Monday, July 27, 2009

तुम्‍हारा शुक्रवार


तुमने कहा था कि तुम पेड़ इसलिए नहीं हो
कि तुमने कभी पत्‍ते नहीं पहने
फिर भी मैं तुम्‍हारी छांव में बैठा
और तुम्‍हारे पत्तों से ढंका अंधेरा देखा

मैं तुम्‍हारी तस्वीर कभी नहीं बना सकता
कुछ आकार मैंने इससे पहले कभी नहीं जाने
इतने ज़्यादा कोण मिल जाएं
तो सिर्फ़ वृत्त बनता है

जो हमने साथ गुज़ारा
इस पूरे दिन को भविष्य में प्रवेश के लिए
एक छद्म नाम चाहिए होगा

*

हम अपनी देह एक-दूसरे से छिपा ले जाएंगे
किसी दिन हम अपने शब्‍दों से बनाएंगे
एक-दूसरे का रूप
और बिना बताए अपने पास रख लेंगे

तुम हर सुबह मेरी आवाज़ सुनोगी
जो मैंने तुम्‍हारे कानों तक नहीं भेजी
एक दिन तुम्‍हारे पास अपनी कोई देह न होगी
सिर से पांव तक मेरी लहराती हुई फुसफुसाहट होगी वह देह
मेरी आवाज़ की गूंज से बनी मीनार होगी तुम्‍हारी आत्‍मा

हम कभी नहीं मिले फिर भी
जो हमने साथ गुज़ारा
इस पूरे दिन को भविष्‍य में प्रवेश के लिए
भविष्‍य की भी ज़रूरत नहीं पड़ेगी

जैसे तुममें समाने के लिए तुम्‍हारी ज़रूरत भी कहां पड़ी थी मुझे

इस धरती पर तुम कहीं नहीं रहती, सिवाय मेरी बातों के
और मैं भी कहीं नहीं हूं सिवाय तुम्‍हारी बातों के
हम दोनों ने ही घर बदल लिया है.

*






10 comments:

सुशीला पुरी said...

एक छद्म नाम .......,अमूर्त को मूर्त होने में देर नही लगी .

ओम आर्य said...

bahut hi sundar

अभय तिवारी said...

गूढ़.. पत्तो के आवरण में ढके भाव.. छ्द्म तो पता नहीं पर प्रछ्न्न अवश्य!

मोहन वशिष्‍ठ said...

जो हमने साथ गुज़ारा
इस पूरे दिन को भविष्य में प्रवेश के लिए
एक छद्म नाम चाहिए होगा

बहुत सुंदर बधाईयां

सिद्धान्त said...

....
Ek chadm naam chahiye hoga

Bahut hi sundar kavita hai..

itna hi sundar ek nishchit aakriti ka na ban pana.

ssiddhant mohan tiwary
Varanasi.

Bahadur Patel said...

bahut sundar hai.

pritu said...

इस धरती पर तुम कहीं नहीं रहती, सिवाय मेरी बातों के
और मैं भी कहीं नहीं हूं सिवाय तुम्‍हारी बातों के....bahut sunder abhivyakti hai.

GGShaikh said...

अधिकृत टिप्पणीकार होना तो दूर की बात...
हाँ, जो ठीक लगे उसे कहे बिना भी न रह पाऊँ...

कविता
एक संवाद स्थापित करती है, नए सिरे से...
"इस धरती पर तुम कहीं नहीं रहती, सिवाय मेरी बातों के और मैं भी कहीं नहीं हूं सिवाय तुम्‍हारी बातों के हम दोनों ने ही घर बदल लिया है."

अब कविता तो पूरी के पूरी quotable लगे...!

शब्दों की किफ़ायत तो कोई तुमसे सीखें...

कविता बनी है, खुली भी है...
एक नितांत निजता के संवाद सी.

Geet Chaturvedi said...

शुक्रिया शेख सा'ब. आप सभी का शुक्रिया, दोस्‍तो.

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

इस पूरे दिन को भविष्‍य में प्रवेश के लिए
भविष्‍य की भी ज़रूरत नहीं पड़ेगी

जैसे तुममें समाने के लिए तुम्‍हारी ज़रूरत भी कहां पड़ी थी मुझे