ठगी
वह आदमी कल शिद्दत से याद आया
वह आदमी कल शिद्दत से याद आया
जिसकी हर बात पर मैं भरोसा कर लेता था
उसने मुस्कराकर कहा
गंजे सिर पर बाल उग सकते हैं
मैंने उसे प्रयोग करने का ख़र्च नज़र किया
( मैं तब से वैज्ञानिक कि़स्म के लोगों से ख़ाइफ़ हूं)
उसने मुहब्बत के किसी मौक़े पर मुझे एक गिलास पानी पिलाया
और उस श्रम का कि़स्सा सुनाया निस्पृहता से
जो उसने वह कुआं खोदने में किया था
जिसमें सैकड़ों गिलास पसीना बह गया था
एक रात वह मेरे घर पहुंचा
और बीवी की बीमारी, बच्चों की स्कूल फीस
महीनों से एक ही कपड़ा पहनने की मजबूरी
और ज़्यादातर सुम रहने वाली एक लड़की की यादों को रोता रहा
वह साथ लाई शराब के कुछ गिलास छकना चाहता था
और बार-बार पूछता
भाभीजी घर पर तो नहीं हैं न
वह जब-जब मेरे दफ़्तर आता
तब-तब मेरा बॉस मुझे बुलाकर पूछता उसके बारे में
उसके हुलिए में पता नहीं क्या था
कि समझदार कि़स्म के लोग उससे दूर हो जाते थे
और मुझे भी दूरियों के फ़ायदे बताते थे
जो लोग उससे पल भर भी बात करते
उसे शातिर ठग कहते
मुझे वह उस बौड़म से ज़्यादा नहीं लगता
जो मासूमियत को बेवक़ूफ़ी समझता हो
जिसे भान नहीं
मासूमियत इसलिए जि़ंदा है
कि ठगी भूखों न मर जाए
***
***
महज़ रिवायत(जॉर्ज माइकल के गीतों के लिए)
मेरे पैरों में थकान है, थिरकन नहीं
सबसे आसान है स्वांग करना
उसको पकड़ पाना सबसे मुश्किल
कितना बौड़म हूं
यह भी नहीं जानता
आग पर बर्फ़ रखने की कोई क्षमा नहीं
तवे पर छन्न की
छल के बदले क्या मिलता है
आंख चुराना सबसे बड़ी चोरी है
जानने का अवसर सिर्फ़ एक बार आता है
बाक़ी मुलाक़ातें तो महज़ रिवायत हैं
***
अलोना
लिखा जाए
लिखा जाए
इस तरह लिखा जाए
बहुत हो चुका मीठा-मीठा
जो मीठा है उसको नीम लिखा जाए
झूठ एक दर्शन है
किताबों में फिल्मों में कैसेट में सीडी में सिगरेट पान बीड़ी में
चिनाब में दोआब में तांबई शराब में मेरे समय के हिसाब में
जिन दिनों मैं जिया
उसे साफ़-साफ़
बहुत साफ़-साफ़
ख़राब लिखा जाए
चिह्न नहीं बिंब नहीं कोई लघु प्रश्न नहीं
जो कुछ है- चकाचौंध सब कुछ विशाल है
जो कुछ है- चकाचौंध सब कुछ विशाल है
जिसे कहा गया सलोना
उसे रखो जीभ पर
क्या ग़लत होगा उसे
अलोना लिखा जाए
***
(पेंटिंग- सिद्धार्थ)
21 comments:
bahut badhiya geet ji, aankh churana sabse badi chori hai..shandar. bahut sachhi aur bahut gehri baat kahi aapne.
jo tasweer lagai hai vo bhee kavita jitni hi arthpurna hai. jaise ek maa apne bachho ko kisi surakshit jagah par le ja rahi ho, usne ek hath se bachho ko saheja hai to doosre hath se kisi peeche reh gaye..pakade rakhna chahti ho..jaise ye 11 pakshi uske 11 sapne ho..kul milakar ise maoujood 12 jodi aankhe..bahut kuchh keh rahi hai. is par bhee likhiye kuchh..
vrindavani
शुक्रिया वृंदावनी जी.आपने स्वयं ही इस तस्वीर पर अच्छा लिख दिया है. ये सपने देखती स्त्री की ही पेंटिंग है.
बहुत अच्छा जनाब आखिर आप भी हमारे काफिले में आ ही गए।
बहुत अच्छा जनाब आखिर आप भी हमारे काफिले में आ ही गए।
वाह जी। क्या पंक्ति है:
मासूमियत इसलिए जिन्दा है
कि ठगी भूखों न मर जाए
बहुत गजब मार मारी है ये पंक्ति। तीनो कविताएं शानदार है। आप ऐक साथ आट दस कविताएं डालिये तो मजा आए। आपको पढना सूकुन देता है। रात और सुबह के बीच की इस बेला में। बधाई हो। जुग्ग जुग्ग जीयो।
बढ़िया ! अलोना ही लिखा जाये ..फिर शब्द अर्थ बदल लेंगे ..रवायतें ही इस ज़माने की ऐसी रहीं ...
तद्भव में आपकी कहानी शुरु की है ...
बढ़िया हैं कविताएं. अच्छा लगा.
जानने का अवसर सिर्फ़ एक बार आता है
बाक़ी मुलाक़ातें तो महज़ रिवायत हैं
bahut sundar!
picture is also amazing!
बहुत सुन्दर, बधाई.
Geet ji
Many thanks foor visiting the Pak Tea House. Alas I could not read the posts on your blog as I cannot read the hindi script..
But the pictures and your introduction tell me that there is some great stuff here..
thanks again
Raza Rumi
Ed, Pak Tea House)
www.razarumi.com
पेंटिंग और कविता दोनों उम्दा.
पेंटिंग और कविता दोनों उम्दा.
Dear Sir
Very beautiful poems. I had translated some of your poems including "Mother India", into Telugu, last year. Your poems were taken very well here.
I had sent the copies and a letter at your Bhopal's address, but haven't got any reply. Aren't you in Bhopal these days? Luckily, I caught you on Blogvani.
I do remember your poem "Abu Khan Ki Bakri" appeared in Dastavej, some years ago. Unfortunately, I missed the copy of that poem. Would you please post it on your blog or mail me on my email ID.
I would be greatful. Please mail your telephone number, too.
Thanks
AS Ravikumar Reddy
बहुत उम्दा - खासकर अलोना - लाजवाब जनाब !! - मनीष
बड़े दिनों बाद कुछ ईमानदार अनुभूतियों से रू-ब-रू हुआ..बहुत अच्छे!
saral bhasha mein bhi kitni marak baten kahi ja sakti hain.ativtharthvadita se samaj aur samay ki padtal karti ye kavitayen bahut asardar hain. मासूमियत इसलिए जिंदा हैकि ठगी भूखों न मर जाए.aur
चिह्न नहीं बिंब नहीं कोई लघु प्रश्न नहीं
जो कुछ है- चकाचौंध सब कुछ विशाल है
ye panktiyan chaonkati hain aur katu satya se sakshatkar bhi karati hain.
बाक़ी मुलाक़ातें तो महज़ रिवायत हैं ..
मरहबा..
GGShaikh said:
आपकी रिवयातें स्थिर कर दें
ओर गिरफ़्त मैं भी लें...
आपकी अनुभुतियाँ
ओर अभिव्यक्तियाँ
काग़ज़ पर आते-आते ही कविताएं बन जाए...
(मासूमियत कब तक ठगि जाति रहे...
ठगि अगर भूख मिटाने को ठगे तब तक तो ठीक है,पर वे तो ऐश करने के लिए भी ठगे...)
अच्छी कवितायेँ.
आत्मीय शैली में बड़ी अर्थपूर्ण कवितायेँ ! बधाई चतुर्वेदी जी !
बहुत खूब गीत भाई| आप की इन पंक्तियों को पढ़ कर वस्तु और स्थितियों को दूसरे नज़रिये से देखने का भाव प्रबल होता है|
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