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Saturday, April 21, 2012

पिकासो की प्रेमिकाएं






पिकासो की पेंटिंग 'सपना'. इसमें मैरी वॉल्‍टर मॉडल के रूप में हैं.

पिकासो का प्रेम-जीवन बहुत डरावना है. पिकासो ने कई बार प्रेम किया और हर बार वह ख़ुद प्रेम से दूर हुए. कई बार मुझे लगता है कि प्रेम भी उनके लिए एक प्रयोग था. वह न जाने किस चीज़ की तलाश कर रहे थे. उनके जीवन में कई प्रेम के बारे में पता चलता है, लेकिन सात प्रेमिकाओं ने उनकी कला पर गहरा प्रभाव डाला. पिकासो के कलात्‍मक जीवन में आलोचक सात मोड़ मानते हैं. द ब्‍लू पीरियड, द रोज़ पीरियड यानी गुलाब-काल, द न्‍यूड, क्‍यूबिज़्म, अफ्रीका से प्रभावित काल, क्‍लासिक दौर और सर्रियलिस्‍ट आदि हिस्‍से. हर प्रेम के बाद पिकासो के चित्रों में बदलाव आया. 


1904 : 
फरनांदे ओलिवर, पिकासो की पहली प्रेमिका थी. उसके साथ रहकर पिकासो ने 'द रोज़ पीरियड' पर काम किया. उस दौरान की अधिकांश पेंटिंग्‍स में जिस महिला की छवि है, वह ओलिवर ही है. दोनों नौ साल तक साथ रहे. पिकासो बहुत ईर्ष्‍यालु और पज़ेसिव प्रेमी थे. ओलिवर पर इतना संदेह करते थे कि कुछ घंटों के लिए बाहर जाना हुआ, तो ओलिवर को कमरे में बंद कर देते और बाहर से ताला लगा देते थे. ऐसा बरसों तक होता रहा, जब तक कि उनके जीवन में एवा गूल न आई. 


1913 :
एवा गूल के साथ भी पिकासो ओलिवर की तरह ही रहना चाहते थे, लेकिन यहां टकराव हुआ. उनका प्रेम-संबंध बहुत छोटा रहा. एवा ने दूर होने की धमकी दी, तो पिकासो ख़ुद ही दूर हो गए. एवा इसे सहन नहीं कर पाई, उसे टीबी हो गई. मनोरोगों और अवसाद से जूझते 1915 में उसकी मृत्‍यु हो गई. उसकी मृत्‍यु ने पिकासो को तोड़ दिया. क्‍यूबिज़्म पर किए गए तमाम कामों में आप पिकासो का एवा के प्रति प्रेम देख सकते हैं. क्‍यूबिज़्म में पिकासो पैशन से भरे हुए हैं.


1918 :
रूसी नर्तकी ओल्‍गा कोकलोवा से शादी करने से पहले पिकासो का ओल्‍गा की कई मित्रों से प्रेम रहा. ओल्‍गा रूसी नर्तकी थी और यूरोप के अभिजात्‍य में उसकी गहरी पैठ थी. उसने पिकासो को कई हाई-प्रोफ़ाइल लोगों से मिलाया, उनकी कला को पेरिस के एलीट के बीच प्रस्‍तुत किया. पिकासो मूलत: बोहेमियन स्‍वभाव के थे और ओल्‍गा पूरी तरह एलीट. दोनों में नहीं जमनी थी. नहीं जमी. ओल्‍गा से मुलाक़ात ही वह समय था, जब पिकासो ने बैलेरिना में पेंटिंग के प्रभावों को बदल दिया. उसी दौरान फिल्‍मकार ज़्यां कोक्‍त्‍यू से उनकी मित्रता गहरी हुई. कोक्‍त्‍यू ने कहीं लिखा, 'पिकासो मुझे रोज़ हैरत में डाल देते हैं. वह कई सुंदर आकार बनाते हैं, और घोषित सुंदरता से कुरूप आकारों की तरफ़ बढ़ते हैं. फिर वह सुंदर, सरल आकारों, चित्रों को रिजेक्‍ट कर देते हैं.' पिकासो ने यहां एक नया सौंदर्यशास्‍त्र गढ़ा था. लोगों ने जब उसे देखा, तो हैरान रह गए थे. उसे तुरत स्‍वीकृति नहीं मिली थी. यह ओल्‍गा के साथ पिकासो के प्रेम व कटु संबंधों का प्रतिफलन था. इनमें पिकासो का रंग-प्रयोग बहुत आक्रामक हो गया था. वहां ओल्‍गा भी अवसाद और पागलपन से घिर रही थी. 17 साल साथ रहने के बाद दोनों अलग हो गए. ओल्‍गा को नर्वस ब्रेकडाउन हो गया. वह विक्षिप्‍तों-सी हो गई. वह हमेशा उनका इंतज़ार करती रही.  ओल्‍गा को जब भी यह लगता कि पिकासो का प्रेम अब फलां लड़की के साथ चल रहा है, तो वह उस लड़की से संपर्क करती और पिकासो से दूर होने के लिए ध‍मकियां देती. धमकाते-धमकाते वह रोने लगती और धमकी, गुज़ारिश की भाषा में बदल जाती, 'मुझे मेरा पाब्‍लो लौटा दो.'  पिकासो ने उसे तलाक़ नहीं दिया था, क्‍योंकि ऐसा करने पर संपत्ति का आधा हिस्‍सा उसे देना होता. पिकासो धन के मामले में बेहद कंजूस थे. ओल्‍गा अपनी मृत्‍यु तक पिकासो की पत्‍नी बनी रही. 


1927 :
45 साल के पिकासो के जीवन में सत्रह साल की मैरी वॉल्‍टर आई. दोनों ने अपना प्रेम और रिश्‍ता गुप्‍त रखा. पिकासो उस समय ओल्‍गा के साथ रह रहे थे. वह किसी भी तरह इस रिश्‍ते को छुपा लेना चाहते थे, लेकिन वह अब तक सेलेब्रिटी बन चुके थे और ऐसा होना मुश्किल था. वह उनकी पेंटिंग्‍स के लिए मॉडल का काम करने लगी. पिकासो ने अपने घर के सामने एक मकान किराए पर लेकर मैरी को दिया. कुछ ही बरसों बाद उन्‍होंने एक महलनुमा स्‍टूडियो बनाया और मैरी वहां रहने लगी. 1935 में मैरी ने पिकासो की बेटी को जन्‍म दिया. इसके बाद ओल्‍गा सहित सभी को पिकासो के इस संबंध के बारे में जानकारी मिल गई. ओल्‍गा ने इसी घटना के बाद पिकासो को छोड़ दिया. मैरी हमेशा पिकासो से शादी करना चाहती थी. 'गेर्निका' बनाने के ठीक पहले क़रीब पांच साल तक पिकासो की पेंटिंग्‍स में बहुत चमकीले रंग, प्रसन्‍न चेहरे वाली एक युवती और आह्लाद के स्‍ट्रोक्‍स दिखते हैं. वे सब मैरी वॉल्‍टर है. चित्रों में अनूदित प्रेम. बेटी के जन्‍म के दो साल बाद पिकासो का एक और प्रेम होना था डोरा मार से. इस प्रेम के बारे में जानकारी मिलते ही मैरी बहुत दुखी हुई. वह अपनी बेटी के साथ दूर रहने चली गई. पिकासो ने कभी उससे शादी नहीं की, लेकिन हमेशा उसकी आर्थिक मदद करते रहे. 1977 में, पिकासो की मौत के चार साल बाद, बरसों लंबे अवसाद से परेशान होकर मैरी ने गले में फंदा डालकर आत्‍महत्‍या कर ली. 


1936 :
एक दावत में कवि पॉल एलुआर, पिकासो की मुलाक़ात फ्रेंच फोटोग्राफ़र डोरा मार से कराते हैं. डोरा बला की ख़ूबसूरत है और बहुत सुंदर स्‍पैनिश बोलती थी. पिकासो उसके भाषा पर प्रभुत्‍व से प्रभावित हो गए. पिकासो ने डोरा मार से प्रेम के बाद ही महान पेंटिंग 'गेर्निका' बनानी शुरू की. स्‍पैनिश गृहयुद्ध की विभीषिका पर आधारित यह पेंटिंग अगर आप सामने देखें, तो रोंगटे खड़े हो जाएंगे, लेकिन उस पेंटिग में भी एक सुंदर चेहरा है, लेकिन वह रो रहा है. वह डोरा मार है. डोरा मार फोटोग्राफर थी और उसने 'गेर्निका' की रचना-प्रक्रिया और उसकी निर्मिति की छवियां बनाईं. 'गेर्निका' के बारे में कही गई उसकी बातें आज भी सबसे ज़्यादा प्रामाणिक मानी जाती हैं. एक दिन मैरी वॉल्‍टर अचानक पिकासो के स्‍टूडियो पहुंची और वहां उसने डोरा मार को देखा. डोरा के साथ प्रेम की ख़बरें मैरी ने सुन रखी थीं. वहां दोनों में कहासुनी हुई. पिकासो ने कहा कि तुम दोनों आपस में तय कर लो, मुझे किसके साथ रहना चाहिए. वह कुर्सी लगाकर बैठ गए. दोनों प्रेमिकाओं की कहासुनी बाक़ायदा कुश्‍ती में बदल गई. उन्‍होंने एक-दूसरे के बाल खींचे, कपड़े फाड़ दिए, और एक-दूसरे का उठाकर पटक दिया. मैरी वॉल्‍टर ने अपमानित और पराजित महसूस किया और पिकासो के जीवन से बाहर चली गई. डोरा मार उनके साथ रही. पिकासो ने अपने संस्‍मरणों और इंटरव्‍यूज में कहा है, 'वह मेरे जीवन का सबसे सुंदर क्षण था, जब मैंने दो औरतों को मारपीट करते देखा, इस बात के लिए मारपीट कि मेरे साथ कौन रहेगा.' पिकासो हमेशा उन स्थितियों को पसंद करते थे, जब एक महिला, उन पर दावेदारी के लिए दूसरी को कोस रही होती थी. लेकिन सात साल बाद पिकासो डोरा मार से भी अलग हो गए. डोरा के लिए यह इतना बड़ा सदमा था कि वह रोती रही, रोती रही. वह इतना रोई कि उसे रोना रोकने के लिए दवाएं लेनी पड़ीं. उसके बाद वह कभी अवसाद से बाहर नहीं आ सकी. बीस साल इसी दुख में रहने के बाद उसके कुछ प्रेम और हुए, लेकिन पिकासो की जगह कोई न ले पाया. पिकासो ने अपनी पेंटिंग्‍स में हमेशा उसे रोती हुई सुंदरी के रूप में दिखाया था. डोरा मार को नहीं पता था कि पिकासो उसका वर्तमान नहीं, उसका भविष्‍य रंग रहे हैं. प्रेम में पागल हुई, धोखा खाई एक रोती हुई बर्बाद सुंदरी. पिकासो ने उसके लिए निजी पेंटिंग्‍स बनाई थीं. 1997 में डोरा ने अपनी मृत्‍यु तक उन्‍हें छिपाए-संभाले रखा था. 


1944 :
पिकासो 63 साल के थे, जब उनका प्रेम कला की छात्रा 23 वर्षीय जीलो से होता है. पिकासो से संबंध को जीलो ने प्रेम के साथ-साथ अपने कैरियर में बड़े बदलाव की तरह भी देखा. पिकासो के साथ उसने कला की बारीकियां सीखीं. पिकासो के लिए उसने आर्ट क्रिटीक का काम किया. मॉडल के अलावा वह पिकासो के आयोजनों की मेज़बान भी थी. डोरा मार से प्रेम के दौरान ही पिकासो का प्रेम जीलो के साथ हुआ और इसी कारण वह डोरा से अलग हुए. दोनों के अलग होते ही जीलो पिकासो के साथ रहने लगी. उसने भी पेंटिंग्‍स बनाईं और उसे नाम मिला, लेकिन पेरिस के कलाजगत का यह मानना था कि एक अत्‍यंत प्रतिभाशाली लड़की ने पिकासो से प्रेम करके ख़ुद को ख़त्‍म कर लिया है. अगर वह खु़द अकेले अपनी पेंटिंग्‍स पर काम करती, तो शायद उसे ज्यादा प्रसिद्धि मिलती. जीलो पेरिस में ही थी, जहां उसने पिकासो की रूसी नर्तकी पत्‍नी ओल्‍गा के पागलपन को झेला. ओल्‍गा ने पिकासो की प्रेमिकाओं में संभवत: जीलो पर ही सबसे ज़्यादा प्रहार किए. जीलो की स्थिति भी ओल्‍गा जैसी ही होने लगी. क़रीब दस साल तक साथ रहने के बाद वह पिकासो से अलग हो गई. अलगाव के बाद उसने किताब लिखी- लाइफ़ विद पिकासो, जिसकी लाखों प्रतियां बिकीं. पिकासो ने उस किताब का प्रकाशन रुकवाने के लिए कोर्ट में केस कर दिया था, लेकिन वह हार गए. जीलो ने उसके बाद पेंटर और लेखिका के रूप में अपना जीवन बिताया, और वह पिकासो की एकमात्र प्रेमिका थी, जिसने पिकासो से अलगाव के बाद अपना मानसिक संतुलन नहीं खोया. 


1953 :
पिकासो अब बूढ़े हो गए थे, लेकिन अब नवयुवतियों के प्रति उनका प्रेम और प्रगाढ़ हो रहा था. जीलो के साथ प्रेम के दौरान ही उनके कई छिटपुट संबंध बने, लेकिन 27 साल की जैकलीन रोके के आने से जीलो के साथ उनके संबंध समाप्‍त हो गए. रोके भी उनमें से थी, जिनसे पिकासो पहली ही नज़र में प्रेम कर बैठे. उसे प्रभावित करने के लिए एक दिन वह रोके के घर गए और उसके दरवाज़े पर चॉक से कबूतर का चित्र बनाया. उसके बाद वह छह महीने तक लगातार हर रोज़ रोके को गुलाब देते रहे. अंतत: रोके भी उनके प्रेम में पड़ गई. इस प्रेम को भी उन्‍होंने गुप्‍त रखा. जीलो ने अपने पति को तलाक़ दे दिया था और पिकासो से शादी करना चाहती थी. पिकासो ने ही उसे तलाक़ देने को कहा था, लेकिन उस दौरान उन्‍हें लगा कि जीलो सिर्फ उनके पैसों के कारण उनसे शादी करना चाहती है. पिकासो ने चोरी-छिपे रोके से शादी कर ली. यह पिकासो का आखि़री प्रेम था. दोनों 20 साल तक साथ रहे. पिकासो अब हर चीज़ से दूर हो चुके थे. बीमार और बूढ़े. सिर्फ़ चित्र बनाया करते. रोके को सामने रख उन्‍होंने 400 से ज़्यादा चित्र बनाए. रोके न केवल उनकी पत्‍नी थी, बुढ़ापे का सहारा, बल्कि उनकी सेक्रेटरी भी. 1973 में पिकासो की मौत के बाद उनकी जायदाद को लेकर विवाद हो गया्. जीलो, पिकासो के बच्‍चों की मां थी. उसने केस कर दिया. रोके क़ानूनी पत्‍नी थी. अंत में मामला सुलझाया गया और पिकासो की जायदाद से बनी संस्‍था 'म्‍यूसी पिकासो' की स्‍थापना हुई. यह नाम पिकासो की प्रेमिकाओं और प्रेरणाओं की स्‍मृति में रखा गया. रोके पिकासो से बहुत जुड़ी हुई थी. उनके मरने के बाद उनकी कला और उससे जुड़ी आर्थिकताओं को संभालती रही, लेकिन अकेलापन उसके लिए भारी था. वह पिकासो को याद कर हमेशा रोती. रुदन से अवसादग्रस्‍त होती. कभी हाइपर हो जाती. ऐसी ही, स्‍मृतियों के आक्रमण में ख़ुद को संभलने में अक्षम पा उसने ख़ुद को गोली मार ली. 


पिकासो ने सबसे प्रेम किया. उनका निजी जीवन था, उनका रवैया सही था या ग़लत, इस पर नैतिकतावादी कुछ भी कह सकते हैं. हम भी कह सकते हैं.

पर बहुधा मुझे लगता है, शायद पिकासो बहुत जुनूनी प्रेमी थे, इसीलिए उनका अलग होना उन स्त्रियों को सहन नहीं हुआ, जो ख़ुद उनसे अलग हो जाना चाहती थीं. शायद पिकासो ने उनके अनेक प्रश्‍नों को अनुत्‍तरित छोड़ दिया था. प्रेम में ऐसी दीवानगी उस समय भी आती है, जब आपका प्रेमी आपके प्रश्‍नों के जवाब नहीं देता. तब आप सिर्फ़ प्रेम के लिए नहीं जी रहे होते, बल्कि उन उत्‍तरों के लिए भी जी रहे होते हैं. 



(डायरी से.)

Monday, February 27, 2012

मैं समंदर को प्रेम क्‍यों कहता हूं?






photo source : unknown (with apologies)
कल एक मित्र ने पूछा, 'जब भी प्रेम पर लिखते हो, उसमें समंदर ज़रूर आता है. क्‍यों?' 

मैंने कहा, 'पेड़ भी आते हैं. आसमान भी आ ही जाता है.' 

'लेकिन समंदर ज़्यादा आता है.' 

मैंने उसे कुछ कारण बताए. सारे तो मैं बता भी नहीं पाऊंगा. या उनका समय ही नहीं अब. पर समंदर मेरी निजी पसंद है. बहुत सारे लोगों को पसंद है, इसलिए निजता वैसी भी नहीं. कुछ ऐसी है, जैसे हवा सबकी निजी ज़रूरत है, फिर भी जीव होने के कारण मेरी विशेष ज़रूरत भी है. 

पहला कारण तो संभवत: यही है कि मैं मुंबई का हूं, वहीं पला-बढ़ा, वहीं हंसा-रोया. जब बहुत ख़ुश होता, तो समंदर के पास चला जाता. जब बहुत उदास होता, तो समंदर के पास चला जाता. किनारे जब अकेला बैठता, तो समंदर सशरीरी रूप में मेरी बग़ल में आ बैठता. किनारे जब किसी के साथ बैठता, तो समंदर हम दोनों के बीच एक पतली दरार की तरह अंड़स जाता. जिस समय निगाहों के आगे न होता, उसकी तस्‍वीर होती. भयानक चुप्‍िपयों के बीच मैंने समंदर की आवाज़ को स्‍मृति की तरह सुना है. तब से मेरा यक़ीन है कि आवाज़ें गीली होती हैं. 

इस समय भी जब यह लिख रहा हूं, कमरे में सिर्फ़ की-बोर्ड खटक रहा है, बीच-बीच में आदत के मुताबिक़ टाइप करते हुए मैं शब्‍दों को उच्‍चार भी रहा हूं. जैसे यही पंक्ति उच्‍चार कर टाइप की. और कोई बाहरी आवाज़ नहीं है. फिर भी मैं समंदर की गीली आवाज़ को कानों में टपकता पाता हूं. 

मैं अपनी हथेली का स्‍पर्श अपनी ही जीभ से करता हूं. अरब सागर का नमक मेरे स्‍वाद का अभिवादन करता है. 

मुझे तैरना नहीं आता. गहरे पानी से मैं हमेशा ख़ाइफ़ रहता हूं. डूबने के लिए किसी ट्रेनिंग की ज़रूरत नहीं पड़ती. उसे कोई नहीं सिखा सकता, इसलिए वह तैरने से भी ज़्यादा मुश्किल है. 

जितनी बार मैंने समंदर को देखा, पाया, वह सिर्फ़ ऊपर से ही बेज़ार रहता है, लगातार अस्थिर. एक ही दिशा में बार-बार दौड़ता हुआ. उसके भीतर की तस्‍वीरें देखी हैं. निस्‍तब्‍धता है. गहरी शांति. अपूर्व स्थिरता. लहरें गहराई का गुण नहीं. लहरें समंदर की त्‍वचा हैं, शल्‍कयुक्‍त. अस्थिरता आंखों का सुरमा है. चंचलता गहना है. शांति उपलब्धि है. स्थिरता को हमेशा एक अस्थिर चादर की दरकार होती है. लहरें सबकुछ बाहर फेंक देती हैं. गहराई सबकुछ समेट लेती है. 

प्रेम का स्‍वभाव भी कुछ ऐसा ही है. सारी बेचैनी ऊपरी होती है, भीतर कहीं प्रेम की शांति होती है. आप कितना भी लड़ रहे हों, भीतर एक स्थिरता होती है, इस अनुभूति से भरी कि प्रेम है, निश्‍िचत है, तभी यह अस्थिरता है. प्रेम हर चीज़ को लौटा देता है. प्रेम हर चीज़ को गहराई में समेट लेता है. प्रेम निराकार न होता, तो यक़ीनन उसका आकार समंदर जैसा होता. एक अस्थिर स्थिरता. एक स्थिर अस्थिरता. एक स्थिर गति. एक गतिमान स्‍थैर्य. यानी प्रेम. यानी समंदर. 

घंटों समंदर के किनारे अकेले बैठे रहने के बाद उभरने वाली ये अनुभूतियां अब भी साथ चलती हैं. इसीलिए समंदर अब भी साथ चलता है. दृष्टि में नहीं है. स्‍मृति में चलता है. जीवन में आप कितनी भी बुरी स्थिति में हों, प्रेम हमेशा आपके साथ चलेगा. दृष्टि में न चले, स्‍मृति में तो चलेगा ही. 

*
Pic by Diana Catherine
एक और कारण्‍ा है. वह ग्रीक मिथॉलजी से आता है. अफ्रोडाइटी ग्रीक मिथ में प्रेम, सौंदर्य और आनंद की देवी हैं. उसके पिता आसमान (यूरेनस) और मां दिन (दिएस) है. लेकिन वह दिएस से नहीं जन्‍मी थी. वह समंदर से जन्‍मी थी. बहुत सुंदर कथा है. विस्‍तार में नहीं जाऊंगा. यही कि एक द्वंद्व में यूरेनस का जननांग कटकर समंदर में गिर गया. लहरें झाग से भरी हुई थीं. झाग को लातिन में अफ्रोस कहते हैं. उस झाग से एक सुंदर युवती का जन्‍म या अवतरण हुआ. महान सुंदरी. अफ्रोस से निकलने के कारण उसका नाम अफ्रोडाइटी पड़ा. उस महान सुंदरी को प्रेम की देवी कहा गया. इस तरह प्रेम की देवी का जन्‍म समंदर के भीतर से होता है. अफ्रोडाइटी की सुंदरता के कारण युद्ध हुए. ख़ुद उसने कई युद्धों में भाग लिया. ट्रॉय के युद्ध में वह पेरिस के साथ थी. पेरिस के प्रेम ने उस युद्ध को जन्‍म दिया था. 

अफ्रोडाइटी, जिसने जीवन में अनंत बार प्रेम किया. प्रेम की शुद्धि और निष्‍ठा पर विमर्श चलाना सरपंचों का काम है, सहृदय सिर्फ़ उसका प्रेम देखेगा. मैं जब भी किनारे की झाग देखता हूं, मुझे अफ्रोडाइटी याद आती है. मैं झाग से निकलती एक देवी को देखता हूं और पाता हूं कि समय का गुज़र जाना हमारा भ्रम है. वह वहीं रहता है. कहीं नहीं जाता. जैसे हज़ारों साल पुराना वह ग्रीक समय कहीं नहीं गया. वह बांद्रा में बैंड स्‍टैंड के किनारे खड़ा रहता है. वह नरीमन पॉइंट पर खड़े होने पर मरीन ड्राइव के क्‍वीन्‍स नेकलेस की तरह दमकता रहता है. 


ऋग्‍वेद कहता है कि हम सब जल की सं‍तति हैं. हम सब पानी से पैदा हुए हैं. समंदर के पानी से. अफ्रोडाइटी पानी से पैदा होती है. हम सब पानी से पैदा हुए हैं. हम सब अफ्रोडाइटी हैं. अफ्रोडाइटी प्रेम की देवी है. हम सब प्रेम के देव हैं. प्रेम के देवों को समंदर पैदा करता है. प्रेम को समंदर पैदा करता है. फिर क्‍यों न भला समंदर प्रेम का स्‍वामित्‍वबोधी रूपक हो? 

भाषा में मुझे नर-नारायण्‍ा का युग्‍म बड़ा मोहता है. सवाल आस्तिकताओं का नहीं, भाषा का है. नारायण, जिसका व्‍यावहारिक अर्थ विष्‍णु से लिया जाता है, लेकिन इसका शाब्दिक अर्थ है - वह जो पानी पर तैरता हो. जब यह कहा जाता है कि नर ही नारायण है, तो तुरंत मुझे ख़्याल आता है कि नर तो पानी पर तैरते हैं. भले तैरना न भी आए, तब भी. मन आपका सबसे बड़ा तैराक है. देह डुबो दोगे, मन को कैसे डुबोओगे? वह तो तिरता पार निकल जाएगा. डूबने की नई जगह का पता खोज लाएगा. उठो, नई जगह चलो. आप प्रेम में डूबते हैं, लेकिन प्रेम हमेशा तैरता रहता है. सबकुछ समंदर में डूबता है, लेकिन समंदर हमेशा तैरता रहता है. भले कहीं न पहुंचे. इस तरह समंदर ही नारायण है. वह जो पानी पर तैर सके. प्रेम भी यही है. हमेशा तैरता रहता है. भले कहीं न पहुंचे. 

पानी यानी नदी नहीं. जीवन की पहली नदी, (जिसे सही तरह से नदी कह सकते हैं, मुंबइया नाला टाइप नदियों से परे) जब देखी थी, तब तक मैं समंदर के इश्‍क़ में पड़ चुका था. और जब यह विचार आया कि अंतत: सारी नदियां, समंदर के मोह में ही धरातल पर तैरती हैं, तो लगा, मैं तो पहले ही गंतव्‍य में डूबा हूं. मैं नदी से समंदर की तरफ़ नहीं जाता, समंदर से नदियों की तरफ़ आया हूं. मैं उल्‍टे रास्‍तों का यात्री हूं. 

जब मैं ये सारी चीज़ें देखता हूं, तो समंदर को प्रेम से सिल देता हूं. दोनों एक हैं मेरे लिए. मेरी कविता और गद्य के लिए भी. 

पुराने ज़माने से कवियों को समंदर एक रूपक की तरह लुभाता रहा है. मुझे भी लुभाता है. ऐसे समय में मुझे नेरूदा का वह उद्घोष याद आता है, जब उन्‍होंने छद्म प्रयोगवादियों की ओर मुस्‍कान फेंकते हुए कहा था-- The Rose and The Moon are not alien to us. यानी सृष्टि के अंत तक दोनों ही प्रेम के प्रतीक बने रहेंगे, चाहे कितने भी नयेपन का आग्रह हो. 

ऐसे बहुत सारे कारण हैं, जिनके बारे में इत्‍मीनान से लिखूंगा, जिनने मेरे चेतन-अवचेतन में इस तरह के बिंब जिलाए हैं. और मेरे जिन दोस्‍तों को हमेशा यह गुप्‍तरोग रहता है कि तुम विदेशी साहित्‍य से प्रभावित हो, वे हैरत में पड़ जाएंगे कि अधिकांश बातें भारतीय मिथॉलजी से निकलकर आती हैं. 


(डायरी का हिस्‍सा, 21 फ़रवरी 2012)