Tuesday, October 11, 2011

शाम से आंख में नमी-सी है





ईश्वर के उपवन के सबसे सुंदर पक्षी ने जगजीत के गले को अपने सबसे मुलायम पंख से छुआ था। कश्मीरी कारीगरों की रेशमकला के कई किस्से इतिहास में मिलते हैं। उस कलाकारी को देख जहांगीर ने उसे ईश्वरीय हाथों की बुनावट कही थी। अगर उस कला का आवाज़ में अनुवाद किया जाए, तो निश्चित ही वह जगजीत सिंह की आवाज़ होगी। 

कई गायकों को आप अकेले में सुनते हैं, लेकिन जगजीत आपको भीड़ के बीच भी अकेला कर देते हैं। सत्तर के दशक में महानगरीय आपाधापियों ने जब व्यक्ति के आत्म पर गहरी चोट करना शुरू कर दिया था, उसी दौरान उनकी आवाज़ रेशमी सुकून की तरह हमने अपने कानों में पहनी थी। मुंबई की ठसाठस भरी लोकल ट्रेन में जब कोई मोबाइल या आईपॉड का ईयरफोन कानों में खोंस उन्हें सुन रहा होता है, तो जगजीत उसे उस भीड़ से बाहर ले जाते हैं, एक नितांत निजी आत्म के क्षेत्र में खड़ा करते हैं। जिस अवस्था को आप घंटों की विपश्यना से प्राप्त करते हैं, उसी अवस्था को जगजीत अपनी आवाज़ में बुनी एक ग़ज़ल से उपलब्ध करा देते हैं। यह उनकी आवाज़ का वैभव है, जो एक साथ प्रेम, पीड़ा, उम्मीद, प्रतीक्षा और यक़ीन की अटल मीनारें आपके भीतर खड़ा करता है। जाने कितने होंगे, जिन्होंने प्रेम के अपने अनुभवों को जगजीत की आवाज़ में व्यक्त होते पाया होगा। महानतम प्रेमी मजनूं अगर अपनी दीवानगी को गाकर व्यक्त करता, तो वह जगजीत की ही आवाज़ होती।  जैसे महानतम शायर ग़ालिब जगजीत की आवाज़ में फबे। 


वह एक विनम्र और सकुचाई हुई आवाज़ थी। प्रेम से ज़्यादा संकोची कुछ नहीं होता। उसकी सांद्रता होंठों की बुदबुदाहट से ज़ाहिर होती है, चीख़ने से नहीं। जगजीत की आवाज़ में वह दर्द है, जो दबे पांव आता है, शोर नहीं करता और आपसे ख़ुद पर उस एतबार की मांग करता है, जो यह बता सके कि आपका रुदन बेआवाज़ होगा। वह होंठों के आधे खुलने पर निकली अनमनी-सी आवाज़ है, जो सबसे पहले मन को ही बांधती है। मन का पौधा शांति में उगता है। जगजीत की आवाज़ शांति की सिंचाई है। वह शास्त्रीयताओं के तने पर सुगमता की क़लम लगाते हैं और दिल को छू जाने वाली मख़मली सरलता और तरलता का गुलाब उगाते हैं।

वह विवशता के गायक हैं। उस विवशता के गायक, जिसमें यह हुनर है कि वह पराए दर्द को अपना बना ले। उसी तरह जैसे फुटपाथ पर बैठ अकेली रोती हुई स्त्री को हम कातरता से देखते हैं, घर लौटते हैं, तो पाते हैं कि हमारी विवशता के भी हाथ होते हैं, और उसने अपने हाथों में उस स्त्री का चेहरा थाम रखा है। वह स्त्री वहीं छूट गई है, लेकिन उसका रुदन हमारे साथ चला आया है। हमारे अकेलेपन में वह हमारे होने को परिभाषित करता है। जगजीत की आवाज़ उसी तरह हमारे होने की परिभाषा है।

कलाकार ईश्वर की सबसे प्यारी संतान होता है। हे ईश्वर! तुम जब भी अपनी बनाई दुनिया के तमाम दंद-फंद से कुछ पलों के लिए अलग होकर अकेले होना चाहते होगे, अपने आत्म के सबसे क़रीब बैठना चाहते होगे, मुझे यक़ीन है, उस समय तुम जगजीत सिंह को सुनते होगे। ईश्वर! अपनी आत्मा पर लगी हुई हर खुरच को तुम जगजीत की आवाज़ के मख़मल से पोंछा करते होगे। मुझे यक़ीन है।

(11 अक्‍टूबर को दैनिक भास्‍कर में प्रका‍शित)

18 comments:

समर्थ वाशिष्ठ / Samartha Vashishtha said...

Bahut umda, jaise Jagjit ki aawaz.

बाबुषा said...

"तुम ये कैसे जुदा हो गए
हर तरफ हर जगह हो गए"
श्रद्धांजलि.

मोहन वशिष्‍ठ said...

ik aawaj to di hogi hmne na suni hogi....................... May GOd keep his peace in soul.....

मोहन वशिष्‍ठ said...

sir shri jagjit singh ji aaj bhale hi hamare beech me nahi hai lekin unke chahne walon me se kuchhek aap jaise hain jo unko hamesha apni jaadui kalam se shrdhanjli dete rahenge aur amar kar diya

regard

Pratibha Katiyar said...

mujhe bhi yakeen hai...sundar likha geet ji!

देवेन्द्र पाण्डेय said...

शायद यह पोस्ट भी जगजीत सिंह की आवाज के एहसास से इतनी प्यारी हो गई है..वाह!

GGShaikh said...

"दुनियाँ न जीत पाओ तो हारो न खुद को तुम
थोड़ी बहुत तो ज़हन में नाराज़गी रहे..."
निदा फाज़ली जी के इस अस्तित्ववाद को जगजीत सिंह ने अपनी जोशीली सुरीली आवाज़ में ऊंचाई बख्सी थी, वाकई...

सच कहा गीत जी:
"मन का पौधा शांति में उगता है,
जगजीत की आवाज़ शांति की सिंचाई है.
कलाकार ईश्वर की सबसे प्यारी संतान होता है..."

उनकी गज़लों में उन्हें ढूंढेंगे और उन्हें पाएंगे भी,
पर अब के उनके न होने का गम भी वहाँ होगा...

Kanchan Lata Jaiswal said...

khan chale gaye tum khan kho gaye.
meri duniya se kyun kar juda ho gaye.
khushbuon ki manind tum hawa ho gye
abhi the yhin,kyun hmse juda ho gye.
shradhanjali meri jagjit ji ko

PRIYANKA RATHORE said...

dil ke derd ko bahut khoobsurti se ukera hai aapne....aabhar

sarita sharma said...

आपने जगजीत सिंह को बहुत ही प्यार से याद करते हुए भावभीनी श्रद्धांजलि दी है.उन्होंने गजल गायकी की ऊंचाइयों को छूते हुए उसे आम आदमी के सुख दुख से जोड़ दिया.जगजीत सिंह के साथ के अनेक गज़ल गायक पीछे छूटते गए मगर उनका क्रेज बढ़ता गया .ग़ालिब,नवाज देवबंदी या गुलजार हों-.उनकी आवाज से उनकी गजलों के नए अर्थ उभर कर सामने आते थे.हर पीढ़ी के पसंदीदा इस भगवान के सबसे प्यारे बंदे को युगों युगों तक मखमली अहसास कराने वाली जादूभरी आवाज के लिए याद किया जायेगा.कल से मन बहुत डूबा हुआ था और जगजीत सिंह की गयी कई गज़लें उस समय की अपनी मनोस्थिति के सन्दर्भ में याद आ रही हैं.यह लेख पढकर कुछ सुकून मिला.तलत महमूद के बाद मुझे जगजीत सिंह की आवाज ही ऐसी लगी जिससे खुद को भुला कर दूसरी दुनिया में पहुँचा जा सकता है जहाँ गायक की आवाज के साथ सफर करते हुए हम उन भावों को महसूस करते हैं जिन्हें वह व्यक्त कर रहा होता है.

mamta vyas bhopal said...

बहुत ही निराले अंदाज में , सुन्दरतम अभिव्यक्ति | गीत जी , आप जब लिखते है तो यूँ ही लिखने के लिए नहीं लिखते | आप रोकते हैं लोगो को | आवाज देते है,आपके शब्द की रुको , सुनो और समझो मुझे | मैं वही कह रह हूँ जो सब कहते है लेकिन मेरी अदा ज़रा निराली है | आपके हर शब्द में इक कहानी छुपी होती है | और हर वाक्य इक कहानी को बुनता हुआ सा प्रतीत होता है | आप कहानियों के , दर्शन के , भावों के , अहसासों के सिरे छोड़ते चले जाते हैं | मानो कह रहे हों | जिसे जो समझना हो वो समझ ले मैंने तो अपनी बात कह दी |
जगजीत जी पर हजारों लोगो ने अपने विचार रखे | लेकिन जिस तरह से आपने उन्हें परिभाषित किया | वो सुन्दरतम है | जगजीत भी आपको पढ़ते तो यकीनन कहते क्या मैं वाकई ऐसा हूँ ?
आपके शब्दों के मोती खुशबुदार है | और जब बात जगजीत की पुरकशिश गायकी की होतो बात और गहरी हो जाती है | उनकी आवाज लोगों खींचती है | अन्दर से आपको खंगालती है | छानती है | वो सिर्फ आपको नशे में ही नहीं डुबाती वरन दिल ही दिल में खिंचती सी महसूस होती है | इश्वर भी उन्हें सुनता होगा | वाह ! इससे सुन्दर बात और क्या हो सकती है ? वाकई मुझे भी यकीन है जगजीत जी को सुनने के बाद इश्वर आपकी इस सुन्दरतम अभिव्यक्ति को भी जरुर पढेगे |

Unknown said...

us aawaj ko sunna hamari khushnasibi hai sir lekin aapke shabad jaal mujhe kuch saal pehle ki yaadon me uljha gaye jab aksar hum aapki kalam sorry keyboard ko padhte the.

Neeraj said...

गीत, भावनाओं को शब्द दे दिए आपने और क्या खूब दिए | बहुत बहुत शुक्रिया |

शेरघाटी said...

आपका लहजा, आपकी ज़बां ! निशब्द ! हम सभी!
जग जीतने वाला ही मौत हार गया....
उनकी आवाज़ हमारे इर्द गिर्द है और रहेगी.

शहरोज़

प्रेम सरोवर said...

आपके पोस्ट पर आना सार्थक सिद्ध हुआ । पोस्ट रोचक लगा । मेरे नए पोस्ट पर आपका आमंत्रण है । धन्यवाद ।

अजेय said...

मानो जगजीत सिह की गाई कोई गज़ल हो! बहुत रुक रुक कर, थम थम कर, स्थिर हो कर पढ़ने की चीज़. अद्भुत! जगजीत सिंह पर इस से सटीक नहीं लिखा ज सकता.

SANDEEP PANWAR said...

बेहतरीन लिखा है,

Anonymous said...

tere bare mein jab socha nahi tha