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Photo- Ana Himes |
अलौट
अब कभी तुम उतनी मासूम नहीं दिख सकोगी, जितनी पंद्रह साल पहले की एक तस्वीर में
हमारे चेहरे की, और दिल की भी, मासूमियत सुखा देने के लिए कम नहीं होता एक पल भी
परिभाषा बदलकर सुंदरता को फिर पाया जा सकता है
मासूमियत को तो किसी पड़ोसी समार्थी तक से भय नहीं होता
इतनी निश्चिंत होती है कि जानती है जाने के बाद लौटकर आना नहीं इस देस
अस्थिरता की आराधना
जिस वक़्त वह जा रही थी, मैं अपनी टेबल पर बैठा एक कविता में खोया हुआ था। अभी-अभी मैं जिन सारी अस्थिरताओं से गुज़रा हूं, उन्हें इस कविता में पकड़ लेना चाहता हूं, इससे पहले कि वे सब उड़ जाएं। ऐसा मेरे साथ कई बार हुआ है। सोचता हूं कि इसे याद रखूंगा, स्थिर होते ही यह सब लिख डालूंगा। वे सारी स्मृतियां अस्थिरता की होती हैं। और उन्हें अभिशाप है कि स्थिर होते ही वे कपूर की तरह उड़ जाती हैं। सो, जब भी मैं उन्हें लिखने बैठता, वे खो चुकी होतीं।
अब मैंने स्थिरता की प्रतीक्षा बंद कर दी है। मैं अस्थिरता की आराधना में डूब जाता हूं। पता नहीं, वह कौन-सा शब्द था, जिसे मैं लिख रहा था, तभी उसने कहा,
मेरे कवि प्रेमी, एक दिन मैं तुम्हारी एक कविता बन जाऊंगी, तुम्हें हज़ार किस्म की दिक़्क़तों में डालूंगी, तुम तड़पकर उसे लिखोगे, और उस दिन तुम्हें मेरी क़ीमत का अहसास होगा।
जब वह दरवाज़े से बाहर निकल रही थी, मैं उसी तरह बेचैन हो रहा था, जैसे स्थिर क्षणों के बीच अस्थिर स्मृतियों के खो जाने और उन्हें काग़ज़ पर न लिख पाने के अफ़सोस के बीच बेचैन रहता था।
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7 comments:
Bahut khoob! Asthirta se haath mila lene mein hi bhalai hai!
प्रवाह की अनिश्चितता और अस्थिरता ही प्रवाह का सौन्दर्य भी है ।
हमेशा की तरह, यह ’रचना’ भी संवाद बनती है ।
सादर,
मासूमियत सुखा देने के लिए कम नहीं होता एक पल भी
जानलेवा बात शानदार ढंग से कही गई
आपको मिलती रहे अपनी कविता के लिए प्रेरणा.
मैं जब भी आपका लिखा कुछ पढ़ता हूं, तो मेरी आंखों के सामने दृश्य़ कौंधने लगते हैं। फिर ख़ुद को बहुत देर तक असहज महसूस करता हूं और बिना पढ़े रह भी नहीं पाता हूं। अजीब सी चुभन छोड़ती है आपकी लेखनी मेरी अंदर।
पता नहीं, वह कौन-सा शब्द था, जिसे मैं लिख रहा था, तभी उसने कहा...
सुन्दर रचनाएँ गीत चतुर्वेदी जी बधाई .
मासूमियत उम्र और कम अनुभवों की देन है. समय के साथ साथ कटु अनुभव चेहरे और मन को मासूमियत से खाली कर देते हैं और उसके स्थान पर यथास्थिति को सहन और स्वीकार करना सिखा देते हैं.मासूमियत का नहीं लौटन निश्चित है क्योंकि हम स्मृतियों का बोझा ढोते जाते हैं.स्मृतियों की तरह सम्बन्ध भी अस्थिरता की आराधना करते हैं.जिस पल हम उनमें डूबे होते हैं सब सच स्थायी लगता है.समय या व्यक्ति के आगे बढ़ते ही स्मृतियाँ भी तारतम्य में नहीं रहती और छिन्नभिन्न हो जाने पर उन्हें लिखना भी सरल नहीं है.
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