हर पलंग के पास एक बुरा सपना होता है. कमर टिकाते ही जकड़ ले. हर घर में कुछ बूढ़ी रूहें रहती हैं. रात की नीरवता में किचन में कॉफ़ी की गिरी बोतल उठाने में पीठ पर आ लदें. हर नींद में एक ग़फ़लत होती है और हर ग़फ़लत एक भय को साथ ले आती है. सच होने का बीज हर सपने में छिपा होता है, चाहे अच्छा, चाहे बुरा. जैसे सच होने का यह बीज ही नींद के भीतर बेनियाज़ी से पैर हिलवा देता हो और लगता हो, बस, अभी एक खाई में गिर जाना है.
एक कामयाब नींद क्या होती है? उसमें प्रवेश कर लेना या सुबह ख़ुद को, अपनी जाग में सही-सलामत पा लेना? मेरी जाग क्या है? एक अनियंत्रित नींद ही तो है. अपनी जाग में ही ख़ुद को सही-सलामत पा लेने की क्या गारंटी? एक नाकाम नींद, एक नाकाम जाग... बीते कई दिनों का अफ़साना है.
एक बूढ़ा आया था. बता गया, रोज़ रात वह एक ऐसी गोली खाता है, जिससे उसके सपनों का बनैलापन ख़त्म हो जाता है. कहता है, स्मृतियों से परेशान है. उसकी गोली वाली विलक्षणता, स्मृतियों के जि़क्र मात्र से उड़ गई. मैंने कहा, शिव को स्मृतियों का संहारक कहा जाता है. हर जन्म में ब्रह्मा को शिव की स्तुति करनी होती है, ताकि वह खो चुकी स्मृति पा सकें. उसने अपनी किसी कहानी का जि़क्र करते हुए कहा, दुनिया का सारा साहित्य स्मृति और उसके परिष्कार से बनता है. स्मृतियों को बचाने के लिए लिखा जाता है. तो क्या लिखना शिव को चुनौती देने जैसा है?
उसे विदा करने के लिए सिगरेट की दुकान तक जाता हूं. बेतहाशा कोहरा है. अंधेरे में कोहरा. भवों पर बूंदों का आभास होता है. ठंडी पड़ गई नाक को उलटी हथेली से छूता हूं. बहुत भीतर से एक सांस छोड़ता हूं... जैसे सदियों वह फेफड़े में फंसी रही. गुलाबी कार्डिगन पहने एक स्त्री जा रही है. एक कार वाला बार-बार उसके पास अपनी कार खड़ी कर देता है. वह पलटकर देखती है, फिर आगे बढ़ जाती है. मैं दुकान वाले से माचिस मांगता हूं और बिना सिगरेट जलाए मुंह से निकलता कोहरा देखता हूं. कार थोड़ा आगे रुक गई है. स्त्री वहीं खड़े-खड़े शायद सुबक रही है. कार वाला उसे शॉल ओढ़ा रहा है और वह उसे झटक कर दूर कर रही है. वह शायद शॉल नहीं, किसी ताज़ा स्मृति को झटक रही है.
पूरी धरती ही एक पलंग है.
मैं प्रसन्न रहना चाहता हूं, पर पाता हूं, ज़्यादातर समय सिर्फ़ सन्न हूं.
Monday, December 29, 2008
Tuesday, December 9, 2008
माउथ ऑर्गन
भूले को फिर याद करने के सिलसिले में
याद करता ढंग से माउथ ऑर्गन बजाना
देर तक की पीं-पीं
सुनता भाषा सीखने के क्रम में
ता-ता करते बच्चे की कोशिश जैसे
कैलेंडर पर गोले लगे दिनों को
छोटे-छोटे छेदों से पार कर दूं
ऐसे कि लय की गांठ में बांधूं इलेक्ट्रॉनों-सी भटक-भवानी याददाश्त
बूढ़े के कमज़ोर फेफड़े बताते माउथ ऑर्गन के बारे में
टेप में लपेट लीं मैंने वे धुनें
सीधा-साफ़ जिन्हें छोड़ आया था वह तैरता हवा में
सुन जिन्हें याद आ जाती कोई बिसरेली हिचकी
पलट-पलट देखता पलटते रास्तों को
जिनकी दुर्गमता की सिंफनी बातों में कंपोज़ करता
हवा में कुछ लिखती अरैंजर उंगलियों से
कहता टेढ़े-मेढ़े रास्तों पर चलते लगा हमेशा
सीधे बिल्कुल सीधे
चला जा रहा सीधमसीधे
बार-बार चूमता अपने पैर वह आज
कहता हर नोटेशन पैर की तरह दिखता है
जिस पर सभ्यता के धड़ ने की है यह यात्रा
सिंथ के सारे बटनों पर अचानक फिराता उंगली
महज़ एक तार या बटन होता है गड़बड़
सदियां सरक जाती हैं उस तक पहुंचने में
बाक़ी सारे बटन तो महज़ बाक़ी बटन होते हैं
पीड़ा-भय को नहीं, छालों को दो मान्यता
महलों को नहीं मिस्त्री हाथों को
राम को मत दो शिवधनुष तोड़ने का श्रेय
विदेह शारंग को देख सको ऐसी दृष्टि पाओ
सुरों से नहीं असुरों से समझना
मिथिहास के सारे विदेह कोप नहीं क्यों
दैवीय षड्यंत्रों के भाजन हैं
जिसे वह बूझ नहीं सकता
धुएं से आचमन करता है उसके आगे
एक काला बिलौटा अचानक सड़क बीच
भौंचक तकता है दौड़ती गाडि़यों को
उसके दिमाग़ का नहीं पता मुझे
शरीर का संतुलन वह खो रहा है
इस गाड़ी के नीचे आ जाएगा अभी
अभी एक टायर धमका गया है
भौंचक है बिलौटा भौंचक है
रफ़्तार के आगे बेबस है
भीतर और बाहर की देहरी पर बैठा मैं
रोक देता हूं माउथ ऑर्गन बजाना
टेढ़े रास्ते हर किसी को नहीं लगते सीधे
शंख में फूंकी हर वायु ध्वनि नहीं बनती
फिर लगातार बजाता हूं माउथ ऑर्गन तब तक
उस पार सलामत पहुंच जाए बिलौटा
अबूझ के समक्ष प्रार्थना का एक और पद है यह
जिससे लड़ना मुश्किल है
कैसे निभ सकती है मित्रता उससे
माउथ भी क्या है सिवाय एक ऑर्गन के
शत्रु हैं जो मेरे कभी नहीं दिखते
हर छेद से निकली फूंक उसे खोजा करती बस
लौट आने के इंतज़ार में हम भूल जाते जिसकी दग़ाबाज़ी
त्वचा के मोम को बाल देखता छालों-विदेहों को
उसके प्रकाश में
अंतिम निर्वासन का पाथेय जमा करता है
पोटली में गठियाता है उन शब्दों को
जिन्हें चबाएं तो देह में
उगल दें तो सड़क पर ख़ून बहा करता है
कितना समस्यामूलक है सरलीकरण यह
एक ही वक़्त में एक ही शख़्स नायक होता है खलनायक भी
देहरी पर बैठा मैं बजा रहा माउथ ऑर्गन
वह जो दिखता नहीं, बिलाया जाने किस तल में
कैसे पहुंचूं उस तक पहले बूझ तो लूं
ज़रूरी है लाऊं? वे प्रैक्टिकल किताबें बेस्टसैलर
इक्कीसवीं सदी के मैनेजमेंट गुरुओं की
जिनमें हो टेढ़े को सीधा जानने का हुनर साफ़मसाफ़
***
याद करता ढंग से माउथ ऑर्गन बजाना
देर तक की पीं-पीं
सुनता भाषा सीखने के क्रम में
ता-ता करते बच्चे की कोशिश जैसे
कैलेंडर पर गोले लगे दिनों को
छोटे-छोटे छेदों से पार कर दूं
ऐसे कि लय की गांठ में बांधूं इलेक्ट्रॉनों-सी भटक-भवानी याददाश्त
बूढ़े के कमज़ोर फेफड़े बताते माउथ ऑर्गन के बारे में
टेप में लपेट लीं मैंने वे धुनें
सीधा-साफ़ जिन्हें छोड़ आया था वह तैरता हवा में
सुन जिन्हें याद आ जाती कोई बिसरेली हिचकी
पलट-पलट देखता पलटते रास्तों को
जिनकी दुर्गमता की सिंफनी बातों में कंपोज़ करता
हवा में कुछ लिखती अरैंजर उंगलियों से
कहता टेढ़े-मेढ़े रास्तों पर चलते लगा हमेशा
सीधे बिल्कुल सीधे
चला जा रहा सीधमसीधे
बार-बार चूमता अपने पैर वह आज
कहता हर नोटेशन पैर की तरह दिखता है
जिस पर सभ्यता के धड़ ने की है यह यात्रा
सिंथ के सारे बटनों पर अचानक फिराता उंगली
महज़ एक तार या बटन होता है गड़बड़
सदियां सरक जाती हैं उस तक पहुंचने में
बाक़ी सारे बटन तो महज़ बाक़ी बटन होते हैं
पीड़ा-भय को नहीं, छालों को दो मान्यता
महलों को नहीं मिस्त्री हाथों को
राम को मत दो शिवधनुष तोड़ने का श्रेय
विदेह शारंग को देख सको ऐसी दृष्टि पाओ
सुरों से नहीं असुरों से समझना
मिथिहास के सारे विदेह कोप नहीं क्यों
दैवीय षड्यंत्रों के भाजन हैं
जिसे वह बूझ नहीं सकता
धुएं से आचमन करता है उसके आगे
एक काला बिलौटा अचानक सड़क बीच
भौंचक तकता है दौड़ती गाडि़यों को
उसके दिमाग़ का नहीं पता मुझे
शरीर का संतुलन वह खो रहा है
इस गाड़ी के नीचे आ जाएगा अभी
अभी एक टायर धमका गया है
भौंचक है बिलौटा भौंचक है
रफ़्तार के आगे बेबस है
भीतर और बाहर की देहरी पर बैठा मैं
रोक देता हूं माउथ ऑर्गन बजाना
टेढ़े रास्ते हर किसी को नहीं लगते सीधे
शंख में फूंकी हर वायु ध्वनि नहीं बनती
फिर लगातार बजाता हूं माउथ ऑर्गन तब तक
उस पार सलामत पहुंच जाए बिलौटा
अबूझ के समक्ष प्रार्थना का एक और पद है यह
जिससे लड़ना मुश्किल है
कैसे निभ सकती है मित्रता उससे
माउथ भी क्या है सिवाय एक ऑर्गन के
शत्रु हैं जो मेरे कभी नहीं दिखते
हर छेद से निकली फूंक उसे खोजा करती बस
लौट आने के इंतज़ार में हम भूल जाते जिसकी दग़ाबाज़ी
त्वचा के मोम को बाल देखता छालों-विदेहों को
उसके प्रकाश में
अंतिम निर्वासन का पाथेय जमा करता है
पोटली में गठियाता है उन शब्दों को
जिन्हें चबाएं तो देह में
उगल दें तो सड़क पर ख़ून बहा करता है
कितना समस्यामूलक है सरलीकरण यह
एक ही वक़्त में एक ही शख़्स नायक होता है खलनायक भी
देहरी पर बैठा मैं बजा रहा माउथ ऑर्गन
वह जो दिखता नहीं, बिलाया जाने किस तल में
कैसे पहुंचूं उस तक पहले बूझ तो लूं
ज़रूरी है लाऊं? वे प्रैक्टिकल किताबें बेस्टसैलर
इक्कीसवीं सदी के मैनेजमेंट गुरुओं की
जिनमें हो टेढ़े को सीधा जानने का हुनर साफ़मसाफ़
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