Sunday, September 20, 2009

जब उसका मन भर जाता है


उसका कोई एक नाम नहीं है। वह किसी एक शहर में नहीं रहती। उसका कोई एक देश नहीं है। वह अपने लिए किसी ब्रह्मा की मोहताज नहीं, वह अपना विधान ख़ुद लिखती है। शिव की ज़रूरत भी नहीं, विष्णु की भी नहीं। वह ख़ुद ही पालती है ख़ुद को और अपनी ही तीसरी आंख के सामने खड़ी हो जाती है एक दिन, जब उसका मन भर जाता है... हर ब्रह्मांड में ग्यारह शिव होते हैं, उनमें से सिर्फ़ एक के पास तीसरी आंख होती है, वह जब तक रही, उसी एक को पाने के लिए भटकती रही और अंत में वह एक ख़ुद उसी की नसों के भीतर बने कैलाश में रहता मिला। वह दुर्गा का एक सौ चौथा नाम थी- आत्मरूपविनाशिनी... वह एंटीगोन है, जो हर जन्म में राजा  का हुक्म तोड़ेगी और मारी जाएगी.



- बहुत सुंदर थी वह?

- हां, काफ़ी। इतनी कि देखते ही नीयत मचल जाए।

- उसकी तस्वीरें तो देखी थीं हमने।

- उसकी कविताएं भी पढ़ी होंगी?

- पढ़ी तो हैं, लेकिन हम लोगों को उसकी तस्वीर ज़्यादा अच्छी लगती थी।

- तुम्ही को नहीं, सब ही को। उसके बारे में कोई कहता था कि एक बार उसने एक संपादक के पास अपनी तस्वीर के बिना कविता भेजी, तो वापस आ गई। दूसरी बार उसने अपनी तस्वीर के साथ वही कविताएं भेजीं, तो अगले ही अंक में छप कर आ गईं।

- हां, जादू तो था ही उसकी तस्वीर में। हम सोचा करते थे, यह सचमुच इतनी सुंदर है या फोटोग्राफर का कमाल है या किसी बीते ज़माने के एलबम से कुछ मार लिया गया है...

- नहीं, वह सच में सुंदर थी और उससे लोगों ने यह बात कई बार कही भी थी। उसे पता भी था कि वह सुंदर है। यह भी पता था कि सुंदरता को किस तरह पेश किया जाता है। वह कविताएं लिखती थी, यही ग़लत था। अगर वह कोई किताब लिखती, मसलन ‘सिर्फ़ चेहरा दिखाकर सफल हो जाइए’ या ‘कविताओं को इस तरह बेचिए’, तो उसका ज़्यादा नाम हो सकता था।

- लोग उसके बारे में जो कहते थे, वह सही था?

- कौन-सी बात?

- यही जो तुम अभी बता रहे हो। जैसे उसे पता था, अपनी सुंदरता का इस्तेमाल करना। या कि वह बहुत अच्छी सेल्सगर्ल थी।

- हर लड़की को पता होता है, अपने चेहरे का इस्तेमाल कैसे किया जाए। जब आप किसी भी तरह सफल होने की ठान लेते हैं, तो आपको भी यह हुनर आ जाता है।

- हाथ क्यों काट लिया था उसने?

- पता नहीं।

- कहते हैं, बहुत परेशान थी वह?

- पता नहीं। ख़ुशी-ख़ुशी तो हाथ काटा नहीं होगा!

- तुम भी उससे प्यार करते थे?

- कौन बेवक़ूफ़ उसकी तमन्ना ना करता होगा?

- हां, सफल भी थी।

- पर उसे ऐसा नहीं लगता था।

- क्यों?

- उसे लगता था, वह जितना डिज़र्व करती है, उतना उसे नहीं दिया जा रहा। उसे अभी और पुरस्कार चाहिए थे, वह चाहती थी कि उस पर अभी और लिखा जाए, उसके लिखे को, न कि दिखे को, गंभीरता से लिया जाए।

- जहां तक मुझे मालूम है, उसे पर्याप्त गंभीरता से लिया जाता था।

- नहीं, लोग उसे संदेह से देखते थे।

- वह लड़की थी।

- हां, लड़कियों की सफलता को संदेह से देखा जाता है।

- बिल्कुल, लड़की होना ही संदिग्ध होना है। उसकी लियाक़त को मंज़ूरी नहीं मिलती।

- लोगों को लगता था कि वह सुंदर है, इसीलिए उसे छापा जा रहा है। उसकी चीज़ों को अच्छा बताया जा रहा है।

- वैसे, यह बात पूरी तरह ग़लत भी नहीं थी।

- नहीं, उसमें दम था। उसके शब्द बहुत बलवान थे।

- महाबली शब्द? ख़ैर, उसमें स्त्री होने का इतना सियापा क्यों था?

- क्योंकि वह स्त्री होने के दुख से भरी हुई थी। वह अपने भीतर की स्त्री के मरने से बहुत क्षुब्ध थी। जिस दिन वह मरी थी, उस दिन सिर्फ़ वही नहीं मरी थी।

- हां, उसने अपने बेटी को भी मार दिया था।

- हुम्म। पहले उसने उसके हाथ की नस काटी थी, फिर अपनी।

- कैसी कवि थी! हत्या की उसने।

- अगर वह कवि न भी होती, तो भी वह हत्या ज़रूर करती। अगर वह अभिनेत्री होती, तो भी। अगर वह बंबई में होती, तो भी यही करती। शंघाई में होती, तो भी और चिकागो में भी वह यही करती।

- तुम मिले थे उससे?

- मैं उसके साथ तीन महीने रहा था।

- झकास! तब तो बहुत मज़ा आया होगा।

- नहीं, वह बेड में बहुत ख़राब थी, मेरे चूमते-चूमते सो जाती थी... एक्चुअली, मैं उससे परेशान हो गया था और एक दिन उसे छोड़कर आ गया था। उस दिन उससे मुझसे कहा था, मैं तुमसे तंग आ गई हूं।

- तुम दोनों एक-दूसरे से तंग आ गए थे?

- लगभग। वह चाहती थी, मैं पुरुषों जैसा व्यवहार न करूं, जबकि वह अपना स्त्रियों वाला व्यवहार कभी बदल नहीं पाई। अगर उस समय मैंने उसे छोड़ा नहीं होता, तो शायद वह मेरी हत्या कर देती।

- इतनी हिंसक थी?

- नहीं, वह बहुत निराश थी।

- लेकिन उसे किसी चीज़ की कमी न थी।

- बहुत सारी चीज़ों की। उसे और नाम चाहिए था, उसे ढंग के पैसे चाहिए थे।

- उसका पति तो अच्छा-ख़ासा कमाता था।

- हां, पर वह समझौता नहीं करना चाहती थी।

- बाहर वालों से कर सकती थी, घरवाले से नहीं?

- उसने बाहर वालों से भी समझौता नहीं किया था।

- फिर कैसे इतनी जल्दी स्थापित हो गई थी?

- तुम भी उसे संदेह से देख रहे हो?

- क्यों न देखा जाए? और भी साले कब से लिखे जा रहे हैं, उन्हें तो घंटा नहीं मिला। दुनिया के सारे पुरस्कार उसी को कैसे मिल रहे थे?

- उसमें दम था। उसकी कविताएं कमाल की थीं।

- लेकिन वे तुम्‍हारी कविताओं से बहुत मिलती-जुलती थीं...

- ऐसा बहुत-से लोग कहते हैं।

- लोग तो यह भी कहते हैं कि तुम ही उसके नाम से कविताएं लिखा करते थे।

- नहीं, मैं उतनी अच्छी कविताएं नहीं लिख सकता। मैंने कोशिश की थी, एक-दो बार उसकी कविताओं में सुधार करने की। वैसे, सच में कुछ लाइनें मेरी ही होती थीं...

- फिर?

- वह मुझसे ज़्यादा तेज़ थी। मुझसे पहले चीज़ों को पकड़ लेती थी।

- फिर भी तुमने उसे छोड़ दिया?

- दरअसल, उसी ने मुझे छोड़ा था।

- उसका माथा तिकोना था, सामुद्रिक कहता है, ऐसी लड़कियां सिर्फ़ मित्र हो सकती हैं, एकाध बार के बाद दूर हो जाने वाली... ऐसे भी, वह साथ रहने लायक़ नहीं थी।

- वह कहीं भी रहने लायक़ नहीं थी।

- हां, अगर वह अमेरिका में रहती, तब भी ख़ुदकुशी करती। सिंगापुर में भी और भारत में भी।

- हां, अगर फिल्मों में होती, तो भी। राजनीति में होती, तो भी। और अगर गृहिणी होती, तो भी।

- अच्छा हुआ, मर गई। शायद वह ऐसी ही मौत चाहती थी...

- जि़ंदगी हमें कभी अमर नहीं बनाती, एक अच्‍छी, रहस्‍य से भरी मृत्‍यु हमें अमरता देती है. उसकी बेचैनी थी, शायद ऐसी ही तलाश करने की... वह चाहती थी कि टेलीफ़ोन का रिसीवर टंगा ही रह जाए, जब उसे मौत आए, उस तरफ़ कोई उसकी आखि़री सांस की आवाज़ को बेतहाशा बेबसी में सुने और तड़पे...

- यातना का महासुख?

- नहीं, जीवन का वैंडेटा.

-  इच्‍छा का हायकू?

-  जीवन का महाकाव्‍यात्‍मक विकल्प,  सारे ईश्वरों को चुनौती देता...

देखो खिड़की से झांक कर
बाहर कोहरा छाया हुआ है
यह तुम्हारी आंखों में चुभ जाएगा अभी
और फिर तुम कभी कुछ नहीं देख सकोगे...

पेंटिंग : पोलिश चित्रकार तमारा दे लेम्पिका



संगीत : शोस्‍ताकोविच, सिम्‍फनी नंबर 5





16 comments:

Rangnath Singh said...

good...i liked it

Meenu Khare said...

बहुत बहुत अच्छा लगा पढ़ कर. बधाई.

प्रज्ञा पांडेय said...

एक सुंदर लड़की का असुंदर अंत ! हमेशा शंकाओं और आशंकाओं के भंवर में गुंथे रहना तो उसकी नियति ही होती है ..सच्ची....कहानी ! सुना दी आपने !!

Randhir Singh Suman said...

nice

Randhir Singh Suman said...

देखो खिड़की से झांक कर
बाहर कोहरा छाया हुआ है
यह तुम्हारी आंखों में चुभ जाएगा अभी
और फिर तुम कभी कुछ नहीं देख सकोगे.nice

दिगम्बर नासवा said...

सच को बयान कर दिया ... सीधे शब्दों में ......... बहूत अच्छा लिखा है ......

दिगम्बर नासवा said...

Good liknk ....
सच को बयान कर दिया ... सीधे शब्दों में ......... बहूत अच्छा लिखा है ......

Pratibha Katiyar said...

Aah!

anurag vats said...

वह अपने भीतर की स्त्री के मरने से बहुत क्षुब्ध थी। जिस दिन वह मरी थी, उस दिन सिर्फ़ वही नहीं मरी थी।...

पारुल "पुखराज" said...

डूबती उतराती धुन सी उदास लड़की

RAJESHWAR VASHISTHA said...

प्रिय गीत..........ग़लतफहमी हुई है तुम्हें ........वह कभी नहीं मरती...किसी और दमकते चेहरे के साथ किसी दिन तुम्हें ज़रूर दिखेगी...........पत्रिकाओं के सम्पादक और और छैले ब्लाग प्रतिक्रियाकार उसे अपना खून देकर भी जीवित रख लेंगे ....

सुशीला पुरी said...

ladki hona hi sandigdh hai..........
jiwan ka vikalpaakhir kya hai? .....
ishwar ko chunauti stri hi deti hai ye sach hai ...............

अपूर्व said...

जबर्दस्त.....
हथौड़े से कूट-कूट कर हकीकत भरी है आपने पंक्तियों मे..
कोई भी शक्ल दी जा सकती है उसे..कोई भी नाम..मार्लिन मुनरो, ग्रेटा गार्बो, अमृता शेरगिल..
बहुत बेहतरीन रंग हैं आपकी कलम मे..चमक फ़ीकी न पड़ने दीजियेगा इनकी..बधाई

Ek ziddi dhun said...

ye tukda behad bechaini bhara hai aur koi paksh na dete hue bhi shayad ek ladki ke paksh ko rakhta hai.

ravindra vyas said...

मीना कुमारी से लेकर मर्लिन मुनरो तक की एक ही कहानी।

प्रदीप कांत said...

मीना कुमारी से लेकर मर्लिन मुनरो तक की एक ही कहानी....

और यही दुहराई जाती रहेगी रवीन्द भाई.