Friday, October 24, 2008

साथ-साथ क्‍यों नहीं?

मेरी बातों में छल्‍ले बनते थे और तुम्‍हारे बालों में. जब मैं सिगरेट का धुआं उड़ाता था, तो उससे भी छल्‍ले बनते थे. लोग कहते कि इसकी बातों के छल्‍ले में मत पड़ना, हसंते-हंसते फंसा लेता है. मैं कहता था, दरअसल, बात के छल्‍लों से ज़्यादा घातक तुम्हारे बालों के छल्‍ले हैं. उन्‍हें देखकर ही मेरी बातों में छल्‍ले पड़ा करते हैं.

हम एक पत्‍थर पर बैठे थे. और ओस से गीली घास पर नंगे पैर चलते हुए हमने एक, दूसरे पत्‍थर तक जाने का तय किया.

तुमने कहा- मेरे भीतर भाव हैं, मैं भावों की उंगली पकड़ वहां तुमसे पहले पहुंच जाऊंगी.

मैं हंसा- मुझे भावों पर भरोसा नहीं. विचार हैं मेरे पास. दुनिया की सबसे मोटी किताबें मैंने ही लिखी हैं. मेरे लिए वहां पहले पहुंचना ज़्यादा आसान है.

तुम भाव पर चलीं, मैं विचार पर.

ओस सूख चुकी है, घास भी. न पीछे का वह पत्‍थर नज़र आता है, न आगे वाला पत्‍थर. तुम भी आसपास नहीं दिखतीं. कहां चली गईं तुम? क्‍या तुम उस पत्‍थर तक पहुंच गईं? क्‍या हम दोनों ही उस पत्‍थर तक नहीं पहुंच पाए?

हम एक-दूसरे से पहले क्‍यों पहुंचना चाहते थे, साथ-साथ क्‍यों नहीं? बताओ.

11 comments:

Anonymous said...

सिगरेट के छल्ले, बालों के छल्ले, बातों के छल्ले। वाह!

अविनाश वाचस्पति said...

भाव और विचार का है प्‍यारा साथ

सब रहे अपने सदा सात ही साथ

खुजला रहे सभी पकड़ निज माथा

पढ़ कर समूची भाव विचार गाथा

कंचन सिंह चौहान said...

हम एक-दूसरे से पहले क्‍यों पहुंचना चाहते थे, साथ-साथ क्‍यों नहीं? बताओ.

waaah...! Tadbhav me aap ki kahani padhne ke baad se dhu.ndh rahi thi aap ko ..... Shukra khuda ka ki aaj mile.

रंजना said...

waah ! sundar.

प्रशांत मलिक said...

sayad ham dono ke raste alag alag the.

Anonymous said...

kaash ham dono ne sath chalna seekh liya hota....ab to vah udhar hai pathar ke us paar aur pathar bhi to pahad ban chuka hai....fir bhi pighlana to hoga hi use. sirf garm sanse kaafi nahi iske liye......

Ek ziddi dhun said...

सबसे घातक छल्ले शायद भाषा के होते हैं...

neera said...

वाह! बहूत ही सुंदर शब्दों में बहूत बड़ा सच!

DEEP NIRMOHI said...

vaah sir aisy tarjeeh aaj tk mene kaheen nahi dekhi bhav or vichar ko ek sath rakhna real me apki kahni ki trah he mumkin namumkin ke safar me bhatkna hai..

DEEP NIRMOHI said...

vaah sir aisy tarjeeh to real me he kabil-e-tarif hai...bhav or vichar real me ek sath chal pana mumkin or namumkin ka safar he hai.

Pratibha Katiyar said...

bahut sundar duniya banayi hai aapne geet ji. isse bahar jane ka dil hi nahin karta. jab se iska pata mila hai bar-bar yahin aa dhamkti hoon. har post kamal ki hai..