Monday, May 9, 2016

सबद पर दस नई कविताएं



दस नई कविताएं सबद पर प्रकाशित हुई हैं. उनमें से एक नीचे है.
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व्‍युत्‍पत्तिशास्‍त्र

एक था चकवा. एक थी चकवी. दोनों पक्षी हर समय साथ-साथ उड़ते. अठखेलियां करते. पंखों से पंख रगड़ तपिश पैदा करते.

                                                      (भाषाशास्‍त्री नोट करें : प्रेम की उत्‍पत्ति 'साथ' से हुई.)

एक रोज़ शरारत में उन्‍होंने एक साधु की तपस्‍या भंग कर दी. साधु ने शाप दे दिया कि आज से तुम दोनों का साथ ख़त्‍म. जैसे ही दिन ढलेगा, चकवा नदी के इस किनारे होगा और चकवी नदी के उस किनारे.

                                                      (भाषाशास्‍त्री नोट करें : प्रेम की उत्‍पत्ति 'विरह' से हुई.)

दिन-भर चकवा और चकवी एक-दूसरे को पहचानते तक नहीं. जैसे ही अंधेरा छाता, वे उड़कर नदी के विपरीत छोरों पर चले जाते. वहां से सारी रात अपने प्रेम की वेदना की कविता गाते. मिलन की प्रतीक्षा करते.

                                                      (भाषाशास्‍त्री नोट करें : प्रेम की उत्‍पत्ति 'कविता' से हुई.)

रात-भर दोनों दुआ करते कि किसी तरह साधु ख़ुश हो जाए और अपना शाप वापस ले ले. लेकिन शाप देने के बाद साधु लापता हो गया. वह साधु शब्‍द में भी नहीं बचा. प्रेम को लगा शाप कभी वापस कहां होता है?

                                                      (भाषाशास्‍त्री नोट करें : प्रेम की उत्‍पत्ति 'शाप' से हुई.)

चकवी अक्‍सर मेरी कविताएं पढ़ती हैं. पढ़-पढ़कर रोती है. कहती है, 'चकवा जो गाता है, तुम वह लिखते हो. ऐसा आखि़र कैसे करते हो? तुम चकवा हो?'

भोली है. यह नहीं जानती, मैंने कभी कोई कविता दिन में नहीं लिखी.

                                                      (भाषाशास्त्री अब नोट करना बंद करें : प्रेम और कविता जब शुरू होते
                                                      हैं,तब भाषा का कोई काम नहीं बचता. इतिहास में जितने भी महान
                                                      प्रेमी हुए, उनमें एक भी भाषाशास्त्री न हुआ.)


पोस्‍ट-स्क्रिप्‍ट :
हर शाम चकवी पूछती है : 'रात-भर जागोगे? ऐसी कविता लिखोगे, जो नदी के दोनों किनारों को जोड़ दे?'