Monday, December 29, 2008

अंधेरे में कोहरा

हर पलंग के पास एक बुरा सपना होता है. कमर टिकाते ही जकड़ ले. हर घर में कुछ बूढ़ी रूहें रहती हैं. रात की नीरवता में किचन में कॉफ़ी की गिरी बोतल उठाने में पीठ पर आ लदें. हर नींद में एक ग़फ़लत होती है और हर ग़फ़लत एक भय को साथ ले आती है. सच होने का बीज हर सपने में छिपा होता है, चाहे अच्‍छा, चाहे बुरा. जैसे सच होने का यह बीज ही नींद के भीतर बेनियाज़ी से पैर हिलवा देता हो और लगता हो, बस, अभी एक खाई में गिर जाना है.

एक कामयाब नींद क्‍या होती है? उसमें प्रवेश कर लेना या सुबह ख़ुद को, अपनी जाग में सही-सलामत पा लेना? मेरी जाग क्‍या है? एक अनियंत्रित नींद ही तो है. अपनी जाग में ही ख़ुद को सही-सलामत पा लेने की क्‍या गारंटी? एक नाकाम नींद, एक नाकाम जाग... बीते कई दिनों का अफ़साना है.

एक बूढ़ा आया था. बता गया, रोज़ रात वह एक ऐसी गोली खाता है, जिससे उसके सपनों का बनैलापन ख़त्‍म हो जाता है. कहता है, स्‍मृतियों से परेशान है. उसकी गोली वाली विलक्षणता, स्‍मृतियों के जि़क्र मात्र से उड़ गई. मैंने कहा, शिव को स्‍मृतियों का संहारक कहा जाता है. हर जन्‍म में ब्रह्मा को शिव की स्‍तुति करनी होती है, ताकि वह खो चुकी स्‍मृति पा सकें. उसने अपनी किसी कहानी का जि़क्र करते हुए कहा, दुनिया का सारा साहित्‍य स्‍मृति और उसके परिष्‍कार से बनता है. स्‍मृतियों को बचाने के लिए लिखा जाता है. तो क्‍या लिखना शिव को चुनौती देने जैसा है?

उसे विदा करने के लिए सिगरेट की दुकान तक जाता हूं. बेतहाशा कोहरा है. अंधेरे में कोहरा. भवों पर बूंदों का आभास होता है. ठंडी पड़ गई नाक को उलटी हथेली से छूता हूं. बहुत भीतर से एक सांस छोड़ता हूं... जैसे सदियों वह फेफड़े में फंसी रही. गुलाबी कार्डिगन पहने एक स्‍त्री जा रही है. एक कार वाला बार-बार उसके पास अपनी कार खड़ी कर देता है. वह पलटकर देखती है, फिर आगे बढ़ जाती है. मैं दुकान वाले से माचिस मांगता हूं और बिना सिगरेट जलाए मुंह से निकलता कोहरा देखता हूं. कार थोड़ा आगे रुक गई है. स्‍त्री वहीं खड़े-खड़े शायद सुबक रही है. कार वाला उसे शॉल ओढ़ा रहा है और वह उसे झटक कर दूर कर रही है. वह शायद शॉल नहीं, किसी ताज़ा स्‍मृति को झटक रही है.

पूरी धरती ही एक पलंग है.

मैं प्रसन्‍न रहना चाहता हूं, पर पाता हूं, ज़्यादातर समय सिर्फ़ सन्‍न हूं.

17 comments:

निर्मला कपिला said...

main parsan rehnaa------kya sach likha

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

अच्छी स्मृति, उम्दा सपना! शानदार पलंग!!

Anonymous said...

गीत भाई, कुछ भी करें, लिखना बस बंद ना करें!

गौरव सोलंकी said...

मैं भी..

Bahadur Patel said...

geet bhai,

bahut sundar hai padhakar maja aa gaya.
sapane smrti kahani kavita neend aur poori dharati ek palang hai.
umda hai.

नीरज गोस्वामी said...

आप का शब्द कौशल और भाव कमाल के हैं...
नीरज

neera said...

Beautiful words!
Amazing expression!

योगेन्द्र मौदगिल said...

वाह.. इस शब्दचित्र के बधाई स्वीकारें.. गीत जी.

ravishndtv said...

गीत जी, कई बार पढ़ा इसे। सन्न हूं। और लिखिये न। स्मृतियों का परिष्कार कर मैं भी शिव को चुनौती देना चाहता हूं। ब्रह्मा की तरह हो जाना चाहता हूं।

N Navrahi/एन नवराही said...

........
प्रसन्‍न रहना चाहता हूं, पर पाता हूं, ज़्यादातर समय सिर्फ़ सन्‍न हूं.......

दीपा पाठक said...

क्या बात है गीत जी....सुंदर पोस्ट, भाषा और भाव पूरी समृद्धता के साथ सामने लाते हैं आप।

प्रदीप कांत said...

पूरी धरती ही एक पलंग है.

मैं प्रसन्‍न रहना चाहता हूं, पर पाता हूं, ज़्यादातर समय सिर्फ़ सन्‍न हूं.

kyaa baat hai?

प्रदीप कांत said...

पूरी धरती ही एक पलंग है.

मैं प्रसन्‍न रहना चाहता हूं, पर पाता हूं, ज़्यादातर समय सिर्फ़ सन्‍न हूं.

Ashok Pande said...

सुन्दर और डरावना ... रिल्के की कविता जैसा!

Amit Kumar Yadav said...

आपकी रचनाधर्मिता का कायल हूँ. कभी हमारे सामूहिक प्रयास 'युवा' को भी देखें और अपनी प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करें !!

द्विजेन्द्र ‘द्विज’ said...

बहुत अच्छा लगा आपके यहाँ आकर.
आपकी यह् अनूठी भावसम्पन्नता बाँधती है.
द्विजेन्द्र द्विज

Anonymous said...

kavita men guntha gady. bahut accha. ab mulakat hoti rahegi.