जब मैं छोटा था, तो सोचता था, बड़ा होकर किताब बनूंगा। लोगों को चींटियों की तरह मारा जा सकता है, एक लेखक को मारना भी मुश्किल नहीं, लेकिन किताबों को नहीं मारा जा सकता। उन्हें नष्ट करने की कितनी भी कोशिश की जाए, यह संभावना हमेशा रहती है कि दुनिया के किसी निर्जन कोने में, किसी लाइब्रेरी के किसी खाने में, उसकी एक प्रति तब भी बची रह जाए।- अमोस ओज़ (अ टेल ऑफ लव एंड डार्कनेस)
बूढ़े की कहानी-3
पेंसिल उसे परेशान करती है। छीलते-छीलते जब लगता है कि खासी नुकीली हो गई है, ठीक उसी समय जाने क्या हो जाता है कि नोंक टूट जाती है और शार्पनर में अटक जाती है। किसी तरह ठोंक-ठाककर वह नोंक निकालता है और पेंसिल को नए सिरे से छीलना शुरू करता है।
दीवार के सहारे पीठ टिकाकर अधलेटे बसरमल की जांघों पर ड्राइंग बुक है। बूढ़े और कांपते हाथों से वह उस पर पेंसिल बिछा देता है। आड़ा-तिरछा हिलाकर कुछ लकीरें बनाता है।
मंगण मां धीमे कदमों से बाहर आती है। उसके हाथ में पानी से भरा मग्गा है, जो छलक रहा है और दूसरे हाथ में प्लास्टिक का गुड्डा है। मग्गे के पानी में साबुन का झाग है। गुड्डे को पानी में डाल, तल्लीनता से उंगलियों से रगड़-रगड़कर उसे धो रही है।
बसरमल कुर्सी पर बैठी मंगण मां की तस्वीर बनाने लगता है। सबसे पहले कुर्सी की पीठ बनाता है। फिर उस पर टिकी हुई मंगण मां की पीठ। फिर कुर्सी की सीट बनाता है। फिर उससे सटी हुई मंगण मां की सलवार। फिर सलवार से बाहर निकले उसके पैर।
एक आकृति-सी बन गई है। सलवार को देखकर लग रहा है कि यह मंगण मां है। बस, इससे ज़्यादा नहीं बनाना उसे। पता नहीं, कितने साल पहले, उसने मंगण मां से कहा था, ‘यह समझ में आ जाए कि आप क्या सोच रहे हैं और क्या बनाना चाहते हैं, तो उसके बाद नहीं बनाना चाहिए।’
याद नहीं, उस समय मंगण मां ने क्या कहा था।
वह फिर वही बात उससे कहता है। उसका गुड्डा पानी में डूबा हुआ है। उसकी उंगलियां भी वहीं पर है। वह पानी में ही हाथ डाले-डाले उसकी ओर देखती है। इस तरह, जैसे सुन ना पाई हो। वह अपनी बात दुहराता है। मंगण मां का चेहरा फिर वैसा ही है। जैसे चाहती हो, एक बार और कही जाए वही बात, उसी तरह। कुछ पल पहले की तरह, कुछ बरस पहले की तरह।
वह उठकर चली जाती है। भीतर से वाश बेसिन में पानी गिरने की आवाज़ आती है। उसने गुड्डे को अब साफ पानी से धो दिया है।
बसरमल अपनी ड्राइंगबुक के पिछले पन्नों को देखता है। वहां कई पन्नों से मंगण मां नहीं है। उसने बहुत दिनों बाद उसकी देह और आकृति पर पेंसिल फिराई है। वह उस पर आहिस्ता से उंगली फिराता है। याद नहीं, आखिरी बार कब उसने मंगण मां की देह पर उंगलियां फिराई थीं। वह तस्वीर के बगल में सिंधी में लिखता है- 'जालो’। फिर रबर से मिटा देता है। फिर अंग्रेज़ी में लिखता है- 'शी’। फिर उसे भी मिटा देता है। फिर वह अंग्रेज़ी में ही लिखता है- 'मेलन्कली’।
अमरूद की खुशबू पूरे कमरे में फैल जाती है। इतनी बारीक होती है वह खुशबू कि कई बार नाकों की पकड़ में नहीं आती। पर बसरमल उस महक को मीलों दूर से भी पहचान लेता है। वह एक पुराने पन्ने की ओर जाता है। वहां एक पीठ है, और उस पर एक लंबी चोटी लहरा रही है। उसके पीछे एक पन्ने पर किसी बच्चे के पैर हैं और एक फुटबॉल। उसके किनारे लिखा है-
उसका आना तय था बहुत पहले से
वह आज भी इंतज़ार कर रही है
वह उन पैरों के आसपास दो जोड़ी पैर और बनाता है। एक ने पैंट और बूट पहने हैं, दूसरे ने सलवार और चप्पल। फैमिली पूरी हुई।
मंगण मां भीतर से लंबी पाइप लेकर निकली। रबर की पीली पाइप, जो करीब चालीस फुट की होगी। उसने उसका एक सिरा वॉश बेसिन के नल में लगाया है और दूसरा सिरा पकड़कर खींच रही है। वह उसे बाहर लेकर जाएगी। सामने की सड़क धोएगी।
'सड़क को क्यों धोना भई? वैसे ही वहां से पब्लिक निकलती है।’
मंगण मां फिर बसरमल की तरफ उसी तरह देखती है, जैसे सुनी हुई बात को एक बार और सुनने की इच्छा हो। कमर झुकाए धीरे-धीरे बाहर निकल जाती है।
बसरमल ड्राइंग की किताब में और पीछे जाता है। वहां एक खिड़की बनी है। जैसे पूरा पन्ना एक दीवार हो और उस पर एक खिड़की। अधूरी-सी। उसमें एक ही पल्ला है। दूसरा कहीं गिर गया या बनाया नहीं गया। खिड़की पर जाली है, जिस पर बड़े-बड़े फूल बने हैं। वह जाली के बीच बची सफेद जगह पर तिरछी पेंसिल से पतली-पतली लकीरें भरने लगता है। थोड़ी देर बाद एक पन्ने पर जाकर रुक जाता है। वहां किताबों की रैक है, जिसमें किताबें नहीं हैं। वे नीचे फर्श पर बिखरी हुई हैं। उसके किनारे लिखा है,
एक डॉट यानी फुल स्टॉप
तीन बार डॉट डॉट डॉट यानी
चीज़ें अभी खत्म नहीं हुईं
जिंदगी जारी है
किताबों की बगल में वह एक बोरी बनाता है। उसकी बगल में एक और बोरी। फिर एक और। फिर एक कुदाल। फिर कुछ ईंटें। ईंटें, ईंटों जैसी नहीं दिखतीं। वह उन्हें मिटा देता है। फिर वह बोरियों को मिटा देता है। फिर कुदाल को। फिर रैक को। फिर किताबों को। वह सब कुछ मिटा देता है। पूरे पन्ने को फिर से सादा बना देता है।
दराज़ से वह नया इरेज़र निकालता है और पूरी ड्राइंग बुक को सादा करने पर जुट जाता है।
उसे नहीं याद, यह आदत उसमें कब और क्यों आई। वह एक ड्राइंग बुक लेता है, उसमें कुछ समय तक तस्वीरें बनाता है और कुछ समय बाद सबको मिटा देता है। फिर उन्हीं पन्नों पर कुछ और बनाता है। तब तक, जब तक कि वे पन्ने इस लायक बचे रहें।
वह एक पेंसिल बन जाना चाहता है, ताकि इस दुनिया की आकृति में कुछ ज़रूरी रेखाएं जोड़ दे।
वह एक इरेज़र बन जाना चाहता है, ताकि इस दुनिया की आकृति से कुछ फालतू रेखाएं मिटा दे।
या एक खिड़की। या एक गेंद। या एक बच्चा। या एक स्त्री। वह बसरमल बनना छोड़ बाकी कुछ भी बन जाना चाहता है।
बाहर आकर मंगण मां के पास बैठ जाता है। वह पानी के फव्वारा से सड़क धो रही है। उसकी धोई हुई सड़क से फटफट करती एक मोटरसाइकल गुज़रती है। मंगण मां बुदबुदाने लगती है। मेहनत का ज़ाया होना उसे बुरा लगता है।
बसरमल कहता है, 'उसका फोन फिर आया था। वही सारी बातें। पर मैं नहीं बेचना चाहता।’
मंगण मां उसकी तरफ नहीं देखती।
वह उसके हाथ से पानी की पाइप ले लेता है और खुद भी वहीं बैठकर सड़क धोने लगता है।
(कहानी सिमसिम का एक अंश)
12 comments:
गीत जी- कोई उपाय पूरी कहानी पाने का?
जुल्म है अंश देना ...कोई सजा तय होनी चाहिए ....ताकि पूरी कहानी दिया करे लिखने वाला ......
गीत जी दरअसल ब्लोगों में एक भ्रम ये भी है के लम्बी पोस्ट ना लिखो पाठक इतनी तवज्जो नहीं देता .पर सच मानिये कुछ लिखने वालो के पाठक भी उनके माफिक ही होते है डूब के पढने वाले ......सो आप कितना लम्बा लिखिये या बांटिये ...वैसा ही पुरजोर असर रखेगा
शुक्रिया अनुराग जी.
हर सज़ा मंज़ूर है. :-)
गीत जी,
मैं भी बहुत दिन से यही बात कुछ लोगो से कहना चाहता था| कुछ लिखने वालों के पोस्ट की लम्बाई नहीं देखी जाती| ऐसा नहीं कि पोस्ट का एंड पहले देख लिया, अंदाजा लगा लिया कि हाँ दो-तीन मिनट लगेंगे, और फिर पढना शुरू किया| आपको पढने वाले शुरू से ही शुरुआत करते हैं, इसलिए लम्बाई की ओर ध्यान नहीं जाता|
शुक्रिया पूरी कहानी के लिए !!
अगले लेख की प्रतीक्षा mein..
अगले लेख की प्रतीक्षा mein..
गीत जी,
कुछ कहानियां ऐसी होती हैं जिनमे गुंथी सी काव्यात्मकता लगती हैं ,ज्यूँ सर्द -पौष की मखमली घांस पर खिलखिलाती गुनगुनी धुप का खूबसूरत अहसास .....-.कहानी से कविता और ...फिर कहानी के अर्थों के झोकों में कब खत्म हो जाती है ,(कई डॉट्स की प्रतीक्षा लिए)पता ही नहीं चलता!...आपकी कहानी पहली बार पढ़ी एक उपलब्धि की तरह!
वंदना .
एक डॉट यानी फुल स्टॉप
तीन बार डॉट डॉट डॉट यानी
चीज़ें अभी खत्म नहीं हुईं
जिंदगी जारी है
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रोचक है...
काश पूरी कहानी मिल जाए....
... prasanshaneey post !!!
कहानी अंश पढ़ कर लगा जैसे कहीं से ताजा फूलों की खुशबू आई।
बहुत बढ़िया अंश का चयन किया है आपने ।
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