तुम्हारी परछाईं पर गिरती रहीं बारिश की बूंदें
मेरी देह बजती रही जैसे तुम्हारे मकान की टीन
अडोल है मन की बीन
झरती बूंदों का घूंघट था तुम्हारे और मेरे बीच
तुम्हारा निचला होंठ पल-भर को थरथराया था
तुमने पेड़ पर निशान बनाया
फिर ठीक वहीं एक चोट दाग़ी
प्रेम में निशानचियों का हुनर पैबस्त था
तुमने कहा प्रेम करना अभ्यास है
मैंने सारी शिकायतें अरब सागर में बहा दीं
धरती को हिचकी आती है
जल से भरा लोटा है आकाश
वह एक-एक कर सारे नाम लेती है
मुझे भूल जाती है
मैं इतना पास था कि कोई यक़ीन ही नहीं कर सकता
जो इतना पास हो वह भी याद कर सकता है
स्वांग किसी अंग का नाम नहीं
आषाढ़ पानी का घूंट है
छाती में उगा ठसका है पूस.