Tuesday, December 9, 2008

माउथ ऑर्गन

भूले को फिर याद करने के सिलसिले में
याद करता ढंग से माउथ ऑर्गन बजाना
देर तक की पीं-पीं
सुनता भाषा सीखने के क्रम में
ता-ता करते बच्चे की कोशिश जैसे
कैलेंडर पर गोले लगे दिनों को
छोटे-छोटे छेदों से पार कर दूं
ऐसे कि लय की गांठ में बांधूं इलेक्ट्रॉनों-सी भटक-भवानी याददाश्त

बूढ़े के कमज़ोर फेफड़े बताते माउथ ऑर्गन के बारे में
टेप में लपेट लीं मैंने वे धुनें
सीधा-साफ़ जिन्हें छोड़ आया था वह तैरता हवा में
सुन जिन्हें याद आ जाती कोई बिसरेली हिचकी
पलट-पलट देखता पलटते रास्तों को
जिनकी दुर्गमता की सिंफनी बातों में कंपोज़ करता
हवा में कुछ लिखती अरैंजर उंगलियों से

कहता टेढ़े-मेढ़े रास्तों पर चलते लगा हमेशा
सीधे बिल्कुल सीधे
चला जा रहा सीधमसीधे

बार-बार चूमता अपने पैर वह आज
कहता हर नोटेशन पैर की तरह दिखता है
जिस पर सभ्‍यता के धड़ ने की है यह यात्रा
सिंथ के सारे बटनों पर अचानक फिराता उंगली
महज़ एक तार या बटन होता है गड़बड़
सदियां सरक जाती हैं उस तक पहुंचने में
बाक़ी सारे बटन तो महज़ बाक़ी बटन होते हैं

पीड़ा-भय को नहीं, छालों को दो मान्यता
महलों को नहीं मिस्त्री हाथों को
राम को मत दो शिवधनुष तोड़ने का श्रेय
विदेह शारंग को देख सको ऐसी दृष्टि पाओ
सुरों से नहीं असुरों से समझना
मिथिहास के सारे विदेह कोप नहीं क्यों
दैवीय षड्यंत्रों के भाजन हैं

जिसे वह बूझ नहीं सकता
धुएं से आचमन करता है उसके आगे

एक काला बिलौटा अचानक सड़क बीच
भौंचक तकता है दौड़ती गाडि़यों को
उसके दिमाग़ का नहीं पता मुझे
शरीर का संतुलन वह खो रहा है
इस गाड़ी के नीचे आ जाएगा अभी
अभी एक टायर धमका गया है

भौंचक है बिलौटा भौंचक है
रफ़्तार के आगे बेबस है

भीतर और बाहर की देहरी पर बैठा मैं
रोक देता हूं माउथ ऑर्गन बजाना
टेढ़े रास्ते हर किसी को नहीं लगते सीधे
शंख में फूंकी हर वायु ध्वनि नहीं बनती
फिर लगातार बजाता हूं माउथ ऑर्गन तब तक
उस पार सलामत पहुंच जाए बिलौटा

अबूझ के समक्ष प्रार्थना का एक और पद है यह

जिससे लड़ना मुश्किल है
कैसे निभ सकती है मित्रता उससे
माउथ भी क्या है सिवाय एक ऑर्गन के
शत्रु हैं जो मेरे कभी नहीं दिखते
हर छेद से निकली फूंक उसे खोजा करती बस

लौट आने के इंतज़ार में हम भूल जाते जिसकी दग़ाबाज़ी
त्वचा के मोम को बाल देखता छालों-विदेहों को
उसके प्रकाश में
अंतिम निर्वासन का पाथेय जमा करता है
पोटली में गठियाता है उन शब्दों को
जिन्हें चबाएं तो देह में
उगल दें तो सड़क पर ख़ून बहा करता है
कितना समस्यामूलक है सरलीकरण यह
एक ही वक़्त में एक ही शख़्स नायक होता है खलनायक भी

देहरी पर बैठा मैं बजा रहा माउथ ऑर्गन
वह जो दिखता नहीं, बिलाया जाने किस तल में
कैसे पहुंचूं उस तक पहले बूझ तो लूं
ज़रूरी है लाऊं? वे प्रैक्टिकल किताबें बेस्टसैलर
इक्कीसवीं सदी के मैनेजमेंट गुरुओं की
जिनमें हो टेढ़े को सीधा जानने का हुनर साफ़मसाफ़

***

15 comments:

नीरज गोस्वामी said...

टेढ़े रास्ते हर किसी को नहीं लगते सीधे
शंख में फूंकी हर वायु ध्वनि नहीं बनती
फिर लगातार बजाता हूं माउथ ऑर्गन तब तक
उस पार सलामत पहुंच जाए बिलौटा
क्या कहने हैं...भाई कमाल की रचना...वाह.
नीरज

Ashok Kumar pandey said...

जियो गीत भाई।
शानदार कविता

डॉ .अनुराग said...

लाजवाब .....खास तौर से शुरूआती कुछ पंक्तिया

Unknown said...

ऊवा......................ह।

एस. बी. सिंह said...

कितना समस्यामूलक है सरलीकरण यह
एक ही वक़्त में एक ही शख़्स नायक होता है खलनायक भी

कही गहरे तक छूती कविता। आभार

Bahadur Patel said...

bahut dino bad aye par geet bhai maja aya.kamal!

Anonymous said...

टेढ़े रास्ते हर किसी को नहीं लगते सीधे
शंख में फूंकी हर वायु ध्वनि नहीं बनती
फिर लगातार बजाता हूं माउथ ऑर्गन तब तक
उस पार सलामत पहुंच जाए बिलौटा
क्या कहने हैं...भाई कमाल की रचना...वाह.
नीरजजियो गीत भाई।
शानदार कवितालाजवाब .....खास तौर से शुरूआती कुछ पंक्तियाऊवा......................ह।कितना समस्यामूलक है सरलीकरण यह
एक ही वक़्त में एक ही शख़्स नायक होता है खलनायक भी

कही गहरे तक छूती कविता। आभार
और यह टिप्पीbahut dino bad aye par geet bhai maja aya.kamal!
क्या मन को संतोष मिला

Anil Pusadkar said...

अद्भुत्।

Arun Aditya said...

देर आयद, दुरुस्त आयद।
जब तक बिलौटा सड़क को पार न कर जाए माउथ आर्गन बजते रहना चाहिए।
गहन संवेदना की कविता है। बधाई।

ghughutibasuti said...

सुन्दर और अनोखी !
घुघूती बासूती

Geet Chaturvedi said...

आप सभी का शुक्रिया मित्रो.

ravindra vyas said...

क्या बजाया है प्यारे। खूब मजा आया। जिअो, जुग जुग।

ओम निश्‍चल said...

priyvar geet,
kavita par meri badhayee swikar karen.
Om Nishchal,Patna
09955774115

ओम निश्‍चल said...

priyvar geet,
kavita par meri badhayee swikar karen.
Om Nishchal,Patna
09955774115

sarita sharma said...

mouth organ ki upma se jeewan ki guthiyon ko samajhne ki koshish karne wali maulik drishtikon ki adbhut kavita.tedhe raston par seedha chalne, vyakti ka 1 sath nayak tatha khalnayak hone aur mahlon ki bajay mistri hathon ko manyata dene ke liye man ke sur ko sadhna hota hai jo behad kathin hai.mouthorgan baja kar sadak par karte bilote ki salamti ki kamna vastutah kalaon ke madhyam se gadbadiyon ko suljhane ki koshish hai. kisi best seller ko padhkar sanvedansheelta to katai nahin seekhi ja sakti hai bas kuch dhrttayen jaroor aa jati hain jo logon ko apna kam nikalne ki kala sikhati hain.