कि हर शिकार गोश्तो-ख़ूं से ही बना हो. उसमें बेशुमार स्मृतियों की भी हत्या कर दी गई.
बेशुमार शिलाखंडों के भीतर जीवित धड़कता हुआ इतिहास चुरा लिया गया या बमों को नज़र कर दिया गया.
एक शिलाखंड कहता था :
हम कुछ नहीं सिवाय मिट्टी के
हम जो कुछ भी करते हैं उसका मोल हवा से ज़्यादा कुछ नहीं.
मिट्टी का जन्म
पुराने ज़माने में सुमेरियनों का विश्वास था कि पूरी दुनिया दो नदियों के बीच की ज़मीन है और दो स्वर्गों के बीच बसी है.
ऊपर के स्वर्ग में शासन करने वाले देवता रहते थे.
नीचे के स्वर्ग में कर्मचारी देवता रहते थे.
सब कुछ ऐसा ही चलता रहा, पर एक दिन नीचे वाले देवता हमेशा काम करते रहने से क्लांत हो गए और इस तरह इतिहास में पहली बार हड़ताल का जन्म हुआ.
अफ़रातफ़री मच गई.
लोगों को भुखमरी से बचाने के लिए ऊपर के देवताओं ने मिट्टी से स्त्रियों और पुरुषों को बनाया और उन्हें काम पर लगा दिया. ये स्त्री-पुरुष तिगरिस और यूफ्रेट्स के तट पर पैदा हुए थे.
उसी मिट्टी से वे किताबें भी बनाई गईं, जो उन लोगों की कहानियां कहती हैं.
वे किताबें बताती हैं कि मरना वापस मिट्टी हो जाना होता है.
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Marian Siwek 1936-2007. Polish artist. Krakow. |
अमर हो जाने की चाहत वाला राजा
समय हमारी दाई है और वही हमारी संहारक भी. कल उसने अपने स्तनों से हमें दूध पिलाया था और कल वह हमें खा जाएगी.
तो ऐसा होता ही रहता है. और हम जानते भी हैं यह सब.
पर क्या सच में जानते भी हैं ?
दुनिया में पहली बार जो किताब जन्मी थी, वह हमें राजा गिलगमेश की कहानी सुनाती है, जिसने मरने से इंकार कर दिया था.
यह महाकथा जो पांच हज़ार बरसों से मुंहज़बानी सफ़र कर रही है, उसे लिख डालने का काम किया था सुमेरियनों ने, अकादियनों ने, बेबीलोनियाइयों ने और असीरियाइयों ने.
यूफ्रेट्स के किनारों का राजा गिलगमेश एक स्वर्गिक देवी और एक पुरुष के मिलन से हुआ था. ईश्वरीय इच्छाएं मानवीय नियतियां बन जाती हैं. देवी मां से उसने अलौकिक शक्ति और सुंदरता पाई थी, पुरुष पिता से मृत्यु.
नश्वर होने का अर्थ उसे तब तक पता नहीं था, जब तक उसने अपने दोस्त एनकिदु को मृत्युशैया पर न देख लिया.
गिलगमेश और एनकिदु ने ख़ुशियों को अचंभे की तरह एक साथ जिया था. साथ-साथ ही दोनों देव-वन में भी घुस गए थे, जहां उन्होंने उस पहरेदार को हरा दिया था, जिसकी भुजाओं का बल देख पर्वत तक कांप उठते थे. साथ-साथ ही दोनों ने स्वर्ग के बैल को भी पराजित किया था, जिसकी एक हुंकार से ज़मीन में विशाल गड्ढा हो जाता था और जिसमें सैकड़ों लोग दफ़न हो जाते थे.
एनकिदु की मृत्यु ने गिलगमेश को तोड़कर रख दिया और आतंकित कर दिया. उसने पाया कि उसका जांबाज़ जिगरी दोस्त तो मिट्टी का बना हुआ था और वह ख़ुद भी मिट्टी से ही बना है.
तो वह एक अनंत जीवन की तलाश में निकल पड़ा. अमरता की चाहत रखने वाला यह राजा अनगिनत रेगिस्तानों और चारागाहों से गुज़रा,
उसने रोशनी और अंधेरों को पार किया,
उसने विशाल नदियों को तैर डाला
एक दिन वह स्वर्ग के उपवन में पहुंचा
एक नक़ाबपोश अप्सरा जो अपने भीतर सारे रहस्य छुपाए रखती थी, ने उसे शराब परोसी,
वह समंदर के परली ओर पहुंच गया
उसने वह आर्क खोज लिया जो बाढ़ से बच गया था
उसे वह पौधा भी मिल गया जो बुढ़ापे को तरुणाई में बदल देता है
वह उत्तरी सितारों के दिखाए पथ पर चला और दक्षिणी सितारों के पथ पर भी
उसने वह द्वार खोलकर देखा जिससे सूरज इस दुनिया में आता था और उस द्वार को बंद करके देखा जिससे सूरज जाता था
और वह तब तक अमर बना रहा
जब तक कि एक दिन वह मर नहीं गया.
आंसुओं का जन्म
जब मिस्र, मिस्र नहीं था, तब सूरज ने आकाश की उत्पत्ति की और उन चिडियों की भी, जो उस आकाश को पार करते उड़ें. उसने नील नदी बनाई और उसमें तैरने के लिए मछलियां भी. और पौधों और जानवरों में जान भरकर उसने उस नदी के काले तटों को हरे में बदल दिया.
तब जीवन की उत्पत्ति करने वाला सूरज थोड़ी देर सुस्ताने बैठ गया और अपने इन कामों के बारे में विचार करने लगा.
इस नवजात विश्व की गहरी सांसों को उसने अपने ऊपर महसूस किया और उसकी पहली-पहली आवाज़ें सुनीं.
अतिशय सुंदरता भयानक ठेस भी पहुंचाती है.
सूरज के आंसू ज़मीन पर गिरे और उनसे कीचड़ बना.
और उस कीचड़ से मनुष्यों की उत्पत्ति हुई.
PS
श्रम के विभाजन का जन्म
कहते हैं कि राजा मनु ने भारतीय जातियों पर पवित्र प्रतिष्ठाएं नाजि़ल की थीं.
उनके मुंह से ब्राह्मणों की उत्पत्ति हुई, भुजाओं से राजाओं और योद्धाओं की (क्षत्रिय). जांघों से व्यापारियों की (वैश्य). उनके पैरों से मज़दूरों व कारीगरों की (शूद्र).
और इस आधार पर उस सामाजिक पिरामिड का निर्माण हुआ, जिसकी भारत में तीन हज़ार से ज़्यादा कथा-मंजि़लें हैं.
हर कोई वहीं पैदा होता है, जहां उसे पैदा होना चाहिए. वही करता है, जो उसे करना चाहिए. पालने में ही क़ब्र बनी होती है, जन्म से नियति बन जाती है, हमारी जिंदगी पिछले जन्मों का कर्म है या फल, और हमारे वंश हमारी भूमिका व जगहें तय करते हैं.
व्यवस्था में गड़बड़ी न फैले, इसके लिए मनु ने आदेश किया: अगर निचली जाति का कोई व्यक्ति पवित्र किताबों की ऋचाओं को सुनेगा, तो उसके कानों में पिघला हुआ सीसा डाल दिया जाएगा, और अगर वह उन्हें पढ़ेगा, तो उसकी जीभ काट ली जाएगी. ऐसे उपदेशों का अब ज़्यादा चलन नहीं रहा, लेकिन अब भी जब कोई अपनी जगह छोड़ता है, प्रेम में, श्रम में, तो ख़तरा रहता है कि उसे मौत मिल जाए या मौत से भी बदतर जीवन.
हर पांच में से एक भारतीय जाति-बाहर है और निचले से भी निचले पर है. उन्हें अछूत कहा जाता है, क्योंकि वे छूत फैला देते हैं: वे गए से भी गुज़रे हुए हैं, वे दूसरों से बोल नहीं सकते, दूसरों की बनाई सड़कों पर चल नहीं सकते, और उनके गिलास व बर्तनों को छू नहीं सकते. क़ानून उनकी रक्षा करता है और यथार्थ उन्हें बहिष्कृत. कोई भी उनके पुरुषों का अपमान कर सकता है और कोई भी उनकी स्त्रियों से बलात्कार कर सकता है, सिर्फ़ यही एक ऐसा मौक़ा होता है, जब वे अछूत, छूने लायक़ बन जाते हैं.
2004 के अंत में जब सुनामी की लहरों ने भारतीय तटों पर तबाही मचा दी थी, वे कचरा बीन रहे थे, शव उठा रहे थे.
हमेशा की तरह.