ईश्वर के उपवन के सबसे सुंदर पक्षी ने जगजीत के गले को अपने सबसे मुलायम पंख से छुआ था। कश्मीरी कारीगरों की रेशमकला के कई किस्से इतिहास में मिलते हैं। उस कलाकारी को देख जहांगीर ने उसे ईश्वरीय हाथों की बुनावट कही थी। अगर उस कला का आवाज़ में अनुवाद किया जाए, तो निश्चित ही वह जगजीत सिंह की आवाज़ होगी।
कई गायकों को आप अकेले में सुनते हैं, लेकिन जगजीत आपको भीड़ के बीच भी अकेला कर देते हैं। सत्तर के दशक में महानगरीय आपाधापियों ने जब व्यक्ति के आत्म पर गहरी चोट करना शुरू कर दिया था, उसी दौरान उनकी आवाज़ रेशमी सुकून की तरह हमने अपने कानों में पहनी थी। मुंबई की ठसाठस भरी लोकल ट्रेन में जब कोई मोबाइल या आईपॉड का ईयरफोन कानों में खोंस उन्हें सुन रहा होता है, तो जगजीत उसे उस भीड़ से बाहर ले जाते हैं, एक नितांत निजी आत्म के क्षेत्र में खड़ा करते हैं। जिस अवस्था को आप घंटों की विपश्यना से प्राप्त करते हैं, उसी अवस्था को जगजीत अपनी आवाज़ में बुनी एक ग़ज़ल से उपलब्ध करा देते हैं। यह उनकी आवाज़ का वैभव है, जो एक साथ प्रेम, पीड़ा, उम्मीद, प्रतीक्षा और यक़ीन की अटल मीनारें आपके भीतर खड़ा करता है। जाने कितने होंगे, जिन्होंने प्रेम के अपने अनुभवों को जगजीत की आवाज़ में व्यक्त होते पाया होगा। महानतम प्रेमी मजनूं अगर अपनी दीवानगी को गाकर व्यक्त करता, तो वह जगजीत की ही आवाज़ होती। जैसे महानतम शायर ग़ालिब जगजीत की आवाज़ में फबे।
वह एक विनम्र और सकुचाई हुई आवाज़ थी। प्रेम से ज़्यादा संकोची कुछ नहीं होता। उसकी सांद्रता होंठों की बुदबुदाहट से ज़ाहिर होती है, चीख़ने से नहीं। जगजीत की आवाज़ में वह दर्द है, जो दबे पांव आता है, शोर नहीं करता और आपसे ख़ुद पर उस एतबार की मांग करता है, जो यह बता सके कि आपका रुदन बेआवाज़ होगा। वह होंठों के आधे खुलने पर निकली अनमनी-सी आवाज़ है, जो सबसे पहले मन को ही बांधती है। मन का पौधा शांति में उगता है। जगजीत की आवाज़ शांति की सिंचाई है। वह शास्त्रीयताओं के तने पर सुगमता की क़लम लगाते हैं और दिल को छू जाने वाली मख़मली सरलता और तरलता का गुलाब उगाते हैं।
वह विवशता के गायक हैं। उस विवशता के गायक, जिसमें यह हुनर है कि वह पराए दर्द को अपना बना ले। उसी तरह जैसे फुटपाथ पर बैठ अकेली रोती हुई स्त्री को हम कातरता से देखते हैं, घर लौटते हैं, तो पाते हैं कि हमारी विवशता के भी हाथ होते हैं, और उसने अपने हाथों में उस स्त्री का चेहरा थाम रखा है। वह स्त्री वहीं छूट गई है, लेकिन उसका रुदन हमारे साथ चला आया है। हमारे अकेलेपन में वह हमारे होने को परिभाषित करता है। जगजीत की आवाज़ उसी तरह हमारे होने की परिभाषा है।
कलाकार ईश्वर की सबसे प्यारी संतान होता है। हे ईश्वर! तुम जब भी अपनी बनाई दुनिया के तमाम दंद-फंद से कुछ पलों के लिए अलग होकर अकेले होना चाहते होगे, अपने आत्म के सबसे क़रीब बैठना चाहते होगे, मुझे यक़ीन है, उस समय तुम जगजीत सिंह को सुनते होगे। ईश्वर! अपनी आत्मा पर लगी हुई हर खुरच को तुम जगजीत की आवाज़ के मख़मल से पोंछा करते होगे। मुझे यक़ीन है।
(11 अक्टूबर को दैनिक भास्कर में प्रकाशित)