तुमने कहा था कि तुम पेड़ इसलिए नहीं हो
कि तुमने कभी पत्ते नहीं पहने
फिर भी मैं तुम्हारी छांव में बैठा
और तुम्हारे पत्तों से ढंका अंधेरा देखा
मैं तुम्हारी तस्वीर कभी नहीं बना सकता
कुछ आकार मैंने इससे पहले कभी नहीं जाने
इतने ज़्यादा कोण मिल जाएं
तो सिर्फ़ वृत्त बनता है
जो हमने साथ गुज़ारा
इस पूरे दिन को भविष्य में प्रवेश के लिए
एक छद्म नाम चाहिए होगा
*
हम अपनी देह एक-दूसरे से छिपा ले जाएंगे
किसी दिन हम अपने शब्दों से बनाएंगे
एक-दूसरे का रूप
और बिना बताए अपने पास रख लेंगे
जो मैंने तुम्हारे कानों तक नहीं भेजी
एक दिन तुम्हारे पास अपनी कोई देह न होगी
सिर से पांव तक मेरी लहराती हुई फुसफुसाहट होगी वह देह
मेरी आवाज़ की गूंज से बनी मीनार होगी तुम्हारी आत्मा
हम कभी नहीं मिले फिर भी
जो हमने साथ गुज़ारा
इस पूरे दिन को भविष्य में प्रवेश के लिए
भविष्य की भी ज़रूरत नहीं पड़ेगी
जैसे तुममें समाने के लिए तुम्हारी ज़रूरत भी कहां पड़ी थी मुझे
इस धरती पर तुम कहीं नहीं रहती, सिवाय मेरी बातों के
और मैं भी कहीं नहीं हूं सिवाय तुम्हारी बातों के
हम दोनों ने ही घर बदल लिया है.
*
10 comments:
एक छद्म नाम .......,अमूर्त को मूर्त होने में देर नही लगी .
bahut hi sundar
गूढ़.. पत्तो के आवरण में ढके भाव.. छ्द्म तो पता नहीं पर प्रछ्न्न अवश्य!
जो हमने साथ गुज़ारा
इस पूरे दिन को भविष्य में प्रवेश के लिए
एक छद्म नाम चाहिए होगा
बहुत सुंदर बधाईयां
....
Ek chadm naam chahiye hoga
Bahut hi sundar kavita hai..
itna hi sundar ek nishchit aakriti ka na ban pana.
ssiddhant mohan tiwary
Varanasi.
bahut sundar hai.
इस धरती पर तुम कहीं नहीं रहती, सिवाय मेरी बातों के
और मैं भी कहीं नहीं हूं सिवाय तुम्हारी बातों के....bahut sunder abhivyakti hai.
अधिकृत टिप्पणीकार होना तो दूर की बात...
हाँ, जो ठीक लगे उसे कहे बिना भी न रह पाऊँ...
कविता
एक संवाद स्थापित करती है, नए सिरे से...
"इस धरती पर तुम कहीं नहीं रहती, सिवाय मेरी बातों के और मैं भी कहीं नहीं हूं सिवाय तुम्हारी बातों के हम दोनों ने ही घर बदल लिया है."
अब कविता तो पूरी के पूरी quotable लगे...!
शब्दों की किफ़ायत तो कोई तुमसे सीखें...
कविता बनी है, खुली भी है...
एक नितांत निजता के संवाद सी.
शुक्रिया शेख सा'ब. आप सभी का शुक्रिया, दोस्तो.
इस पूरे दिन को भविष्य में प्रवेश के लिए
भविष्य की भी ज़रूरत नहीं पड़ेगी
जैसे तुममें समाने के लिए तुम्हारी ज़रूरत भी कहां पड़ी थी मुझे
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