उन्हें पढ़कर हमेशा लगता है कि कविता के प्लेबैक में गद्य गाता है. विनोद कुमार शुक्ल के उपन्यास 'खिलेगा तो देखेंगे' से कुछ प्लेबैक:
- यह स्वतंत्र होने का प्रदर्शन है. चिडि़या जितनी स्वतंत्र होती, बिल्ली भी उतनी ही स्वतंत्र और उन्मुक्त होती. बिल्ली हमेशा दबोचने वाली ताक़त होती.
- तालाब के अंधेरे और पानी के अंदर के अंधेरे में कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं लगता होगा. इसलिए मछली को ऊपर का अंधेरा भी पानी लगता होगा. पानी के अंधेरे में पानी था. ज़मीन के अंधेरे में पानी नहीं था.
- चीज़ों को उसी तरह के साथ उसके अलावा भी देखने का अभ्यास होना था. छूटे हुए लोगों के साथ दुनिया छूट गई. एक छूटी हुई पाठशाला एक छूटे हुए गांव में होगी. छूटी हुई किराने की दुकान में छूटा हुआ चावल बिकता था.
- निरंतरता समय का गोत्र है, जैसे भारद्वाज गोत्र होता है.
- गांव में एक सुंदर पक्षी दिखा, क्या यह गुनाह की पुस्तक में दर्ज हो सकता था?
- लकड़ी की बंदूक़ से केवल धांय बोलने से गोली निकल जाती थी. पेड़ की डाल तोड़कर लड़के खेल-खेल में तलवार की तरह लड़ते.
- भागकर एक लड़की दृश्य में रात और दिन में छुपती है और अधेड़ होकर बच जाती है.
- ख़ुश होने के पहले बहाने ढूंढ़ने चाहिए और ख़ुश रहना चाहिए. बाद में ये बहाने कारण बन जाते. सचमुच की ख़ुशी देने लगते.
- रेलगाड़ी से एक देहाती स्टेशन का दृश्य उतर रहा था. एक यात्री उतरता, तो एक दृश्य की तरह उतरता. जाती हुई रेलगाड़ी का दृश्य रेलगाड़ी के साथ चला गया.
- वस्तुओं के समझदार होने में ख़तरा उनकी ग़लत समझ का होगा. ठीक समझ के लिए वस्तुओं की पाठशाला होती. एक समझदार वस्तु गुरुजी होंगे.
- जीने का तौर-तरीक़ा प्रतीकात्मक होने लगा था. ख़ाली पिंजड़े के अंदर तोते का प्रतीक मर चुका था. जाना है, जीना है, जैसा सुनाई दिया.
- मुन्नी के बाएं हाथ में सूर्य का झोला लटका था. सुबह-सुबह सूर्य के झोले में जि़ंदा प्रकाश कुलबुला रहा था.
- बुलबुल सीटी बजा रही थी, पर गौरैया दिख रही थी. बुलबुल के प्लेबैक से गौरैया गा रही थी.
- भूख की चिंगारी बुझाने के लिए आखि़री कौर खाना पड़ेगा. ऐसा नहीं था कि बाज पहला कौर खाकर चार दिन बाद आखि़री कौर खा लें.
- सचमुच के काम कठिन थे, लेकिन झूठमूठ की बीड़ी से सचमुच का नशा छूट गया. सचमुच की जिंदगी में सचमुच की हांसी.