Monday, October 26, 2009

चंदन का ब्‍लॉग

उसका कहना है कि उसका नाम चंदन पांडेय है और वह कहानियां लिखता है. और यह भी कि वह बार-बार कही गई बात को एक बार फिर कह देने में कोई गुरेज़ नहीं करता. हम उसके कहे हुए को सच मानते हैं. लेकिन जब वह ब्‍लॉग बनाता है, तो उसका नाम 'नई बात' रखता है. यह एक शालीन-सा विरोधाभास है, जिसके धागे उसकी कहानियों को नये के क़रीने से बांधते हैं. :-)

ख़ैर. उसका नाम चंदन पांडेय है और वह ख़ूबसूरत कहानियां लिखता है और अच्‍छी किताबें पढ़ता है और मेरा दोस्‍त है और अभी-अभी उसने अपने ब्‍लॉग की शुरुआत की है. एक बार जाइए, मुझे यक़ीन है, फिर आप बार-बार जाएंगे.

नीचे प्राइसनर का संगीत है, छोटी लेकिन अद्भुत कंपोजीशन- 'बोलेरो', चंदन के लिए.



Sunday, October 4, 2009

इस साल किसे मिलेगा नोबेल?


लेबनान के उपन्यासकार इलियास खौरी, (जिनका उपन्यास ‘गेट ऑफ़ द सन’ पिछले दिनों पढ़ी सबसे अच्छी किताबों में से एक मानता हूं) ने ओरहान पामुक को नोबेल पुरस्कार की घोषणा के कुछ ही दिनों बाद एक लेख लिखा था, जिसमें कुछ ऐसा याद किया था- ‘2005 में जिस समय नोबेल की घोषणा होनी थी, मैं होटल के एक कमरे में पामुक के साथ बैठा था. पामुक बहुत बेचैन थे, प्रतीक्षा से परेशान. अख़बार उन पर लेखों से भरे हुए थे और उन्हें उस साल नोबेल का दावेदार माना जा रहा था. मैंने उनसे मज़ाक़ में कहा कि इस बेचैनी का कोई मतलब नहीं और इस तरह इंतज़ार करने का अर्थ है कि आपको यह पुरस्कार कभी नहीं मिलेगा. दावेदार के रूप में जिसका नाम मीडिया में उछल जाता है, उसे नोबेल क़तई नहीं मिलता. मैंने पामुक को तुर्की उपन्यासकार यासर कमाल का कि़स्सा बताया, जो नोबेल पाना चाहते थे. ज्यूरी की नज़र में बने रहने के लिए उन्होंने स्टॉकहोम में एक मकान किराए पर ले लिया और वहीं रहने लगे थे, पर उन्हें यह पुरस्कारर कभी नहीं मिला. पामुक इसके जवाब में मुस्करराए-भर थे. उनका नाम नोबेल के दावेदारों में पहली बार आया था.’

पर अगले ही साल पामुक को नोबेल पुरस्कार मिल गया. और खौरी समेत तमाम लोगों की यह धारणा भी टूट गई कि जिसका नाम मीडिया उछाल देता है, उसे यह पुरस्कार नहीं मिलता. बोर्हेस, आर्थर मिलर और रूश्दी के नाम भी मीडिया में उछले थे. बोर्हेस को संभवत: राजनीतिक कारणों से नहीं दिया गया, और मिलर-रूश्दी को उनकी ‘अतिशय लोकप्रियता’ के कारण. ऐसे कई कि़स्से हैं.

ख़ैर! किसे मिलता है, किसे नहीं मिलता है में डूबते- उतराते,  इंतज़ार है कि इस साल किसे मिलेगा?


जब से यह ख़्याल आया है कि अक्टूबर आने-आने को है और फिर आ गया, मेरे दिमाग़ में नाम घूमने लगे हैं. और नेट पर ज़रा खोजबीन की, तो भान हुआ, बहुतों के दिमाग़ में आ ही रहे हैं. जैसे यहां एक पूरी लिस्ट ही बनी हुई है और वोट करके प्रेडिक्ट भी किया जा रहा है. इस सूची में कुछ नाम ऐसे भी हैं, जो मेरे भी दिमाग़ में चल रहे थे. हालां‍कि वहां वोट करने वालों में ज़्यादातर का मानना है कि सूची से बाहर किसी को मिलेंगे.

जो नाम मेरे दिमाग़ में भी हैं उनमें से एक हैं- अमोस ओज़. उन्हें स्पष्ट नामों में सबसे ज़्यादा 24 फ़ीसदी वोट मिले हैं. इजराइल-फ़लीस्तीन के लिए टू-स्टेट सोल्यूशन की वकालत करने वाले ओज़ की चर्चा उनके राजनीतिक वक्तव्यों के कारण जितनी हुई है, उतनी ही उनके लेखन की विलक्षण बारीकी, सहजता और आसानी से पकड़ में न आने वाले वाली, बहुधा अभिधा का भ्रम दे देने वाली आइरनी के कारण भी. यह आइरनी ‘विधाता का नमक’ नहीं है. ओज़ पिछले साल भी मेरी निजी सूची में थे, नोबेल नॉमिनीज़ में रहे या नहीं, यह पता करने का कोई ज़रिया नहीं है. अगर उन्हें नोबेल मिलता है, तो मेरा पाठक, जो कि मैं हूं और सबसे पहले वही हूं, ख़ुश होने का एक और बायस पा लेगा.

उस साइट में फिर हारुकि मुराकामी का नंबर है. 19 फ़ीसदी. मुराकामी उन लेखकों में है, जिसे मैं पिछले कुछ बरसों से लगातार फॉलो कर रहा हूं और कभी लिख कर, कभी दोस्तों के बीच गपियाते, कई बार, अगला नोबेल विजेता मान चुका हूं. हालांकि उसी समय मेरे भीतर का संदेह गहरा भी हो जाता है. मुराकामी की पॉपु‍लैरिटी को ग्राहम ग्रीन की तरह देखा जाता है, और ग्रीन नॉमिनेट होने के बाद भी नोबेल से वंचित ही रहे.

तीसरा नाम फिलिप रॉथ का है, जो अमेरिकी उपन्यासकार है. इसकी तीन किताबें ही पढ़ी हैं, फिर भी इसके लिए मेरी रेटिंग बहुत ऊंची है. इन्होंने एक ही किरदार लेकर कई उपन्यास लिखे हैं और इस तरह दो-तीन किरदारों की अलग-अलग सीरिज बनाई है. ‘अमेरिकन पैस्टोररल’ मुझे बहुत प्रिय है. ‘द डाइंग एनिमल’ मैं पढ़ नहीं पाया, लेकिन इस पर पिछले साल बनी फिल्म ‘एलीजी’ देखी थी. रॉथ की कहानी, बेन किंग्‍स्‍ले का अभिनय और इसाबेल कोइक्सेत का निर्देशन. यहां कोइक्सेत ‘माय लाइफ़ विदाउट मी’ और ‘द सीक्रेट लाइफ़ ऑफ़ वर्ड्स’ वाली नहीं है यानी रॉथ इसमें से बराबर झांकता रहता है. हालांकि रॉथ अमेरिकी है और नोबेल के भाग्य विधाता यूरोपियनों को अमेरिका में साहित्य की ‘तमीज़’ न के बराबर दिखती है. फिर भी मैं चौंक जाने के लिए सहर्ष तैयार हूं.

कार्लोस फ़्वेन्‍तेस भी मेरी नज़र में कड़े और बड़े दावेदार हैं, लेकिन शायद वह तब से ही हैं, जब मारकेस को मिला था. एक बहुत ही अच्‍छा लेखक, अपने ड्यू के इंतज़ार में. आप एक बार 'द डेथ ऑफ़ आर्तेमीयो क्रूस' या 'द ईयर्स विद लॉरा डियास' पढ़ देखें. वह मारकेस के क़रीबी मित्रों में हैं और ऐसा कहा जाता है कि मारकेस कुछ बार उन्‍हें नोबेल के लिए नामांकित कर चुके हैं. इसी तरह मारीयो योसा का नाम भी चल रहा है.

एक और नाम अदूनिस का है, जो कि दुनिया में कई लोगों की नज़र में, नोबेल से ऊपर पहुंच चुके हैं. अदूनिस के नाम से अपना इंट्यूशन यह जोड़ता चलूं कि मुझे लगातार लग रहा है कि इस बार का नोबेल किसी नॉवेलिस्ट को नहीं, बल्कि किसी कवि को जाएगा. और वह कवि भी यूरोप के बाहर का नहीं होगा. यानी नोबेल इस साल भी किसी यूरोपियन को ही मिलेगा. 1994 में केंजाबुरो ओए के बाद किसी ग़ैर-यूरोपियन को और 1996 में वीस्वावा शिम्बोर्स्का के बाद किसी कवि को यह पुरस्कार नहीं मिला है. कवि का ख़्याल बार-बार आता है, लेकिन ग़ैर-यूरोपियन का नहीं. ख़ैर. यह तो सिर्फ़ मेरी अटकलबाजि़यां हैं, पर अदूनिस (जो कि यूरोप के बाहर के हैं) के बाद जिन नामों पर मुझे उम्मीद है, वे हैं एडम ज़गायेवस्की और बेई दाओ. ज़गायेवस्की पोलैंड के हैं, और बेई दाओ अपने चीन-संबंधों के बाद भी अपनी बनावट, बुनावट और स्टैंड में यूरोपियन ही हैं. ज़गायेवस्‍की मेरे प्रिय कवि हैं और अगर निर्णय का अधिकार मेरे हाथ में हो, तो तुरंत दे दूं.

इसी क्रम में एक ख़्याल और- कवियों में तादेयूश रूज़ेविच का नाम क्यों नहीं? शायद (मेरे मन में भी), अदूनिस की तरह रूज़ेविच के बारे में भी मान लिया गया है कि उन्हें नोबेल कभी नहीं मिलेगा, वह नोबेल पुरस्कार से काफ़ी ऊपर उठ चुके हैं. सच है, नोबेल मिल जाना ही सब कुछ नहीं है, कई बड़े लेखकों को नहीं मिला है. बीसवीं सदी के आखि़री हिस्से के साहित्य को जिन दो लेखकों ने सबसे ज़्यादा प्रभावित किया, बोर्हेस और कल्वीनो, दोनों को नोबेल नहीं मिला. वही आइरनी? जो कि ‘विधाता का नमक’ नहीं.

लेकिन यह भी सच है कि नोबेल, नोबेल है. हर साल उतनी ही उत्सुकता. फिर चीर-फाड़ का दौर.

तो ज़गायेवस्की या ओज़? मुराकामी या बेई दाओ? एक नाम तो अंबर्तो ईको का भी चल रहा है. कौन होगा, नतीजा बमुश्किल दस दिनों में आ जाएगा. क्या उन लेखकों में से होगा, जिन्हें मैं पढ़ चुका हूं? (हालांकि पिछले दस बरसों में, जब से मेरी पढ़ाई शुरू हुई है, ऐसा एक ही बार हुआ है कि मेरे पढ़े लेखक को यह पुरस्कार मिला हो. ऑफ़कोर्स, वह पामुक ही था.) या वह लेखक, जिसका नाम भी न सुना हो? (इस न सुने होने में उस लेखक का दोष तो क़तई नहीं होगा. जैसे- जब पिंटर को मिला था, तब कुछ स्वीडी प्रकाशकों ने कहा था कि इस लेखक की कोई किताब तक हमारी भाषा में नहीं और ज्यूरी ने व्यंग्य किया था- इसमें पिंटर या उनकी गुणवत्ता का दोष बिल्कुल नहीं.)

दसेक दिन प्रतीक्षा के. पर उससे पहले 6 अक्टूबर का इंतज़ार, जब बुकर की घोषणा होनी है. शॉर्टलिस्‍टेड एक ही पढ़ी है, कोएत्सी की ‘समरटाइम’ विलक्षण है, संभवत: उसका सर्वश्रेष्ठ और मेरी नज़र में फेवरेट भी; लेकिन सटोरियों का फेवरेट कोई और है.




P.S.
08 Oct
अभी लाइव वेबकास्‍ट में देखा. हेर्ता म्‍यूलर को दिया गया है. जर्मन कवि और उपन्‍यासकार.  :-)