Friday, April 27, 2012

नेपथ्‍य में भव्‍यता





वाराणसी, राम कुमार. 


'मेघदूतम' में कालिदास, उज्‍जैन को स्‍वर्ग से टूटकर गिरा एक टुकड़ा कहते हैं. जब मेघदूत इस शहर की छत से गुज़रता है, तो बस, इसे निहारता रहता है, इसकी और इसके लोगों की तारीफ़ में कई पन्‍ने लिखे हैं उन्‍होंने. यक्ष अपनी स्‍त्री के प्रेम में है, विछोह में है, उसी तरह जल से भरे उस मेघ को अगर पूरे काव्‍य में किसी से प्रेम हुआ जान पड़ता है, तो उज्‍जैन से ही हुआ होगा. वह इतनी प्रेमिल आंखों से इस शहर को निहारता है.

कई बार मैं सोचता हूं कि जब मेघ, अलकापुरी पहुंच गया होगा, तो उसके बाद वह ख़ुद एक विचित्र कि़स्‍म के बिछोह से पीडि़त हुआ होगा-- उज्‍जैन का बिछोह. वह किसे दूत बनाएगा ? उज्‍जैन जैसे शहर, क्‍या अघोषित और अन-अभिव्‍यक्‍त प्रेम को अभिशप्‍त हैं ? महाकाल उज्‍जैन में रहते हैं, लेकिन बसेरा उनका कैलाश है, नगरी उनकी काशी है. अशोक अपने जीवन के महत्‍तम पाठ उज्‍जैन में पढ़ते हैं, लेकिन उनका अस्तित्‍व मगध में रहता है, राजगृह में टहलता है, कलिंग में वह शेखर हैं. महेंद्र और संघमित्रा, विदिशा चले गए हैं, श्रीलंका के खाते में हैं. वर:मिहिर का नाम ख़ुद उज्‍जैन हिचक से लेता है कि उन्‍हें शहर से नहीं, आसमान से प्रेम था. और वह बार-बार बग़दाद भाग जाना चाहते थे.

क्‍या अतुल्‍य भव्‍यता भी आपको द्वितीयक बनने को प्रशस्‍त करती है ? ऐसा होता है. सारी भव्‍यताएं एक दिन नेपथ्‍य में चली जाती हैं.

बहुत कम शहर ऐसे बचे हैं, जो एक साथ दो युगों में जीते हैं. पुराने मिथकीय शहर नष्‍ट हो चुके हैं. ट्रॉय कहीं नहीं है, कुन्‍स्‍तुनतूनिया अब अत्‍याधुनिक इस्‍ताम्‍बुल है, रोम अपने शव का म्‍यूकस है. पटना, नालंदा, कश्‍मीर अपने भव्‍य अतीत के वर्तमान चुटकुले या दर्द हैं. उज्‍जैन इसलिए भी विरल है कि वह अब भी एक अवधारणात्‍मक इतिहास की धूल में जि़ंदा है. कई सारे नगरों के साथ ऐसा नहीं हो पाता. 

विक्रमोर्वशीयम में कालिदास ने कथा की पृष्‍ठभूमि प्रतिष्‍ठानपुर को बनाया है. विद्वानों में एकराय नहीं कि यह प्रतिष्‍ठानपुर है कौन-सी जगह? उन्‍होंने जैसा वर्णन किया है, उसके आधार पर कुछ लोग उसे प्रयाग पास स्थित एक छोटा-सा क़स्‍बा झूंसी मानते हैं. महादेवी वर्मा के रेखाचित्रों में झूंसी कई बार आता है. लगभग चार बड़े राजवंशों के दौरान महत्‍वपूर्ण स्‍थान रहे प्रतिष्‍ठान के नाश की कथा भी कम दिलचस्‍प नहीं है. चौदहवीं सदी में यहां हड़बोंग नामक राजा का राज था. कहते हैं, अन्‍यायी था. एक बार एक पीर उसके राज्‍य में आए और राजा उनका यथोचित सम्‍मान न कर पाया, उल्‍टे अपमान कर बैठा. तब पीर ने क्रुद्ध होकर आसमान में चमकने वाले मिरिख सितारे को हुक्‍म दिया कि वह इस नगर पर वज्र की तरह गिरे. ग़लती राजा की थी, दंड पूरे नगर को मिला. नगर झुलस गया. बर्बाद हो गया. झुलसने के कारण उसका नाम झूंसी पड़ा. 

अगर ऐसी कहानियों में सत्‍यता हो, तो सबसे बड़ी बात निकलकर आती है कि एक राजा की ग़लती के कारण सिर्फ़ नगर और उसके नागरिकों को ही दंड नहीं मिलता, बल्कि पूरा इतिहास दंडित हो जाता है. क्‍योंकि कोई भी नगर कभी भी सिर्फ़ वर्तमान नहीं होता. इस कथा में वह पीर शायद अतीत का प्रतीक है. जिन नगरों और राजाओं को अतीत का सम्‍मान करना नहीं आता, उन पर मिरिख, वज्र बनकर टूटता है. झूंसी को भी नहीं पता कि उसका झुलसना समय के एक विशाल वृक्ष का झुलसकर लुप्‍त हो जाना है.

शहरों से प्रेम अपने अस्तित्‍व से प्रेम की तरह है. बहुत सारे लोग बदन पर कपड़ों की जगह शहर ओढ़कर चलते हैं. वे भाषा नहीं बोलते, शहर बोलते हैं. तभी किसी को देखते ही आप पहचान जाते हैं कि यह बठिंडा का है. और किसी की बोली सुनते ही आप कह देते हैं कि यह भोपाली है. यह ऐसा समय है, जिसमें सबसे ज़्यादा क्राइसिस आइडेंटिटी की है. कुछ लोग अपनी आइडेंटिटी को खो चुके हैं. कुछ के पास है, लेकिन वे उस आइ‍डेंटिटी से दूर भागते हैं. और कुछ अपनी आइडेंटिटी को त्‍यागकर दूसरी आइडेंटिटी ग्रहण कर लेना चाहते हैं. जैसे एक क़स्‍बाई, लगातार चाहता है कि उसकी आइडेंटिटी मुंबई-दिल्‍ली के साथ जुड़ जाए. जैसे मुंबई-दिल्‍ली में कई लोग लगातार चाहते हैं कि उनकी आइडेंटिटी न्‍यूयॉर्क-लंदन से जुड़ जाए. 

इस तरह का संघर्ष अपने इतिहास के साथ संघर्ष है. यह अपने शरीर से अपनी परछाईं को हटा देने का संघर्ष है.


(27 अप्रैल को दैनिक भास्‍कर में प्रकाशित.)

Saturday, April 21, 2012

पिकासो की प्रेमिकाएं






पिकासो की पेंटिंग 'सपना'. इसमें मैरी वॉल्‍टर मॉडल के रूप में हैं.

पिकासो का प्रेम-जीवन बहुत डरावना है. पिकासो ने कई बार प्रेम किया और हर बार वह ख़ुद प्रेम से दूर हुए. कई बार मुझे लगता है कि प्रेम भी उनके लिए एक प्रयोग था. वह न जाने किस चीज़ की तलाश कर रहे थे. उनके जीवन में कई प्रेम के बारे में पता चलता है, लेकिन सात प्रेमिकाओं ने उनकी कला पर गहरा प्रभाव डाला. पिकासो के कलात्‍मक जीवन में आलोचक सात मोड़ मानते हैं. द ब्‍लू पीरियड, द रोज़ पीरियड यानी गुलाब-काल, द न्‍यूड, क्‍यूबिज़्म, अफ्रीका से प्रभावित काल, क्‍लासिक दौर और सर्रियलिस्‍ट आदि हिस्‍से. हर प्रेम के बाद पिकासो के चित्रों में बदलाव आया. 


1904 : 
फरनांदे ओलिवर, पिकासो की पहली प्रेमिका थी. उसके साथ रहकर पिकासो ने 'द रोज़ पीरियड' पर काम किया. उस दौरान की अधिकांश पेंटिंग्‍स में जिस महिला की छवि है, वह ओलिवर ही है. दोनों नौ साल तक साथ रहे. पिकासो बहुत ईर्ष्‍यालु और पज़ेसिव प्रेमी थे. ओलिवर पर इतना संदेह करते थे कि कुछ घंटों के लिए बाहर जाना हुआ, तो ओलिवर को कमरे में बंद कर देते और बाहर से ताला लगा देते थे. ऐसा बरसों तक होता रहा, जब तक कि उनके जीवन में एवा गूल न आई. 


1913 :
एवा गूल के साथ भी पिकासो ओलिवर की तरह ही रहना चाहते थे, लेकिन यहां टकराव हुआ. उनका प्रेम-संबंध बहुत छोटा रहा. एवा ने दूर होने की धमकी दी, तो पिकासो ख़ुद ही दूर हो गए. एवा इसे सहन नहीं कर पाई, उसे टीबी हो गई. मनोरोगों और अवसाद से जूझते 1915 में उसकी मृत्‍यु हो गई. उसकी मृत्‍यु ने पिकासो को तोड़ दिया. क्‍यूबिज़्म पर किए गए तमाम कामों में आप पिकासो का एवा के प्रति प्रेम देख सकते हैं. क्‍यूबिज़्म में पिकासो पैशन से भरे हुए हैं.


1918 :
रूसी नर्तकी ओल्‍गा कोकलोवा से शादी करने से पहले पिकासो का ओल्‍गा की कई मित्रों से प्रेम रहा. ओल्‍गा रूसी नर्तकी थी और यूरोप के अभिजात्‍य में उसकी गहरी पैठ थी. उसने पिकासो को कई हाई-प्रोफ़ाइल लोगों से मिलाया, उनकी कला को पेरिस के एलीट के बीच प्रस्‍तुत किया. पिकासो मूलत: बोहेमियन स्‍वभाव के थे और ओल्‍गा पूरी तरह एलीट. दोनों में नहीं जमनी थी. नहीं जमी. ओल्‍गा से मुलाक़ात ही वह समय था, जब पिकासो ने बैलेरिना में पेंटिंग के प्रभावों को बदल दिया. उसी दौरान फिल्‍मकार ज़्यां कोक्‍त्‍यू से उनकी मित्रता गहरी हुई. कोक्‍त्‍यू ने कहीं लिखा, 'पिकासो मुझे रोज़ हैरत में डाल देते हैं. वह कई सुंदर आकार बनाते हैं, और घोषित सुंदरता से कुरूप आकारों की तरफ़ बढ़ते हैं. फिर वह सुंदर, सरल आकारों, चित्रों को रिजेक्‍ट कर देते हैं.' पिकासो ने यहां एक नया सौंदर्यशास्‍त्र गढ़ा था. लोगों ने जब उसे देखा, तो हैरान रह गए थे. उसे तुरत स्‍वीकृति नहीं मिली थी. यह ओल्‍गा के साथ पिकासो के प्रेम व कटु संबंधों का प्रतिफलन था. इनमें पिकासो का रंग-प्रयोग बहुत आक्रामक हो गया था. वहां ओल्‍गा भी अवसाद और पागलपन से घिर रही थी. 17 साल साथ रहने के बाद दोनों अलग हो गए. ओल्‍गा को नर्वस ब्रेकडाउन हो गया. वह विक्षिप्‍तों-सी हो गई. वह हमेशा उनका इंतज़ार करती रही.  ओल्‍गा को जब भी यह लगता कि पिकासो का प्रेम अब फलां लड़की के साथ चल रहा है, तो वह उस लड़की से संपर्क करती और पिकासो से दूर होने के लिए ध‍मकियां देती. धमकाते-धमकाते वह रोने लगती और धमकी, गुज़ारिश की भाषा में बदल जाती, 'मुझे मेरा पाब्‍लो लौटा दो.'  पिकासो ने उसे तलाक़ नहीं दिया था, क्‍योंकि ऐसा करने पर संपत्ति का आधा हिस्‍सा उसे देना होता. पिकासो धन के मामले में बेहद कंजूस थे. ओल्‍गा अपनी मृत्‍यु तक पिकासो की पत्‍नी बनी रही. 


1927 :
45 साल के पिकासो के जीवन में सत्रह साल की मैरी वॉल्‍टर आई. दोनों ने अपना प्रेम और रिश्‍ता गुप्‍त रखा. पिकासो उस समय ओल्‍गा के साथ रह रहे थे. वह किसी भी तरह इस रिश्‍ते को छुपा लेना चाहते थे, लेकिन वह अब तक सेलेब्रिटी बन चुके थे और ऐसा होना मुश्किल था. वह उनकी पेंटिंग्‍स के लिए मॉडल का काम करने लगी. पिकासो ने अपने घर के सामने एक मकान किराए पर लेकर मैरी को दिया. कुछ ही बरसों बाद उन्‍होंने एक महलनुमा स्‍टूडियो बनाया और मैरी वहां रहने लगी. 1935 में मैरी ने पिकासो की बेटी को जन्‍म दिया. इसके बाद ओल्‍गा सहित सभी को पिकासो के इस संबंध के बारे में जानकारी मिल गई. ओल्‍गा ने इसी घटना के बाद पिकासो को छोड़ दिया. मैरी हमेशा पिकासो से शादी करना चाहती थी. 'गेर्निका' बनाने के ठीक पहले क़रीब पांच साल तक पिकासो की पेंटिंग्‍स में बहुत चमकीले रंग, प्रसन्‍न चेहरे वाली एक युवती और आह्लाद के स्‍ट्रोक्‍स दिखते हैं. वे सब मैरी वॉल्‍टर है. चित्रों में अनूदित प्रेम. बेटी के जन्‍म के दो साल बाद पिकासो का एक और प्रेम होना था डोरा मार से. इस प्रेम के बारे में जानकारी मिलते ही मैरी बहुत दुखी हुई. वह अपनी बेटी के साथ दूर रहने चली गई. पिकासो ने कभी उससे शादी नहीं की, लेकिन हमेशा उसकी आर्थिक मदद करते रहे. 1977 में, पिकासो की मौत के चार साल बाद, बरसों लंबे अवसाद से परेशान होकर मैरी ने गले में फंदा डालकर आत्‍महत्‍या कर ली. 


1936 :
एक दावत में कवि पॉल एलुआर, पिकासो की मुलाक़ात फ्रेंच फोटोग्राफ़र डोरा मार से कराते हैं. डोरा बला की ख़ूबसूरत है और बहुत सुंदर स्‍पैनिश बोलती थी. पिकासो उसके भाषा पर प्रभुत्‍व से प्रभावित हो गए. पिकासो ने डोरा मार से प्रेम के बाद ही महान पेंटिंग 'गेर्निका' बनानी शुरू की. स्‍पैनिश गृहयुद्ध की विभीषिका पर आधारित यह पेंटिंग अगर आप सामने देखें, तो रोंगटे खड़े हो जाएंगे, लेकिन उस पेंटिग में भी एक सुंदर चेहरा है, लेकिन वह रो रहा है. वह डोरा मार है. डोरा मार फोटोग्राफर थी और उसने 'गेर्निका' की रचना-प्रक्रिया और उसकी निर्मिति की छवियां बनाईं. 'गेर्निका' के बारे में कही गई उसकी बातें आज भी सबसे ज़्यादा प्रामाणिक मानी जाती हैं. एक दिन मैरी वॉल्‍टर अचानक पिकासो के स्‍टूडियो पहुंची और वहां उसने डोरा मार को देखा. डोरा के साथ प्रेम की ख़बरें मैरी ने सुन रखी थीं. वहां दोनों में कहासुनी हुई. पिकासो ने कहा कि तुम दोनों आपस में तय कर लो, मुझे किसके साथ रहना चाहिए. वह कुर्सी लगाकर बैठ गए. दोनों प्रेमिकाओं की कहासुनी बाक़ायदा कुश्‍ती में बदल गई. उन्‍होंने एक-दूसरे के बाल खींचे, कपड़े फाड़ दिए, और एक-दूसरे का उठाकर पटक दिया. मैरी वॉल्‍टर ने अपमानित और पराजित महसूस किया और पिकासो के जीवन से बाहर चली गई. डोरा मार उनके साथ रही. पिकासो ने अपने संस्‍मरणों और इंटरव्‍यूज में कहा है, 'वह मेरे जीवन का सबसे सुंदर क्षण था, जब मैंने दो औरतों को मारपीट करते देखा, इस बात के लिए मारपीट कि मेरे साथ कौन रहेगा.' पिकासो हमेशा उन स्थितियों को पसंद करते थे, जब एक महिला, उन पर दावेदारी के लिए दूसरी को कोस रही होती थी. लेकिन सात साल बाद पिकासो डोरा मार से भी अलग हो गए. डोरा के लिए यह इतना बड़ा सदमा था कि वह रोती रही, रोती रही. वह इतना रोई कि उसे रोना रोकने के लिए दवाएं लेनी पड़ीं. उसके बाद वह कभी अवसाद से बाहर नहीं आ सकी. बीस साल इसी दुख में रहने के बाद उसके कुछ प्रेम और हुए, लेकिन पिकासो की जगह कोई न ले पाया. पिकासो ने अपनी पेंटिंग्‍स में हमेशा उसे रोती हुई सुंदरी के रूप में दिखाया था. डोरा मार को नहीं पता था कि पिकासो उसका वर्तमान नहीं, उसका भविष्‍य रंग रहे हैं. प्रेम में पागल हुई, धोखा खाई एक रोती हुई बर्बाद सुंदरी. पिकासो ने उसके लिए निजी पेंटिंग्‍स बनाई थीं. 1997 में डोरा ने अपनी मृत्‍यु तक उन्‍हें छिपाए-संभाले रखा था. 


1944 :
पिकासो 63 साल के थे, जब उनका प्रेम कला की छात्रा 23 वर्षीय जीलो से होता है. पिकासो से संबंध को जीलो ने प्रेम के साथ-साथ अपने कैरियर में बड़े बदलाव की तरह भी देखा. पिकासो के साथ उसने कला की बारीकियां सीखीं. पिकासो के लिए उसने आर्ट क्रिटीक का काम किया. मॉडल के अलावा वह पिकासो के आयोजनों की मेज़बान भी थी. डोरा मार से प्रेम के दौरान ही पिकासो का प्रेम जीलो के साथ हुआ और इसी कारण वह डोरा से अलग हुए. दोनों के अलग होते ही जीलो पिकासो के साथ रहने लगी. उसने भी पेंटिंग्‍स बनाईं और उसे नाम मिला, लेकिन पेरिस के कलाजगत का यह मानना था कि एक अत्‍यंत प्रतिभाशाली लड़की ने पिकासो से प्रेम करके ख़ुद को ख़त्‍म कर लिया है. अगर वह खु़द अकेले अपनी पेंटिंग्‍स पर काम करती, तो शायद उसे ज्यादा प्रसिद्धि मिलती. जीलो पेरिस में ही थी, जहां उसने पिकासो की रूसी नर्तकी पत्‍नी ओल्‍गा के पागलपन को झेला. ओल्‍गा ने पिकासो की प्रेमिकाओं में संभवत: जीलो पर ही सबसे ज़्यादा प्रहार किए. जीलो की स्थिति भी ओल्‍गा जैसी ही होने लगी. क़रीब दस साल तक साथ रहने के बाद वह पिकासो से अलग हो गई. अलगाव के बाद उसने किताब लिखी- लाइफ़ विद पिकासो, जिसकी लाखों प्रतियां बिकीं. पिकासो ने उस किताब का प्रकाशन रुकवाने के लिए कोर्ट में केस कर दिया था, लेकिन वह हार गए. जीलो ने उसके बाद पेंटर और लेखिका के रूप में अपना जीवन बिताया, और वह पिकासो की एकमात्र प्रेमिका थी, जिसने पिकासो से अलगाव के बाद अपना मानसिक संतुलन नहीं खोया. 


1953 :
पिकासो अब बूढ़े हो गए थे, लेकिन अब नवयुवतियों के प्रति उनका प्रेम और प्रगाढ़ हो रहा था. जीलो के साथ प्रेम के दौरान ही उनके कई छिटपुट संबंध बने, लेकिन 27 साल की जैकलीन रोके के आने से जीलो के साथ उनके संबंध समाप्‍त हो गए. रोके भी उनमें से थी, जिनसे पिकासो पहली ही नज़र में प्रेम कर बैठे. उसे प्रभावित करने के लिए एक दिन वह रोके के घर गए और उसके दरवाज़े पर चॉक से कबूतर का चित्र बनाया. उसके बाद वह छह महीने तक लगातार हर रोज़ रोके को गुलाब देते रहे. अंतत: रोके भी उनके प्रेम में पड़ गई. इस प्रेम को भी उन्‍होंने गुप्‍त रखा. जीलो ने अपने पति को तलाक़ दे दिया था और पिकासो से शादी करना चाहती थी. पिकासो ने ही उसे तलाक़ देने को कहा था, लेकिन उस दौरान उन्‍हें लगा कि जीलो सिर्फ उनके पैसों के कारण उनसे शादी करना चाहती है. पिकासो ने चोरी-छिपे रोके से शादी कर ली. यह पिकासो का आखि़री प्रेम था. दोनों 20 साल तक साथ रहे. पिकासो अब हर चीज़ से दूर हो चुके थे. बीमार और बूढ़े. सिर्फ़ चित्र बनाया करते. रोके को सामने रख उन्‍होंने 400 से ज़्यादा चित्र बनाए. रोके न केवल उनकी पत्‍नी थी, बुढ़ापे का सहारा, बल्कि उनकी सेक्रेटरी भी. 1973 में पिकासो की मौत के बाद उनकी जायदाद को लेकर विवाद हो गया्. जीलो, पिकासो के बच्‍चों की मां थी. उसने केस कर दिया. रोके क़ानूनी पत्‍नी थी. अंत में मामला सुलझाया गया और पिकासो की जायदाद से बनी संस्‍था 'म्‍यूसी पिकासो' की स्‍थापना हुई. यह नाम पिकासो की प्रेमिकाओं और प्रेरणाओं की स्‍मृति में रखा गया. रोके पिकासो से बहुत जुड़ी हुई थी. उनके मरने के बाद उनकी कला और उससे जुड़ी आर्थिकताओं को संभालती रही, लेकिन अकेलापन उसके लिए भारी था. वह पिकासो को याद कर हमेशा रोती. रुदन से अवसादग्रस्‍त होती. कभी हाइपर हो जाती. ऐसी ही, स्‍मृतियों के आक्रमण में ख़ुद को संभलने में अक्षम पा उसने ख़ुद को गोली मार ली. 


पिकासो ने सबसे प्रेम किया. उनका निजी जीवन था, उनका रवैया सही था या ग़लत, इस पर नैतिकतावादी कुछ भी कह सकते हैं. हम भी कह सकते हैं.

पर बहुधा मुझे लगता है, शायद पिकासो बहुत जुनूनी प्रेमी थे, इसीलिए उनका अलग होना उन स्त्रियों को सहन नहीं हुआ, जो ख़ुद उनसे अलग हो जाना चाहती थीं. शायद पिकासो ने उनके अनेक प्रश्‍नों को अनुत्‍तरित छोड़ दिया था. प्रेम में ऐसी दीवानगी उस समय भी आती है, जब आपका प्रेमी आपके प्रश्‍नों के जवाब नहीं देता. तब आप सिर्फ़ प्रेम के लिए नहीं जी रहे होते, बल्कि उन उत्‍तरों के लिए भी जी रहे होते हैं. 



(डायरी से.)

Tuesday, April 10, 2012

शब्‍द-बोध, दिशा-बोध




Painting : Ravindra Vyas, Indore.



कविता के भीतर कुछ शब्‍द लगातार कांपते रहते हैं. वे पत्‍तों की तरह होते हैं. हवा का चलना बताते हैं. दिशा-बोध कराते हैं. कांपते हुए शब्‍दों का दायित्‍व है कि वे दूसरे शब्‍दों को जगाए रखें, जिलाए रखें.

कविता के सौष्‍ठव और प्रभाव पर तभी फ़र्क़ पड़ता है, जब उन शब्‍दों के साथ अभ्‍यास व प्रयोग किया जाए. बाक़ी शब्‍द इतने सेंसिटिव नहीं होते.

कविता अपने में प्रयुक्‍त सारे शब्‍दों पर नहीं, महज़ कुछ शब्‍दों पर टिकी होती है. उन शब्‍दों से बनने वाले अदृश्‍य वातावरण पर टिकी होती है. क़रीब से देखें, तो अदृश्‍य पर सबकुछ नहीं टिक सकता. ध्‍वनि टिकती है. दृ श्‍य टिकता है. तरंग टिकती है. और आकाश भी इसी अदृश्‍य पर टिका है. बहुत दूर से पृथ्‍वी को देखें, तो पता चले कि पृथ्‍वी भी निराधार है. अदृश्‍य पर टिकी है.

इसलिए हर चीज़ को क़रीब से देखने की ज़रूरत भी नहीं. दूर होकर देखना बहुधा पूरा देखना है. यह उसी तरह है, जैसे बचपन में हम एक खेल खेलते थे. एक गेंद में रबर की रस्‍सी बंधी होती है. रबर का एक सिरा हम उंगली में बांध लेते, फिर गेंद को हाथ में पकड़ ठीक सामने फेंकते. गेंद तेज़ी से दूर जाती, उतनी ही तेज़ी से लौट आती. लौटती गेंद को पकड़ना आसान नहीं होता. यह उसे पकड़ लेने का खेल था.

कवि उसी गेंद पर बैठा होता है. वह जितनी तेज़ी से चीज़ के क़रीब जाता है, उतनी ही तेज़ी से लौट भी आता है. तेज़ी के इन्‍हीं पलांशों के बीच उसे अपनी स्थिरता का ग्रहण करना होता है. वे पल, पलांश ही उसकी काव्‍य-दृष्टि की मर्जना करते हैं.

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(डायरी का एक टुकड़ा. अभी समालोचन पर मेरी डायरी के कुछ टुकड़े प्रकाशित हुए हैं. डायरी मेरे नोट्स हैं. पढ़ाई या न-लिखाई के दिनों में साथ रहती है. उसमें निजी ब्‍यौरे बहुत कम होते हैं. मेरे पास बहुत कम निज है.  जो निज है, वह इतना ज़्यादा निज है कि मैं उसे डायरियों को भी नहीं बताता.

बहरहाल, डायरी के उन टुकड़ों को पढ़ने के लिए आप नीचे दिए गए लिंक पर जा सकते हैं. ऊपर जो टुकड़ा लगा है, वह समालोचन की प्रस्‍तुति में शामिल नहीं है.)

समालोचन : निज घर : गीत चतुर्वेदी की डायरी

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ऊपर लगी कलाकृति हमारे प्‍यारे मित्र रवींद्र व्‍यास की है. आज 10 अप्रैल उनका जन्‍मदिन है. उन्‍हें जन्‍मदिन की ढेरों शुभकामनाएं देते हुए यह सब उन्‍हें समर्पित.