कमरे में घुसते ही उसे देखा. वह, सोफ़े के पास जो एक कॉर्नर रखा है, जिस पर अमूमन एक ट्रे में पानी से भरी मेरी केतली रखी होती है और पास ही हरे रंग का एक मग औंधा, और जहां अक्सर मेरे उंड़ेले जाने से कुछ बूंदें गिरी होती हैं, इन सबकी अनुपस्थिति में वह बैठी थी.
रहस्यकथाओं से अपने पुराने परहेज़ को ज़ाहिर करते हुए इसी पंक्ति में मैं यह कह दूं कि उसके वहां बैठे होने और मेरे उसे देख लेने का कोई मतलब नहीं था, क्योंकि उसे मरे हुए, कुछ ही दिनों में, सत्रह साल पूरे हो जाएंगे. यह किसी भूत को देखने जैसा नहीं था, वह हवा की तरह नहीं थी, उसने पारंपरिक सफ़ेद कपड़े भी नहीं पहने थे, उसके होने के बैकग्राउंड में कोई डरावना संगीत भी नहीं बज रहा था. फिर भी मैं जैसे ही कमरे में घुसा, उसे वहां बैठे देखा. वह चुप थी. जैसा कि उसे तस्वीरों में देखा है, तब की, जब उसके पास बोलने का वक़्त होता था, ताक़त नहीं.
अगले ही पल उसका ग़ायब हो जाना भी कोई हैरतअंगेज़ बात नहीं. ऐसा होता आया है. वह पहले भी ग़ायब होने के लिए आती रही है. वह जितने भी दिन रही जीवन में, उन्हें इतने कम दिन कहा जा सकता है कि अब इतने समय बाद घूम कर देखा जाए, तो वे दिन कुछ लम्हों से ज़्यादा नहीं लगते. और जीवन के ज़्यादातर लम्हे जीवन में इसीलिए आते हों, मानो उन्हें भुला दिया जाना हो. हम लगातार किसी की तस्वीर न देखें, तो एक दिन उसका चेहरा भूल जाते हैं. और भीतर चेहरे का जो चित्र बनाकर रखते हैं, वह असल से कितना अलग होता है, यह जांचने का हमारे पास कोई ज़रिया नहीं होता. मुझे पता है, मैं उन सारी स्त्रियों के चेहरे भूल चुका हूं, जिनसे दस-बारह साल की उम्र में मैंने शिद्दत से प्रेम किया था. उस स्त्री का भी, जो नवंबर के आखि़री दिनों में बुख़ार से तपते मेरे चेहरे पर झुकी थी, जिसे मैं चुंबन के पहले अनुभव की तरह याद करता हूं; वह भय और कंपकंपाहट अलबत्ता अब भी याद है, जिसे सबने बुख़ार के प्रमाणों-सा माना था.
वे सभी स्त्रियां जिनके लिए स्त्री का संबोधन उनकी उम्र के हिसाब से नहीं, महज़ उनकी क़ुदरती उपस्थिति के लिहाज़ से है, लौटकर इस तरह नहीं आईं कि एक रात जब मैं किताबों से अव्यवस्थित अपने कमरे में घुसूं और एक मोड़ लेकर उस जगह तक पहुंचूं, जहां काग़ज़ों में लिपटे हुए पसंदीदा कि़स्मों के टी-बैग्स पड़े हों, केतली का बटन दबाने की सोचूं, उससे पहले ही उस अजीब आकार वाले कॉर्नर पर बैठी हुई दिख जाएं! वे इस तरह लौटकर नहीं आतीं, शर्मसार और चिंतित करने के लिए नहीं, किसी उल्लास का दाय पाने को नहीं, तुम्हारे आसान-से मायाजालों को उधेड़ने भी नहीं.
क्या़ तुमने इससे कहा था- ‘मैं तुम्हें कभी नहीं भूल सकता’? तो क्या वह इसी बयान को चुनौती देने आई है? यह सत्रह साल से बीच-बीच में आती रही, और कभी कुछ नहीं कहा. एकदम चुप. सत्रह साल लंबी चुप्पी .
बाइबल में जब ईश्वर ने सोडोम नगरी को नष्ट करने का आदेश जारी किया था, तो तीन फ़रिश्ते उसे पूरा करने उतरे थे. उतरते हुए उनमें से दो ने पहले कोसा था, और बाद में जाते हुए आशीष दिया था. तीसरा लगातार चुप था.
शायद वह लंबी चुप्पी का फ़रिश्ता था. जैसे कि ये लड़की, जो सत्रह साल की उम्र वाली एक चुप्पी लिए धीरे से उतरती है मुझ पर.
चुप फ़रिश्ते पक्षहीन नहीं होते. वे शायद कोसना और आशीषना से इतर एक तीसरा पक्ष लिए चलते हैं. चुप्पी का अपना एक पक्ष होता है. एक चुप पक्ष.
चुप फ़रिश्ते पक्षहीन नहीं होते. वे शायद कोसना और आशीषना से इतर एक तीसरा पक्ष लिए चलते हैं. चुप्पी का अपना एक पक्ष होता है. एक चुप पक्ष.
वांग कार-वाई की एक फि़ल्म में नायक एक खंडहर की दीवार में बने छेद में मुंह लगाकर अपने जीवन का क़ीमती रहस्य बोलता है. फिर घास और गीली मिट्टी से उस छेद का मुंह बंद कर देता है. इससे वह रहस्य हमेशा के लिए उस छेद के भीतर छिपा-सुरक्षित रहेगा. मेरे पास दीवारों में बहुत सारे छेद हैं, पर कोई रहस्य नहीं. तीस से ज़्यादा की मेरी उम्र रहस्यों को निरस्त करती है. और यह निरस्त करना आत्मकथाओं के विरुद्ध्ा है.
यह स्त्री जो यहां थोड़ी देर पहले आई थी, यह भी कोई रहस्य नहीं, क्योंकि मैं इसका चेहरा भी भूल चुका हूं और पक्का नहीं कह सकता कि यह वही थी, जो सत्रह साल से इसी तरह ग़ायब हो जाने के लिए आती रही. रहस्यकथाओं से मेरा पुराना परहेज़ है. मैं उनका आखिरी पृष्ठ पहले पढ़ना चाहता हूं. पर हर कहानी आखिरी पृष्ठ तक पहुंचे, यह कोई ज़रूरी है क्या? कुछ कहानियां मेरी उम्र से लंबी हैं. मैं उनकी जिल्द में बंधने का अनिच्छुक बीच के पन्नों में से एक हूं.
रहस्य मेरे भीतर से होकर गुज़रेगा, लेकिन उसकी अंतिम परिणति तक मैं उसके साथ नहीं रह पाऊंगा.
हम दोनों एक ही जिल्द में रहेंगे, लेकिन हमारे बीच कई पन्नों का फ़ासला होगा.
रहस्य मेरे भीतर से होकर गुज़रेगा, लेकिन उसकी अंतिम परिणति तक मैं उसके साथ नहीं रह पाऊंगा.
हम दोनों एक ही जिल्द में रहेंगे, लेकिन हमारे बीच कई पन्नों का फ़ासला होगा.
केतली का बटन दबाकर चालू करता हूं. पानी गरम होने की सनसनाहट गूंज रही है. मैं यह तय नहीं कर पाता कि हरी चाय पीनी है या लेमन. डिब्बे में सिर्फ़ एक सुगर क्यूब बची है. उस औरत के पैर जहां लटक रहे थे, वहां एक टी-बैग गिरा हुआ है. मैं किताबों के बीच से एक और मग उठाता हूं. उसमें वह टी-बैग डालता हूं. सुगर क्यूब भी. उसे घुलता वहीं रख देता हूं.
और दूसरे मग में बिना शक्कर की अपनी चाय लिए बाहर बाल्कनी में चला जाता हूं. सड़क पर पीली बत्तियां हैं, कुछ ठीक पेड़ों के सिर पर चमक रही हैं और नीचे सड़क पर रोशनी के साथ छायाएं भी फेंक रही हैं. इनसे भी एक रहस्यलोक बनता है, रात को आधा चमकता हुआ.
हो सकता है, सत्रह साल बाद वह आई हो पास खड़े हो एक कप चाय साथ पीने के लिए.