Thursday, February 14, 2013

तुम्‍हारी मुस्‍कान तुम्‍हारे होंठों में छिपी / अनकही बातों की दरबान है




चित्र मेरी प्रिय फोटोग्राफ़र Anna Aden का, जिसके खींचे हर चित्र पर मैं फि़दा हूं.


एक कविता, आज के दिन के लिए. ख़ास 

* * *

नि:शब्‍द


आज एक नि:शब्‍द का उच्‍चारण करो 

जिस शब्‍द से बनी थी यह सृष्टि 
उसे बो दो अपने बग़ीचे में 
कुछ दिनों में वह एक पौधा बन जाएगा 
उसे तुम अपनी दृष्टि से सींचना

मैं मेहनतकश विद्यार्थी हूं तुम्‍हारे प्रेम का 
हर वक़्त इम्‍तहानों की तैयारी में लगा हुआ 
तुम्‍हारी ख़ामोशी के सीने पर
तिल की तरह उगे हैं मेरे कान

जिन पंक्तियों की मैंने प्रतीक्षा की
वे जमा हैं तुम्‍हारे होंठों की दरारों में
तुम्‍हारी मुस्‍कान 
तुम्‍हारे होंठों में छिपी 
अनकही बातों की दरबान है

किसी किताब के पन्‍ने पर
कोई बहुत धीरे-धीरे खेता है नाव 
आधी रात तुम्‍हारे कमरे में गूंजता है 
पानी का कोरस 

तुम्‍हारी आंख के भीतर एक मछली 
तैरना स्‍थगित करती है 
तलहटी को घूरते हुए गाती है बेआवाज़

पानी कभी नया नहीं होता और प्रेम भी 
फिर भी कुछ बूंदों को हम हमेशा ताज़ा कहते हैं 

जब मन पर क़ाबू न हो 
तो याद करना 
कैसे तेज़ बारिश के बीच अपनी छतरी संभालती थी 

कभी-कभी चिडि़या हवा में ऐसे उड़ती है 
जैसे करामाती नटों के खेत से चुरा ले गई हो 
अदृश्‍य डोर पर चलने का हुनर 

जोगनों की तरह साधना करती हो 
तुम पर आ-आ बैठती हैं ति‍तलियां 
जो दीमक तुम पर मिट्टी का ढूह बनाती है
उन्‍हें तुम सितारों-सा सम्‍मान देती हो

तुम्‍हारे कमरे में एक बल्‍ब 
दिन-रात जलता है 

इस वक़्त तुम्‍हारे कमरे में होता
तो तुम्‍हारी आंखों के भीतर झांकता 
आंखें आत्‍मा की खिड़की हैं 

इच्‍छादेह की सबसे ईमानदार कृति है  
देह इस जीवन का सबसे बड़ा संकट है 

ऐसे चूमूंगा तुम्‍हें कि
तुम्‍हारा हर अनकहा पढ़ लूंगा 
होंठ दरअसल मन की आंखें हैं


* * *