अपनी लंबी कहानियों के लिए मेरे भीतर कुछ वैसा ही त्रास भरा स्नेह रहा है, जैसा शायद उन मांओं का अपने बच्चों के लिए, जो बिना उनके चाहे लम्बे होते जाते हैं- जबकि उम्र में छोटे ही रहते हैं. ऐसी कहानियों को क्या कहा जाए, जो कहानी की लगी-बंधी सीमा का उल्लंघन तो कर लेती हैं, किंतु उपन्यास के 'बड़प्पन' में जाने का साहस नहीं कर पातीं? अंग्रेज़ी का शब्द 'नॉवेला' शायद मेरे आशय के सबसे निकट आता है, जिसे उन्नीसवीं शती के रूसी कथाकारों ने इतनी कुशलता से साधा था. टॉल्स्टॉय की कहानी 'ईवान इल्यिच की मृत्यु', तुर्गनेव की अनेक सुंदर 'उपन्यासिकाएं' और चेखव की 'वार्ड नंबर छह' ऐसी कहानियों के श्रेष्ठ उदाहरण हैं, जो कहानी और उपन्यास के बीच की ज़मीन पर एक अनूठी कथात्मक विधा रचती हैं.
जबसे मैंने कहानियां लिखना शुरू किया, लम्बी कहानियों की यह दुनिया मुझे बहुत आत्मीय लगती रही है-- न तो छोटी कहानियों की तरह बहुत कसी हुई, न ही उपन्यासों की तरह बहुत फैली हुई... संयम और उन्मुक्तता के इस अद्भुत सम्मिश्रण से एक तरह का लिरिकल सौंदर्य उत्पन्न होता है, जहां शब्द अपनी स्पेस निर्धारित करते हैं... जो बाहर की तरफ़ न जाती हुई अपनी भीतर की तहों को खोलती है. अधिकांश लम्बी कहानियां अक्सर सोचती हुई-सी कहानियां (रिफ़्लेक्टिव) कहानियां होती हैं, उनका चेहरा दुनिया की ओर उन्मुख होता हुआ भी आंखें कहीं भीतर झांकती-सी दिखाई देती हैं. उदास और चिंतामग्न. मैंने जान-बूझकर लम्बी कहानियां नहीं लिखीं-- वे मनमाने ढंग से अपने आप लम्बी होती गईं... ...
*** निर्मल वर्मा.
भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित ग्यारह लम्बी कहानियां की भूमिका. पेंटिंग: सुब्रतो धर
13 comments:
विचार एक तरफ़।
निर्मल जी की लम्बी कहानियाँ अक्सर बडी कहानियां भी थीं ।
आजकल कई बार लम्बी कहानियां बॉनी सी लगती हैं …तब पन्नों का अपव्यय ख़लता है यार।
अपने सबसे प्रिय कहानीकार-उपन्यासकार को यहां भी देखकर बेहद खुशी हो रही है। और सुब्रतो की सुंदर रियाज भी खूबसूरत है। शुक्रिया दोस्त। तुम्हारी नई लंबी कहानी कहां आ रही है? बताना।
नए साल की ढेर सारी शुभकामनाएं।
अच्छा लगा पढ़कर .सोचा कुछ ओर उनकी डायरी से पढ़वायेंगे .....
aapko dekh kar bahut prasannta hui kahaanioN kaa intjaar rahegaa pata bata dijeeyega
अधिकांश लम्बी कहानियां अक्सर सोचती हुई-सी कहानियां (रिफ़्लेक्टिव) कहानियां होती हैं, उनका चेहरा दुनिया की ओर उन्मुख होता हुआ भी आंखें कहीं भीतर झांकती-सी दिखाई देती हैं. उदास और चिंतामग्न.
सच है,मुझे स्वयं भी यह अनुभूत होता है. अपने लिए भी यह कठिनाई अनुभूत की है कि,कितना भी समेटो कलेवर संक्षिप्तता नही पाता. और जब कभी,जरूरत से ज्यादा कान्त छाँट की तो लगा,कथ्य को अभिव्यक्ति का अवसर नही देकर न्याय नही किया.
बड़ा अच्छा लगा यह अंश पढ़ना.आभार..
आपको पढना हमेशा से एक नया अनुभव देता है, इस पोस्ट में उभरी हुई तो नहीं लेकिन छुपी हुई भी नहीं थी वह सब कुछ जो जीवन और उसके सच को रेखांकित करती है....
geet, aapne khud lambi kahaniyan likhi hain...hindi me aisi kahaniyon ko lekar sochne-samjhne ka tareka bahut pita hua hai...wajah yah ho sakti hai ki hamare zyadatar chhoti kahaniyon ke safal kahanikaar hain...lambi kahaniyon me jaisa kalatmak sadhaw nirmalji jaise kathakaar arjit kar sake,wah bahut viral hai...aapne unka likha yah ansh dekar bahut achha kiya...aapki aagami (lambi)kahani jo sambhawtah vasudha ke kahani visheshank me aa rhi hai uska intzar rheza...
निर्मल जी की याद आयी। तुमने सिर्फ उनका कथन लगाया और वो चुपचाप तुम्हारा कथन भी बन गया। ये अदा भी खूब है प्यार!
अप्रतिम गद्यलेखक निर्मल जी की ही बात से मुद्दा उठाऊँ तो इन लंबे होते जाते बच्चों का कोई न कोई नाम भी तो हुआ करता है. लम्बी कहानियों के इस अमल को कोई नाम भी हिन्दी साहित्य में दिया जाएगा या नहीं? यह तुम्हारे जैसे लम्बी कहानियां बखूबी साधने वाले कथाकार सम्भव कर सकते है.
bahut achchha likha hai.
nirmal ji ki bhasha me lambi kahani par ek sundar tukada post kiya geet bhai. badhiya.
kya lambi kahaniyon wali ARUN PRAKASHJI ki kitab LAKHON KE BOL SAHE aur uski bhumika padhi hai? pallav
निर्मल गद्य.....निर्मल विचार......निर्मल बलॉग..बैताग..
nirmal verma ka chhota sa tukda bhi apni bhasha se lyrical saundray rach deta hai. Ve chintamagn aur udas dhun to khoob rachte hi hain. kai baar to apni is bhasha ke bal par kamjor cheej ko bhi padhva leta\e hain
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