Friday, November 27, 2009

सेल्फ पोर्ट्रेट


एडम ज़गायेवस्‍की की एक और कविता


कंप्‍यूटर, पेंसिल और एक टाइप राइटर के बीच
गुज़र जाता है मेरा आधा दिन। एक दिन गुज़र जाएगी आधी सदी।
मैं एक अजनबी शहर में रहता हूं और कई बार
अजनबियों से ऐसे मुद्दों पर बात करता हूं जो ख़ुद मेरे लिए अजीब होते हैं।
मैं संगीत बहुत सुनता हूं : बाख़, मालर, शोपां, शोस्‍ताकोविच।
मैं संगीत में तीन चीज़ें देखता हूं : कमज़ोरी, ताक़त और दर्द।
चौथी चीज़ का कोई नाम नहीं।
मैं जीवित या मर चुके कवियों को पढ़ता हूं जो मुझे सिखाते हैं
दृढ़ता, आस्‍था और गौरव। मैं बड़े दार्शनिकों को
समझने की कोशिश करता हूं- लेकिन अमूमन उनके
बेशक़ीमती विचारों की खुरचन तक ही पहुंच पाता।
मुझे पेरिस की गलियों में देर तक चलना पसंद है
और साथ के लोगों को देखना जो ईर्ष्‍या
क्रोध और अनगिनत इच्‍छाओं के कारण रफ़्तार बढ़ा लेते हैं
चांदी के सिक्‍के को देखना
जो एक हाथ से दूसरे हाथ में जाता है और धीरे-धीरे
अपना गोल आकार खो देता है (उस पर से मिट जाता है सम्राट का चेहरा)
पास ही होते हैं पेड़ जो कुछ कहते नहीं
सिवाय हरियाली के, अद्वितीय संपूर्णता में
काली चिडि़यां नाप लेती हैं खेतों को
स्‍पैनी विधवाओं की तरह सब्र से करती हैं किसी का इंतज़ार
मैं अब जवान नहीं रहा, लेकिन कोई हमेशा मुझसे उम्र में बड़ा रहा
मुझे पसंद है गहरी नींद, जब लेता हूं अपने अस्तित्‍व से विराम
गांव की सड़कों पर तेज़ रफ़्तार में चलाना मोटरसाइकिल
जब खिले हुए दिनों में काले पीपल और मकान ऊंचे होकर घुल जाते हैं आसमान में
म्‍यूजि़यम में कभी-कभार पेंटिंग्‍स मुझसे बात करती हैं
और विडंबनाएं अचानक खो जाती हैं ।
मुझे पसंद है निहारना पत्‍नी का चेहरा।
हर रविवार फ़ोन करता हूं पिता को।
हर दूसरे हफ़्ते मिलता हूं दोस्‍तों से
और इस तरह जताता हूं वफ़ादारी।
मेरे देश ने ख़ुद को एक दानव से मुक्‍त कर लिया। मैं सोचता हूं
दूसरी आज़ादी भी मिले जल्‍द ही।
मैं इस बारे में कुछ कर सकता हूं ? मुझे नहीं पता।
यक़ीनन मैं समंदर का बेटा नहीं
जैसा कि अंतोनियो मचादो ने अपने बारे में लिखा है
लेकिन बेटा हूं हवा, पुदीने और संगीत के साज़ों का
ऊंची दुनिया के सारे रास्‍ते नहीं कटते
चौराहों की तरह मेरी जिंदगी के रास्‍तों से
मेरी जिंदगी जो अब तक मेरी ही है


Thursday, November 26, 2009

वर्मीर

यान वर्मीर की पेंटिंग और एडम ज़गायेवस्‍की की कविता



वर्मीर की नन्‍ही लड़की जो अब काफ़ी प्रसिद्ध हो गई है
मुझे देखती है. एक मोती देखता है मुझे.
वर्मीर की नन्‍ही लड़की के होंठ
सुर्ख़, नम और चमकीले हैं

ओह वर्मीर की नन्‍ही लड़की, ओह मोती
नीली पगड़ी : तुम पूरी तरह रोशनी हो
और मैं बना परछाइयों से
रोशनी नीचे देखती है परछाई को
पुरखों की तरह, शायद तरस खाते हुए.

***

Wednesday, November 4, 2009

narimi narimi said the bird



Nadia Danon.  Not long before she died a bird
on a branch woke her.
At four in the morning, before it was light, narimi
narimi  said the bird.

What will I be when I’m dead? A sound or a scent
or neither. I’ve started a mat.
I may still finish it. Dr. Pinto
is optimistic.: the situation is stable. The left one
is a little less good. The right one is fine. The X-rays are clear. See
for yourself: no secondaries here .

***

The bird wakes her. Lying on her back with her eyes shut, thinking
What’s left apart from the place mat she’s started and may still finish.
What’s left is a wish that the pain will go away
that it will all go away and stop bending over her.
She lies as though she has left her launching pad and is now
moving along the Milky Way and already the planet
from which she was launched is far off, has shrunk till it can no longer be
distinguished from tens of thousands of other stars.
A bird on a branch calls to her and Nadia is lying
wiping away the good and the bad, like a woman who has nearly
finished washing the floor, walking backward toward the door, drawing
the mop toward her, all she has left to do is to wipe away the traces on
the wet floor of her won footprints. The pain is still sleeping: her hostile
body has not woken with her with the sound of the bird, with all its knives.
Even shame, her lifetime companion, has gone. It has ceased to gnaw at her.
Everything is letting go of her and Nadia is letting go of everything,
like a pear from a branch: the pear is not picked but a ripened pear drops.
Right now at four in the morning Nadia is the most alone she has ever been,
not alone like a sick woman hearing a bird in a garden but alone like a bird
with no garden no branch no wing.


-          From The same sea, a novel in verse by Amos oz