Thursday, September 3, 2009

कज़ुओ इशिगुरो : संगीत हमसे वादा करता है


हर सुख के लिए संगीत है, हर दुख के लिए भी. सांध्‍यसंगीत में उदासी और अवसाद जाने क्‍यों आ जाता है. मैंने किसी के लिए सेरेनेड जैसा कुछ नहीं बजाया कभी. आता भी नहीं. सेरेनेड सुने हैं, पढ़े हैं. और महसूस किया है, रात के वीराने में अकेली गूंजती हुई वायलिन की आवाज़, जो, हस्‍बमामूल, कलेजों का निशाना ताड़कर निकलती होगी. 'लव इन द टाइम ऑफ़ कॉलरा' में फ़्लोरेन्तिनो बजाता है, फ़रमीना के मकान के नीचे, लाइटहाउस के पास, और एक बार मीलों दूर से, तो महसूस करता है कि वह उसकी वायलिन के तारों को ख़ुद ही छेड़ रही है, उसकी आवाज़ सुनकर बाल्‍कनी में आ रही है. पता नहीं, हममें से कितनों ने अपने प्रेम के लिए संगीत बजाया होगा, गिटार के तार के कटाव को उंगलियों पर महसूसा होगा, घुप्‍प अंधेरे में किसी छत पर खड़े होकर माउथ ऑर्गन को हल्‍के से फूंका होगा... जब भी हम संगीत सुनते हैं या बजाते हैं, वह हमसे कुछ वादा करता है, वह हमें कुछ देना चाहता है, या हम उससे कुछ पाना चाहते हैं.

अभी कुछ दिनों पहले कज़ुओ इशिगुरो को पढ़ा. उनका नया कहानी-संग्रह. 'नॉक्‍टर्न्‍स'. नाम से ही ज़ाहिर है कि इसमें संगीत होगा. आपस में गुंथी हुई पांच कहानियां हैं और दो कहानियों में किरदार लौट कर आते हैं. बीते ज़माने का एक सुपरस्‍टार गायक है, जो अब वेनिस में उपेक्षित बैठा है. वह हनीमून के लिए वेनिस आया था और अब दुबारा, 24 साल बाद, पत्‍नी के साथ आया है. यह पत्‍नी के साथ उसका आखि़री सफ़र होगा. फिर दोनों अलग हो जाएंगे. उसे 'कमबैक' करना है, एक बार फिर संगीत की दुनिया में छा जाना है, पर बूढ़ी पत्‍नी के साथ ऐसा नहीं कर सकता. मीडिया में कवरेज के लिए उसे एक जवान पत्‍नी चाहिए होगी, और वह अलग होने के लिए पत्‍नी को राज़ी कर चुका है. वेनिस में उसे एक नौजवान नौसिखिया नायक संगीतकार मिलता है, जो आखि़री रात उसके साथ गिटार बजाता है और बूढ़ा गोंदोला में बैठकर अपनी पत्‍नी की पसंद के गीत गाता है. सूनी रात में पानी की सड़क पर बैठ जब वह महान गायक सेरेनेड शुरू करता है, तो उससे पहले बेतहाशा भय में गला खंखारता है, सिर झुकाए देर तक चुप रहता है और बिना किसी इशारे के अचानक गाना शुरू कर देता है. संध्‍या का प्रेमगीत ग़र्द से सने बालों से छिपे चेहरे की मानिंद हो जाता है. ऊपर होटल के कमरे में गीत सुनती उसकी पत्‍नी रोने लगती है. नायक नौसिखिया ख़ुश हो जाता है- वी डिड इट. वी गॉट हर बाय द हार्ट. पर क्‍या बूढ़ा भी ख़ुश था, क्‍या उसकी स्‍त्री गानों से दिल के चिर जाने पर ही रोई थी?

ढलती हुई उम्र की एक स्‍त्री है, जो उस गायक के गीत सुना करती थी, जब वह बहुत लोकप्रिय था. कभी न लौटकर आने वाले पति की जब भी याद आती, वह उसके रिकॉर्ड बजाती. एक-एक शब्‍द दुहराती और भूल जाती कि किस समय वह रोती हुई नहीं थी. संगीत प्रतीक्षाओं को स्‍वर देता है, ताक़त भी. उसका छोटा बेटा, जो किसी जाने हुए-से भविष्‍य में एक दिन उसी गायक, जो गुमनाम हो चुका होगा, के साथ गोंडोला में बैठ गिटार बजाएगा, तब वह संगीत से सुकून मांगेगा या जुनून?

इशिगुरो की ये कहानियां इसी संघर्ष पर हैं- हम संगीत से क्‍या पाना चाहते हैं और जि़ंदगी हमें क्‍या दे देती
है.

पांच कहानियों का यह संग्रह अवसाद के जिस 'लो' से शुरू होता है, वहीं आकर ख़त्‍म भी होता है. पांच ऐसी कहानियां, जो एक ही जिल्‍द में हों, और 'सा रे ग रे सा' बना दें, इनके बीच कोई छिपा हुआ सुर भी हो, जो दरअसल कंपन की शक्‍ल में पसलियों के बीच भटक जाने को अभिशप्‍त हो, जब आप पढ़ें, तो अपने निजी सेरेनेड्स खोजने लग जाएं, रात की नीरवता में सड़क पर निकलें, और उसके संगीत से अपने हिस्‍से का पाना चाहें.

पर संघर्ष तो यहीं होता है- संगीत से हमें क्‍या पाना है, जीवन ने हमें क्‍या देना है.

इशिगुरो मुझे पहली बार अच्‍छा लगा है. उसकी भाषा पहली बार किसी खरे तालाब की तरह लगी है- रात में न दिखने वाले तालाब की तरह, जिसमें कोई पौधा कभी नहीं लगा, कोई कुमुदिनी कभी नहीं खिली, लेकिन फिर भी उस पौधे, उस कुमुदिनी के डोलने की आवाज़ गूंज जाती है.

इशिगुरो इस एक ही किताब से यासुनारी कवाबाता के कितना क़रीब पहुंच जाता है. हालांकि मेरी समझ में नहीं आता कि क्‍यों 'रिमेन्‍स ऑफ़ द डे' और 'नेवर लेट मी गो' की तरह यहां भी उसके नैरेटर जितना बोलना चाहते हैं, उससे कहीं ज़्यादा बोल जाते हैं, बार-बार न चाहते हुए भी... (वैसे, मुझे यह भी नहीं समझ में आता कि क्‍यों हर पांचवें पेज पर पामुक मुझे चौंका देना चाहते हैं या क्‍यों हर दूसरे उपन्‍यास में मुराकामी अपनी बिल्‍ली की खोज में निकल पड़ते हैं...)

5 comments:

azdak said...

पढ़नेवाला चौंकता रहता होगा की बात समझ आती है, लेकिन मिनियेचर में भी विहंगम का सहज तरलता से म्‍यूरल बुननेवाला, मन और बाहर की ऐसी गाढ़ी-गहरी शराब सिरजते चलनेवाले पर चौंकाने की तरकीबें चिपकाने की बात देखकर सारा संगीत मुंह से किसी फटी सीटी की तरह बाहर निकल गया, ओह..

सुशीला पुरी said...

सुन्दर पोस्ट ..........संगीत किसे नही छूता ? जिसे नही छूता होगा वह शर्तिया पागल होगा या हैवान .

Geet Chaturvedi said...

प्रमोद भाई, ये चौंकाना नई-समांतरनुमा किसी तरकीब की तरह नहीं, बल्कि उस तरह लगती है, जैसे दो परस्‍पर विरोधी चीज़ों को वह कितनी आसानी और सहजता से जोड़ देता है, जो अभ्‍यास में असंभव लगती हैं, लेकिन पढ़ते समय इस क़दर चिकनी कि आप सर्रर्र निकल जाएं, अबाध; और यह मिश्रण ही उसे शैली का ऐसा मौलिक स्‍फोट देता है कि उसके पन्‍नों में बार-बार जाना होता है, उसके नये का बेसब्री से इंतज़ार होना होता है. उसकी शरारत या तरकीब नहीं, सहजता सोचने को लगाती है. वह डिवाइडर कटने का इंतज़ार किए बिना, डिवाइडर के ऊपर ही चढ़, मक्‍खन की तरह, यू-टर्न ले सकता है और आप हैरान रह जाते हैं कि अरे. ग़ज़ब, ऐसे भी संभव है!

कोई उपयुक्‍त उदाहरण नहीं सूझ रहा, पर यह कह सकते हैं, जैसे पेसन्‍यारी और का़सीमोव को एक ही टेस्‍ट-ट्यूब में उंड़ेल दें...

girirajk said...

Murakami ka to yah template hai jismein Billi indespensable hai. Poore template ke liye Murakami-visheshagya Rahul Soni se baat karein. Mujhe Murakami padhne ke liye dushprerit karne wale wahi hain. Ishiguro ka Artist of the Floating World mujhe chaunka chuka unhee wazahon se jo Geet ne Pramodji ke comment ke baad likhi hain.

Anonymous said...

कज़ुओ इशिगुरो के बारे में पढ़ना और जानना मेरे लिए सुखद अनुभद रहा.धन्यवाद