इज़राइली फोटोग्राफ़र कैटरीना लोमोनोसोव का की एक कृति. |
प्रेम के दिन टूट जाने के दिन होते हैं। शुरू में ऐसा लगता कि सबकुछ फिर से बन रहा है, लेकिन प्रेम, बैबल के टॉवर की तरह होता है। सबसे ऊंचा होकर भी अधूरा कहलाता है।
जब मनुष्यों ने बैबल का टॉवर बनाना शुरू किया था, तब ईश्वर बहुत ख़ुश हुआ था. धीरे-धीरे टॉवर आसमान के क़रीब पहुंचने लगा. ईश्वर घबरा गया. उसे लगा, मनुष्य उसे ख़ुद में मिला लेंगे. वे सारे मनुष्य एक ही भाषा में बात करते थे. ईश्वर ने उनकी भाषा अलग-अलग कर दी. उनमें से कोई भी एक-दूसरे को नहीं समझ पाया. सब वहीं लड़ मरे.
जैसे मनुष्य की रचना ईश्वर ने की है, उसी तरह प्रेम की अनुभूति की रचना भी उसी ने की होगी। ईश्वर शैतान से उतना नहीं डरता होगा, जितना मनुष्य से डरता है। उसी तरह वह मनुष्य से इतना नहीं डरता होगा, जितना वह प्रेम से डरता है। वह प्रेम को बढ़ावा देता है, और प्रेम जैसे-जैसे ऊंचाई पर जाता है, आसमान छू लेने के क़रीब पहुंच जाता है, ईश्वर उस प्रेम से घबरा जाता है। उसके बाद वह दोनों प्रेमियों की भाषा बदल देता है। जब तक दोनों प्रेमियों की भाषा एक है, तब तक वे प्रेम की इस मीनार का निर्माण करते चलते हैं। जिस दिन उनकी भाषा अलग-अलग हो जाती है, उसी दिन वे एक-दूसरे को समझना बंद कर देते हैं और उस मीनार की अर्ध-निर्मित ऊंचाई से एक-दूसरे को धक्का मारकर गिरा देते हैं।
नीचे गिरने के बाद हम पाते हैं कि हमारे सिवाय और कोई चीज़ नीचे नहीं गिरी।
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यह हिस्सा है मेरे आने वाले उपन्यास 'रानीखेत एक्सप्रेस' का.
इसका एक अंश 'सबद' पर प्रकाशित हुआ है.
पूरा अध्याय पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें.
सबद पर 'रानीखेत एक्सप्रेस'
4 comments:
बहुत सुन्दर...और रोचक .....
उपन्यास हाथ में कब तक और कैसे आएगा???
अनु
अति सुंदर...
उपन्यास का इंतज़ार कर रहा हूँ।
बहुत अच्च्छा लिखते हैं आप!
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