बहुत पहले दुनिया में सिर्फ़ रात थी, मेरी कंखौरियों में मिट्टी के दिए चिपके थे. मैं उड़ने के लिए हाथ उठाता, दिए अपने आप बल उठते. रोशनी की फुहार उठती, बरसती. मैं हाथ नीचे करता, अंधेरा फिर हो जाता. मुझे इस तरह देखने के बाद ईश्वर ने जुगनू बनाए.
फिर भी उड़ने का हुनर मुझे कभी न आया. न ही रोशनी का भंडारगृह बन पाया.
जब देखने को कुछ नहीं होता, तब भी अंधेरा दिखता है.
(मोत्सार्ट सिंफनी नंबर 1)
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