हर उदासी की शुरुआत तालियों से होती है. सबसे होहराती धुनों में भी उदासी खोज लेता हूं. कितौ धुनें ही खोज लाती हैं और सामने पटक देती हैं. गिरकर छितराई हुई उदासी, जो गिरने के बाद भी चढ़ी रहती है. यानी इसी तरह उदास करता है. उसके यहां जो पियानो बजता है, या ड्रम खड़कता है, तो लोग उत्साह खोजते हैं, मुझे बिना खोजे उदासी मिलती है.
'एक पीली शाम,
पतझर का ज़रा अटका हुआ पत्ता,
शांत,
मेरी भावनाओं में
तुम्हारा मुखकमल...'
ऐसी उदासी पर मैं सबसे उदास कविता नहीं लिख सकता, पढ़ सकता हूं, निरुपमा दत्त का नाम ले यह नहीं कह सकता कि मैं बहुत उदास हूं.
'अब गिरा
अब गिरा वह
अधर में अटका हुआ आंसू
सांध्य तारक-सा
अतल में.'
आंखें बंद कर यानी सुनता हूं. सोचता हूं कि ताली बजाना एक बहुत अपमानजनक/कारक क्रिया है. वाह-वाह करने वाले आखि़र अब तक अपने घर क्यों नहीं चले गए?
20 comments:
उदास धुन?
सुन्दर!
कभी कभी उदासी भी कितनी खूबसूरत होती है ना !
शब्द धूसर उदास हैं , डीटैच्ड भी ,लेकिन संगीत .. उदास उन्माद है ।
4 baar padha ye lekh..
esa bahut kam karta hun mai.
:)
भाई
पाठकों को यह तो बता देते कि काव्यंश किसके हैं....
jis dibbe par hoon, us par sunne ka jugaad nahi hai. ise padh to kai baar liya tha...`soch le.n aur udas ho jaye.n`
इतना उदास नहीं हुआ करते...
बोधिसत्व भाई के आदेशानुसार, सूचित किया जाता है कि काव्यांश शमशेर बहादुर सिंह के यहां से आए हैं.
साथ ही यह भी, कि गद्य में एक पंक्ति रघुवीर सहाय के यहां से आती है, डेढ़ पंक्तियां नेरूदा के यहां से, एक पंक्ति कुमार विकल की कविता से निकलती है और गद्य का पृष्ठ प्रभाव अव्यक्त निजी जीवन व आलम्यूदीना ग्रांदीस के नए उपन्यास 'द विंड फ्रॉम द ईस्ट' के घालमेल से.
संगीत यानी का है, अर्थात वाला यानी नहीं, वाईएएनएनआई वाला यानी.
h=khoob khoobsurat blog hai.maine ab tk itna sundar blog nhi dekha.kaavyansh...udaas nhi lagta,bechain lagta hai.
geet udaas nhi ,bechain jyada lagta hai..khoob khoobsurat blog hai.
उदासी मे और उदासी क्या बात है
यार ये उदासी ढूढने का भी शगल सा होता है ... आप ख़ुद उदासी ढूढ़ रहे है इल्जाम जाने किस किस पर ... दरअसल यह उदासी को सेलेब्रेट सा करना है ...अकेले उदास होने की ज़रुरारत कहाँ हैं जोड़ लीजिये ख़ुद को दुनिया के तमाम सपनो से फ़िर उदास होने की फुर्सत भी नही मिलेगी
Pehli baar aapka blog dekha.Kai rang bhar hain aapne.Badhai.
guptasandhya.blogspot.com
bahut achchha sayonjan hai. udasi ki chamak dooooooooor tak dikhai deti hai.udasi ka GEET jab bajta hai to kano ke bhitar ka mavaad jhar jata hai. mout jab karib aati hai to jivan se haar jati hai.hum jab chhatpatate hai to ka drav hame bhitar se dho dalata hai.
इतना ज्यादा बताने को नहीं कहा था...खैर
ज़्यादा का इरादा कहां था बिग ब्रदर.
;) ;) ;)
bahut achchha blog banaya aapane.
बोधिसत्वजी, आपने गीत से जो आग्रह किया था कि वे लाइनें किस की हैं , पाठकों को बता दी जाएं, तो मैं बता दूं कि वे लाइनें इतनी लोकप्रिय और इतनी बार कोट की जाती रही हैं कि पाठक जानते हैं कि वे काव्यांश किसके हैं। और जब गीत ने अपनी इस प्यारी रचनात्मकता को ईमानदारी से बताने की कोशिश की तो आप खामखां नाराज हो रहे हैं?
इतनी खूबसूरत उदासी !
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