'सेंसरिंग एन ईरानियन लव स्टोरी' पिछले दिनों पढ़ी सुंदरतम किताबों में से है. शहरयार मंदानीपुर का यह उपन्यास आधुनिक ईरान में प्रेम करने और प्रेम कथा लिखने दोनों को एक विडंबना की तरह प्रस्तुत करता है.
ईरान में साहित्य पर सेंसरशिप की तलवार है. किताब तब तक नहीं छप सकती, जब तक कि मंत्रालय उसे मान्यता न दे दे. आप कहानी लिखें, पांडुलिपि तैयार करके संस्कृति मंत्रालय के पास भेजें, छह महीने, साल-दो साल, कुछ मामलों में पांच साल बाद मंत्रालय से जवाब आएगा. शायद ही कोई किताब ऐसी हो, जो बिना काट-छांट के प्रकाशित होती हो. ज़्यादातर किताबों को सीधे ख़ारिज कर दिया जाता है.
स्थिति यह है कि सदियों से मक़बूल निज़ामी गंजवी की प्रेमकथा 'ख़ुसरो और शीरीं' को छापने पर वहां पाबंदी लगा दी गई है. समकालीन कृतियों को तो लंबे समय तक अटका दिया जाता है. विश्व साहित्य की जिन महान किताबों को वहां छापने पर मनाही है, उनमें दोस्तोएवस्की की 'गैंबलर', फॉकनर की 'ऐज़ आय ले डाइंग', नबोकोव की 'लोलिता' और मारकेस की 'मेमरीज़ ऑफ़ माय मेलन्कली होर्स' प्रमुख हैं. (जो अभी याद आ रहीं, ऐसी तो सैकड़ों हैं.)
मंदानीपुर इस उपन्यास में दारा और सारा की लोकप्रिय कथा वर्तमान की पृष्ठभूमि में लिखते हैं. किताब में एक ही कहानी के दो संस्करण साथ-साथ चलते हैं. एक जो लेखक लिख रहा है. उसे आशंका है कि उसके लिखे को सेंसर अप्रूव नहीं करेगा. इसलिए वह ख़ुद ही उसे सेंसर कर देता है. इसके लिए सब-स्क्रिप्ट का प्रयोग कर टाइपिंग के दौरान वाक्य पर बीच में से 'कट' लगा देता है. यानी पाठक उस वाक्य को भी पूरा पढ़ सकता है. इस तरह पूरी कहानी दो स्तरों पर चलती है. कटे हुए वाक्यों में ईरान का सच पढ़ा जा सकता है. अनकटे वाक्यों में एक राज्य लेखक से जो लिखवाना चाहता है, वह पढ़ा जा सकता है. बहस्तरीयता और मेटाफिक्शन का यह प्रयोग दुर्लभ और रोचक है. इसे पढ़ते हुए कल्वीनो की 'इफ़ ऑन अ विंटर्स नाइट अ ट्रैवलर' बराबर याद आती है.
यह किताब इतनी अच्छी लगी है कि इस पर विस्तार से लिखने का मन है. राज्य, लेखक, सेंसर, सेल्फ़-सेंसर, प्रेम, दमन और अंतत: विरोध में की गई मॉकरी इसके कंटेंट को शक्ति देते हैं. और तकनीक, जैसा कि कहा ही, अत्यंत उन्नत तो है ही. अब यह मेरी अत्यंत प्रिय पुस्तकों में शामिल हो गई है.