Friday, April 4, 2008

आज महान गायक कुंदनलाल सहगल का जन्‍मदिन है...

सहगल एक तलाश का नाम है- अपने भीतर किसी चीज़ की तलाश। जैसे कस्तूरी की तलाश करता है मृग, वैसी ही बेचैनी। सहगल का वक्त देख लें। घड़ी में तूफ़ान आया लगता है। रात यहां हैं, सुबह वहां हैं, दिन में कहां होंगे, किसे पता है। भटकन है। फिसलन है। कभी जम्मू में हैं, कभी जालंधर, शिमला, मुरादाबाद, कानपुर, कलकत्ता, मुंबई, पुणे। सहगल दौड़ रहे हैं। चीज़ें हाथ से फिसल रही हैं। दर्द का दरिया ठाठें मार रहा है। सुर गले में कांटे पैदा कर रहे हैं। बड़ी ख़लिश है। इस तपिश को किस बुख़ार का नाम दिया जाए? उस शख़्स के दुख को समझा जाए, जिसे अपनी तलाश का इल्म नहीं। जिसे पता नहीं कि दिल में बेचैनी का बगूला आखि़र क्यों उठता है? दर्द कहां से आता है? पीर क्यों परबत-सी हो जाती है? ग़म की गंगा किस आकाश से आती है? दिल का हुड़दंग अंत में सितार के तार में सुरों से बंध जाता है। चुभन हारमोनियम के बटन में पनाह पाती है। संगीत के महादेव! खोलो अपनी जटाएं। थाम लो ग़म की इस गंगा को, जो सारे बंध तोड़ती हज़ारों मील ऊंचे आसमान से गिर रही है- लटपटाती हुई, ख़ब्तुलहवास! कुंदन, आ जाओ और थाम लो दुखों को। देखो, तुम्हारे जाने को बाद से वीरान है मौसीक़ी का मयकदा, ख़ुमो-सागर उदास है...

उन्हें हिंदी सिनेमा का पहला सुपरस्टार कहा गया। पाकिस्तानी शायर अफ़ज़ाल अहमद सैयद से शब्द उधार लें, तो कह सकते हैं, जैसे काग़ज़ मरा‍कशियों ने ईजाद किया था, हुरूफ़ फिनिशियों ने, सुर गंधर्वों ने, उसी तरह सिनेमा का संगीत सहगल ने ईजाद किया। दुनिया में कई रहस्य हैं। चुनौती देते। चुनौती सहगल भी दे गए हैं। फ़क़ीरों-सा बैराग, साधुओं-सी उदारता, मौनियों-सी आवाज़, हज़ार भाषाओं का इल्म रखने वाली आंखें, रात के पिछले पहर गूंजने वाली सिसकी जैसी ख़ामोशी, और पुराने वक़्तों के रिकॉर्ड की तरह पूरे माहौल में हाहाकार मचाती एक सरसराहट... बता दो एक बार, ये सब क्या है? वह कौन-सी गंगोत्री है, जहां से निकल कर आती है सहगल की आवाज़? पता कर लो, कहां से आता है सहगल का दर्द, जो सीने में हूक, आंखों में नमी और कंठ में कांटे दे जाता है? क्यों एक रुलाहट आंखों पर दस्तक देती है और बिना कुछ कहे तकती हुई-सी लौट जाती है? यह सुबह या दुपहरी की नहीं, सांझ के झुटपुटे की आवाज़ है, जिसका असर रात के साथ गहरा होता जाता है। अगर आप दिल से कमज़ोर हैं, आधी रात को सहगल मत सुनिए। उन्हें सुनना भाषा में तमीज़ को जीना है। आंख में आंसू का सम्मान करना है। दुख जो दिल के क़गार पर रहता है, उसे बीचो-बीच लाकर महल में जगह देनी है। दुख को जियो, तो जीने का शऊर आ जाता है।

सहगल चमचमाती हुई कामयाबी का नाम नहीं है, राख और धुएं का नाम है। बर्बादी का जश्न है, जो सूखते हुए पत्ते को नम हो जाने का मंत्र देता है। वह तपती हुई रेत है, जिस पर तलवे रखने से मज़बूती हासिल होती है। वह क़तरा-क़तरा अपनी मौत में घुसता है और अपनी अंजुरी में भरकर सूर्य को सुरों का अर्घ्य देता है। वह अपना घर जलाता है और सितारों को रोशनी का दान देता है। वह शरत् का देवदास है- असली देवदास, जिसमें बचाने के लिए, ख़त्म हो जाने का साहस है। देवदास हर दिल में रहता है। पारो हर लड़की में रहती है। सहगल हर नब्ज़ में बहता है। हर कंठ में कांटों की शक्ल में रहता है, हर उस हथेली में चुभन बनकर बसता है, जो किसी पुराने स्पर्श की याद में बिसूर रही होती है।

सहगल के बारे में कुछ खास बातें
1- सहगल की उदारता के कई कि़स्से मिलते हैं। कहते हैं कि न्यू थिएटर्स के ऑफिस से उनकी सैलरी सीधे उनके घर पहुंचाई जाती थी, क्योंकि अगर उनके हाथ में पैसे होते, तो आधा वह शराब में उड़ा देते, बाक़ी ज़रूरतमंदों में बांट देते। एक बार उन्होंने पुणे में एक विधवा को हीरे की अंगूठी दे दी थी।

2- सहगल बिना शराब पिए नहीं गाते थे। 'शाहजहां' के दौरान नौशाद ने उनसे बिना शराब पिए गवाया, और उसके बाद सहगल की जि़द पर वही गाना शराब पिलाकर गवाया। बिना पिए वह ज़्यादा अच्छा गा रहे थे। उन्होंने नौशाद से कहा, 'आप मेरी जि़ंदगी में पहले क्यों नहीं आए? अब तो बहुत देर हो गई।

3- सहगल को खाना बनाने का बहुत शौक़ था। मुग़लई मीट डिश वह बहुत चाव से बनाते थे और स्टूडियो में ले जाकर साथियों को भी खिलाते थे। यही नहीं, आवाज़ की चिंता किए बग़ैर वह अचार, पकोड़ा और तैलीय चीज़ें भी ख़ूब खाते थे। सिगरेट के भी ज़बर्दस्त शौक़ीन थे।

4- सहगल ने ग़ालिब की क़रीब बीस ग़ज़लों को अपनी आवाज़ का सोज़ दिया। ग़लिब से इसी मुहब्बत के कारण उन्होंने एक बार उनके मज़ार की मरम्मत करवाई थी।

5- सहगल पहले गायक थे, जिन्होंने गानों पर रॉयल्टी शुरू की। उस वक़्त प्रचार और प्रसार की दिक़क़्तों के बावजूद श्रीलंका, ईरान, इराक़, इंडोनेशिया, अफ़ग़ानिस्तान और फिजी में सुने जाते थे। आज भी 18 जनवरी को कई देशों में सहगल की याद में संगीत जलसे होते हैं।

6- वह विग लगाकर एक्टिंग करते थे। अभिनेत्री कानन देवी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, 'साथी की शूटिंग के दौरान हवा के झोंके से उनकी विग उड़ गई और उनका गंजा सिर दिखने लगा। लेकिन सहगल अपनी धुन में मगन शॉट देते रहे। इस पर दर्शक हंस पड़े। सहगल झेंपने की जगह लोगों के ठहाकों में शामिल हो गए।

7- सहगल की क़द्र भारत से ज़्यादा पाकिस्तान में नज़र आती है। वहां जि़ला स्तर पर सहगल यादगार कमेटियां बनी हैं। सहगल की बरसी पर आम प्रशंसा बाक़ायदा लंगर लगाते हैं।

8- लता मंगेशकर सहगल की बड़ी भक्त हैं। वह चाहती थीं कि सहगल की कोई निशानी उनके पास हो। वह उनकी स्केल चेंजर हारमोनियम अपने पास रखना चाहती थीं, पर सहगल की बेटी ने उसे अपने पास रखते हुए सहगल की रतन जड़ी अंगूठी लता को दी। लता के पास आज भी वह निशानी है। कहते हैं कि कमउम्र में लता ने सहगल की एक फिल्म देखने के बाद उनसे शादी करने का ख्‍याल ज़ाहिर किया

9- रेडियो सीलोन पर हर सुबह 7:57 बजे सहगल के गाने चलते थे। जालंधर के पुश्तैनी मकान में जिस वक्त सहगल की मौत हुई थी, उस वक्त सुबह के 7:57 ही बजे थे। जिस्म चला गया था, फि़ज़ा में तैरती उनकी आवाज़ बाक़ी रह गई थी।

(नवरंग, दैनिक भास्कर 18 जनवरी 2007 से)

18 comments:

Udan Tashtari said...

सहगल साहब के जन्मदिन पर दैनिक भास्कर से इतनी उम्दा और रोचक जानकारी परोसने के लिये बहुत आभार.

Yunus Khan said...

गीत जी कुछ गड़बड़ लगती है । सहगल का जन्‍मदिन चार अप्रैल को नहीं है बल्कि ग्‍यारह अप्रैल को है लगता है आपने एक सप्‍ताह पहले पोस्‍ट कर दिया ये लेख ।

अनूप शुक्ल said...

बहुत सुन्दर! शुक्रिया इसे पढ़वाने के लिये।

Geet Chaturvedi said...

युनूस भाई, इस बात का स्‍पष्‍टीकरण मुझे अपने लेख में कर देना चाहिए था. वि‍कीपीडिया सहित इंटरनेट की कई साइट्स, कुछ रेडियो कार्यक्रम व कुछ किताबें सहगल का जन्‍मदिन 11 अप्रैल बताती हैं, लेकिन उनका जन्‍मदिन 4 अप्रैल था, ऐसा जालंधर और शिमला में रहने वाले उनके परिजनों का कहना है. जालंधर में स्‍थापित सहगल मेमोरियल, भी जन्‍मदिन चार अप्रैल ही मानता है. पंजाब, पाकिस्‍तान और दुनिया के कई हिस्‍सों में उनके यादगारी कार्यक्रम चार अप्रैल को ही होते हैं. नेट पर ही पिछले बरसों के आर्काइव्‍ज़ देखने पर मिले पेजेस में भी जलसे चार अप्रैल को ही मनाए जाने की ख़बरें हैं . चाहे वह प्राण नेविल की ऑफिशियल साइट हो, ट्रिब्‍यून की या यू ट्यूब की. मेरे ख्‍याल से उनके मेमोरियल और परिजनों द्वारा कई बरसों से कही जा रही तारीख चार अप्रैल को ही मानना चाहिए. ख़ैर, ये शोध का विषय हो सकता है कि 11 अप्रैल की तारीख कहां से उछली थी, पर सहगल को याद करने के लिए तारीख़ की ज़रूरत नहीं पड़ती.

Abhishek Ojha said...

इस पोस्ट के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद !

Nandini said...

वाह जी, क्‍या लिखते हैं आप। कल गीता दत्त और आज सहगल। दोनों कमाल के लिखे हुए। ऐसी खूबसूरत और काव्‍यात्‍मक भाषा, ब्‍लॉगजगत में तो नहीं मिलती। हर पंक्ति इतनी खूबसूरत और गहरे अर्थ वाली। इसीलिए आपको पढ़ना बहुत अच्‍छा लगता है। दर्द, प्रेम, बेचैनी और कोमलता का गहरा अनुभव होता है। बेफिजूल की बहसों और व्‍यंगात्‍मक खींचाताना वाली ब्लगजत में आप अलग गंभीरता और संवेदनाएं लेकर आए हैं। इसीलिए इतना पढ़ा जा रहा है आपका चिट्ठा। इसे जारी रखिएगा।

Ek ziddi dhun said...

कोई कह रहा था कि सहगल की आवाज में दुःख की स्त्री कंठ सा खरापन है, जो पुरुषों में नहीं ही मिलता

Anil Dubey said...

इतनी बढिया पोस्ट के लिये धन्यवाद.दिल गदगद हो गया.

दिनेशराय द्विवेदी said...

क्या बात है भाई, लगता है सहगल 4 से 7 अप्रेल पूरे हफ्ते भर तक पैदा होते रहे। हम भी उन का जन्म दिन पूरे हफ्ते मनाएंगे।

Geet Chaturvedi said...

हा, हा, हा। अब ये नई सात वाली तारीख कहां से ले आए आप...
भाई, दुआ तो यही है कि सहगल बार-बार पैदा हों, हर बार गाएं, डूबकर गाएं, हम डूबकर सुनें और सालों उनका जन्‍मदिन मनता रहे, एक ही दिन नहीं...

chand shabdo ne kaha said...

kafi achha laga sahagal par pad kar. geetji aap lajawab hai. blogvani par aapko dekh kar achha laga. yadi charli chaplin par bhi kuch likhe to maja aajaye. blogvani ke logo ke liye ye kafi achha hoga.
aapka aabhar.

chand shabdo ne kaha said...

kafi achha laga sahagal par pad kar. geetji aap lajawab hai. blogvani par aapko dekh kar achha laga. yadi charli chaplin par bhi kuch likhe to maja aajaye. blogvani ke logo ke liye ye kafi achha hoga.
aapka aabhar.
ravikant ojha, indore

सचिन श्रीवास्तव said...

ये सहगल और मजाज एक ही शख्स हैं क्या ऐसा ही कुछ मजाज के लिए सुना था.. बिल्कुल यही तडप, उदासी, खुमारी, दर्द...... यही सब... विश्वास नहीं होता... इतना कुछ मिलता है तो एक ही होंगे.. कहीं ऐसा तो नहीं सहगल मजाज नाम से लिखते हों और मजाज सहगल के नाम से गाते हों....
दूर की कौडी है पर सोचने में क्या हर्ज है? वैसे रात में आज बहुत खुमारी है... बेकरारी है बेकरारी है...

truetarot said...

sehgal par itana umda lekh parhwane ke liye ^^Sawant Auntie Ki Betiyan** ke lekhak Geet Chaturvedi ko aabhar. Aapki agli kahani kab parhne ko mil rahi har ?

YOGENDRA AHUJA

Geet Chaturvedi said...

सभी मित्रों का शुक्रिया.
योगेंद्र जी, बहुत अच्‍छा लगा आपको यहां देख. मेरी अगली कहानी तद्भव के नए अंक में है. यह भी लंबी है. शीर्षक है 'साहिब है रंगरेज़'.

sanjay patel said...

गीत भाई
आपका पढ़ा लिख कर तो किसी की शुगर बढ जाए.एक बार आपने नवरंग में गुरूदत्त जी पर भी लिखा था. और हा यह भी बता दूँ दो औरतों पर आपकी एक कविता पुरस्कृत हुई थी जो मैने ५० फ़ोटोकॉपियाँ करवा कर मेरे शहर इन्दौर में बाँटी थी.श्री प्रकाश पुरोहित को भी ये कविता हिन्दी हिन्दुस्तान से लेकर) मैने भेजी थो जो यहाँ के सांध्य दैनिक प्रभात किरण में फ़िर छपी.ख़ैर ये तो हुई दीगर बातें...एक क़िस्सा और याद आया सहगल साहब का. आगरा घराने के आफ़ताबे मूसि़क़ी उस्ताद फ़ैयाज़उद्दीन ख़ाँ साहब के यहाँ गायक जगमोहन गायन सीखने आए हैं.एक दिन एक और शाग़िर्द ख़ाँ साहब के पास आ बैठ है हारमोनिय ले तालीम के लिये.ख़ाँ साहब मशहूर भैरवी बाबुल मोरा सीखा रहे हैं...जगमोहन और दूसरा शाग़िर्द दोनो को दोहराने को कहते हैं उस्ताद जी.फ़िर जगमोहन से पंद्रह दिन तक अकेले इस ठुमरी का रियाज़ करवाते हैं...दूसरा शाग़िर्द सिर्फ़ एक और एक दिन के बाद ग़ायब है...१६वें दिन युवा जगमोहन से रहा नहीं गया है...पूछते हैं उस्ताद जी मैं एक ही ठुमरी बंदिश का रियाज़ कर रहा हूँ और वो जो आया था क्या वह एक दिन में ही सीख गया जो आपने उसे रवाना कर दिया..उस्ताद फ़ैयाज़ ख़ाँ मुस्कुराते हैं और कहते हैं ...हाँ रे भेज दिया उसे ...अरे भेजता भी नहीं तो क्या करता ......जानता है उसका नाम...कुंदनलाल सहगल....(गीत भाई यहीं अपनी बात को विराम देता हूँ..ब़ज़रिये रेडियोवाणी (सालगिरह पोस्ट) आप तक आया...छोटे से शहर के इस छोटी शब्द हैसियत के इंसान का आदाब...आपसे तारूर्फ़ का नेक बहाना बना...ज़हेनसीब...शुक्रिया रेडियोवाणी...जुग जुग जियो.

अमिताभ said...

geet ji shukriya sehgal sahab ke bare me aapne pathko ko keemati jankari di hai !!
sadhuvad

Geet Chaturvedi said...

सभी का बहुत बहुत धन्‍यवाद.
धीरेश, सहगल की आवाज़ का कोई बायोलॉजिकल रीजन मुझे नहीं पता, शायद हो भी.
नंदिनी जी, शुक्रिया. चिट्ठा कितना पढ़ा जा रहा है, यह क्लिक्‍स से नहीं पता चलता. मेरी पिछली पोस्‍ट पर ब्‍लॉगवाणी इस महीने की सबसे ज़्यादा क्लिक बता रहा है अभी तक, लेकिन उस पर एक भी कमेंट नहीं आया था, काफ़ी दिनों तक.तो इसलिए मुझे अभी तक कोई पैमाना नहीं समझ में आया है. बस, मित्रगण पढ़ते रहें, अपनी राय देते रहें.
अनिल जी और रविकांत दोनों का धन्‍यवाद. रवि, जल्‍द ही चार्ली चैपलिन का जन्‍मदिन आ रहा है. मेरी कोशिश होगी कि कुछ दे सकूं.
सचिन, सहगल और मजाज़ की नहीं, सहगल, मजाज़, सचिन और गीत ये चारों एक ही शख़्स हैं. अलग-अलग शरीरों में, अलग-अलग समयों पर इस मर्त्य लोक में आए. कह‍ने में क्‍या हर्ज है.
संजय भाई, आप जैसे लोग ब्‍लॉगवर्ल्ड की शान हैं. आपको एक मेल अलग से लिखी है. अमिताभ भाई आपका भी बहुत शुक्रिया. बहुत दिनों बाद अपने ठिकाने पर आ पाया, इसके लिए माफ़ी चाहता हूं.