'मेरे मन टूट एक बार सही तरह, अच्छी तरह टूट मत झूठमूठ ऊब मत रूठ, मत डूब सिर्फ़ टूट'
रघुवीर कह गए थे. मन टूटा हुआ है, जबकि चाह थी कि ये दिन टूटें. इन दिनों को घुटने पर रखकर ऐसा झटका मारा जाए कि टूटकर दो टुकड़े हो जाएं. दिन नहीं टूट रहे. घुटना टूट रहा है. मन मेल्या पहले से टूटा हुआ है. या तो करने-कहने को कुछ बचा ही नहीं है या जो बचा है, उसे कहना-करना नहीं है. कैसी ट्रैजडी ही नीच!
दस साल पुरानी एक तस्वीर मिली है, दो दिन से दिल इसे ही घूरे जा रहा है. क्या पता, घूरे पर जा रहा है? अप्रैल 2000 है, नासिक का नज़ारा है, पीछे गोदावरी में डुबकियां लग रही हैं और तस्वीर के बाहर मन से कहा जा रहा है- मत डूब सिर्फ़ टूट.
16 comments:
wow...सोचा भी न था कि इतनी खूबसूरत कवितायें लिखने वाला इतना स्मार्ट लुकिंग भी होगा!
बढ़िया रहा १० साल पूर्व के आपको देखना!
थोड़ी देर तो हम ने भी घूरा..
सुन्दर! गौतम राजरिशी की टिप्पणी पहली अप्रैल के खाते में डाली जाये।
Ye Aap hain... Abhay Deol jaise dikhne wale....? Or kuch kuch Farooq Shekh jaise bhi....!!
Looking very nice in dis...
पहली अप्रैल !!!!!! अनूप जी ? अलसाहट के साथ
टूटने की बात मे वजन है .
अपनी ग़ज़ल का एक मिसरा याद आ गया
यकीं कीजे ये मैं ही हूँ, ज़रा फोटो पुरानी है
bhai waah!
गौतम और ख़दीजा, इतिहास से परिहास? ऐसा भी क्या ज़ुलुम करना.
शुक्ल जी के प्रस्ताव का अनु(प)मोदन.
मैं इतना उम्रदराज़ हो गया हूं कि दस साल पहले की चीज़ें किसी अनअटेनेबल अतीत की तरह याद कर सकूं.
Thus Spake Raghuvira.
:-)
वैसे उद्गार दिल से था...
....tujhe nazar lag gayee kisi ki....kya kahoo...bas yahee sochta hu......
Chhaya mat chhoona mann
hoga dukh doona mann...
........
kuchh bhi ho... tu hamare liye hamesha wohi geet rahega....pyara aur khubsurat....
aapne ghura hamari to nazar hi nahi hat rahi hain sir behatrin collection me se ye nayab heera
अभय देअल से भी बेहतर लग रहे हो। काश ये दस साल पहले ठहर जाता,हमेशा के लिए।
सिर्फ एक चीज छोड़ दें तो आज भी कोई ज्यादा फर्क नहीं आया है आपकी खूबसूरती में....
....और माल निकालिये काल-कोठरी से ताकी कुछ और घूरा जाए...अहा...ताकि नज़र कुछ दूर तक देखने की तासीर और पा जाए....
ittfaq se abhi kuchh din pahle hi nasik gaya tha...
behad khoobsoorat shahar hai..
lekin yah photo jyada...
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