पाकिस्तान के मशहूर शायर ज़ीशान साहिल के इंतक़ाल की ख़बर कल ही मैंने वैतागवाड़ी पर दी थी. ज़ीशान विश्व कविता के अज़ीम शायर थे. ज़ीशान के अंग्रेज़ी में अनूदित संग्रह मेरे पास हैं, लेकिन उर्दू में नहीं. कल सरहद पार के दोस्तों से उनकी कई कविताएं स्कैन करके मंगाईं और उनमें से कुछ का लिप्यंतरण भोपाल के अपने शायर दोस्त जीम अफ़लाक कामिल से करवाया। उर्दू से हिंदी करने पर मूल कविता की रंगत ज़रा-भी नहीं बदली है।
ज़ीशान पोलियो के शिकार थे और काइफोस्कोलियोसिस नामक रोग से पीडि़त थे. इस रोग के कारण कूबड़ निकल आती है. इसीलिए ज़ीशान ने अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा हिस्सा व्हील चेयर पर बिताया। 'ऐरीना' उनका पहला संग्रह था, जो 1985 में आया था. उसकी भूमिका में उन्होंने लिखा था - मैं पेड़ों, हवा, घूमने और सपने देखने से मुहब्बत करता हूं। मुझे फूलों, रंगों और लफ़्ज़ों से प्यार है, लेकिन मुझे पानी और आसमान सबसे ज़्यादा पसंद हैं। मैं ठहराव और अकेलेपन से बहुत घबराता हूं।' क़ुदरत ने ज़ीशान को ठहराव और अकेलापन ही दिया था। उसकी एक कविता है नीचे 'जहाज़'। फ़हमीदा रियाज़ ने जब उस नज़्म को पढ़ा, तो 'डान' में लिखा- 'ज़ीशान की नज़्मों वह ताक़त है, जो बेजान चीज़ों को भी जि़ंदा कर देती है।' उस शायर को पढ़ते हैं, जो अपनी वसीयत में हमारे लिए इन्हीं ताक़तवर शब्दों को छोड़ गया है.
देखते-देखते
सोचते-सोचते
दिन गुज़र जाएगा
देखते-देखते
रात हो जाएगी
शायरी अपने कमरे में
सो जाएगी
जिंदगी अपने रस्ते पे
खो जाएगी.
पहली बार
पहली बार
सितारा बनना
दूसरी बार बिखर जाना
पहली बार
ठहरना दिल में
दूसरी बार गुज़र जाना
पहली बार
उसे ख़त लिखना
दूसरी बार जला देना
पहली बार
मोहब्बत करना
दूसरी बार भुला देना.
जहाज़
हमेशा हैरान कर देने वाली
एक लड़की को लेकर आने वाला जहाज़
उसे अपने अंदर समो के
कितनी ख़ुशी होती है जहाज़ को
वो लफ़्ज़ों में बयान नहीं कर सकता
एयरपोर्ट से बाहर जाकर
शहर में खो जाएगी यह लड़की
सोचता है जहाज़ और बार-बार
आसमान के चक्कर लगाने लगता है
ज़मीन को छूने से पहले
बादलों में छुपने की कोशिश करता है
अगर मैं दोबारा उसके घर के ऊपर से गुज़रा
तो क्या पहचान पाएगी मुझे?
सोचता है जहाज़ और आदमी की तरह दुखी होने लगता है
आंसू नहीं निकल सकते उसके,
अपने परों को आंखों पर नहीं रख सकता
साइंस कहती है
मशीन होता है जहाज़
मोहब्बत नहीं कर सकता
सुनता है जहाज़
और बेक़रार होकर फिर से उड़ जाता है.
यह आसमान है
यह आसमान है और ये मेरे आंसू
मैं आसमान को देखता हूं और नज़्म लिखता हूं
मैं आसमान को देखता हूं और मोहब्बत करता हूं
मैं आसमान को देखता हूं और उदास नहीं होता
आसमान मेरे आंसुओं को हवा से ख़ुश्क नहीं करता
आसमान मेरे आंसुओं को छोटे-छोटे बादल नहीं बनाता
आसमान मेरे आंसू सितारों तक नहीं ले जाता
मैं अपने आंसुओं से नरगिस के फूल बनाऊंगा
मैं अपने आंसुओं से एक सीढ़ी बनाऊंगा
मैं हमेशा के लिए आसमान को अपने एक आंसू में बंद कर लूंगा.
आप क्या करते हैं?
आप क्या करते हैं?
मैं दरख़्त लगाता हूं
हर रात एक नया दरख़्त
सुबह होने तक आसमान से जा लगता है
मेरा दरख़्त
अब तक तो जंगल बन गया होगा?
हां कई जंगल
सबके सब आसमान से मिले हुए
लेकिन किसी में धूप नहीं होती
और जानवर? और परिंदे?
वो क्या करते हैं?
सब हैं, बैठे रहते हैं
एक ही दरख़्त के नीचे
जो मैंने सबसे पहले लगाया था
और आप कहां रहते हैं?
मैं उसी दरख़्त के अंदर.
काली चिडिय़ा
पिंजरा ख़ाली था
और तुम्हारी खिड़की में रखा हुआ गुलदान
फूलों से भर चुका था
किताबों की दुकान में
नज़्मों की नई किताब आ चुकी थी
और स्टेशन पर ट्रेन
कहीं जाने के लिए तैयार खड़ी थी
पिंजरा ख़ाली था
और काली चिडि़या
ट्रेन के आगे-आगे उड़ रही थी
एक सुरंग से आगे निकलते ही
इंजन ने चीख़ मारी
मैंने खिड़की से बाहर देखा
ख़्वाब मेरी आंखों में घर बना चुके थे
ख़्वाब मेरी आंखों में घर बना चुके थे
और पिंजरा ख़ाली था।
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12 comments:
गीत जी हमें अपनी प्रेरणा बताकर आपने हम छोटों को बड़ा कर दिया। सचमुच जीशान भाई के बारे में पढ़कर काफी भावुक हो गया, आपतो जानतें हैं ये मेरा स्वभाव है। आपने उनकी यादों को ताज़ा रखने का जो इंतजाम कर दिया है, वो ताउम्र यादगार रहेगा। आपने हमेशा अच्छा लिखा और सच्चा कहा है। बेसब्री से जीशान के खास पेज का इंतजार कर रहा हूं। कब आएगा।
जगदीप यार, शुक्रिया. रविवार को. रसरंग में. पेज दो पर.
'सुबह होने तक आसमान से जा लगता है
मेरा दरख़्त '
-जीवन में होते परिवर्तन को गहराई से महसूस किया है!
बहुत सुंदर लिखा है--
धन्यवाद उनकी शायरी से मुलाक़ात करवाने का.
बेहद शुक्रिया .. जीशान साहब की नज्में पढ़वाने का .. आपको ब्लाग पर देख अच्छा लगा बहुत दिनों से आपसे बात करता चाहता था नम्बर तो नहीं मिला पर ब्लाग पर आप मिल गये...
'जहाज़' और एकाध और कविताएं मैं पहले पढ़ चुका था और फ़हमीदा रियाज़ वक्तव्य भी. आपने कुछ नई कविताएं उपलब्ध करा दीं.
ज़ीशान साहिल का अचानक चुपचाप चले जाना अखर रहा है लेकिन जिस तरह का काम यह अजीमुश्शान शायर अपने पीछे छोड़ गया है, उस से एक बड़ी उम्मीद भी बंधी रहती है अपने उपमहाद्वीप के लिए.
इन कविताओं और इस पोस्ट के लिए आपका धन्यवाद.
बड़ी ही उम्दा सहेजने योग्य पोस्ट है. ज़ीशान साहिल साहब को पढ़कर आनन्द आ गया, कितनी गहरी रचनाऐं हैं. आभार.
गीत भाई;
रविवारीय दोपहर में ज़ीशान बज़रिये आपके ब्लॉग के मेरे पीसी पर नमूदार हैं...क्या नज़्में हैं...कहीं फ़ैज़...कहीं...अली सरदार जाफ़री...कहीं फ़िराक़ तो कहीं कैफ़ी के क़लम के तमाम उजले रंग उभर आए हैं ज़हन में.कुछ काव्यप्रेमी मित्रों को भी इस प्रविष्टि का लिंक भेज रहा हूँ....ऐसे शब्द तो संक्रामक होने हीं चाहिये.
बेहतरीन रचनाएं। हिंदी में उपलब्ध कराने के लिए आपने व्यक्तिगत तौर पर जो पहल की वह काबिल-ए-तारीफ है। बहुत-बहुत धन्यवाद।
सोचते-सोचते
दिन गुज़र जाएगा
देखते-देखते
रात हो जाएगी
शायरी अपने कमरे में
सो जाएगी
जिंदगी अपने रस्ते पे
खो जाएगी.
bahut khoob....behtreen rachnayen ..aabhar
दुख ही जीवन की कथा रही.जहाज और पेड़ों में जीवन देखने वाले शायर को अकेलेपन की व्यथा झेलनी पड़ी और बैठे बैठे लंबा समय काटना पडा यह पढकर मन व्याकुल हो गया उनकी शायरी में बहुत कोमलता है ऐसे लोगों के लिए तो आसमान ही बच जाता है बात करने के लिए.
ज़ीशान से मिलकर खुशी हुई... हमने तो उन्हें अभी-अभी जाना, गीत जी आपके द्वारा ...
नज़्मों में भी भरा पूरा जीवन आ बसे, यह ज़ीशान की कुछ ही नज़्मों को पढ़कर फील किया.
फिर अगर प्रस्तावना गीत जी की हो तब तो पहुँचे ही पहुँचे रचनाकार तक...उसकी आत्मा तक...
और यहाँ खिंच आए महकता खुशगवार अदबी माहौल...
साहित्य-अदब गर जीवन में बसे, जीवन से वाबस्ता हो..और हाथ में हो कलम ...
फिर तो ज़िंदगी के भीने-भीने लमहों को, जीवन के सुखों-दुखों को लफ्ज़ों में पिरोकर जीवन को
उसी के अपने अक्स में काग़ज़ पर उकेरा जा सके... साथ ही बेहतरीन जिया भी जा सके,
जैसे जिए ज़ीशान ...यहाँ वे पंगू न थे.
मैं पेड़ों, हवा, घूमने और सपने देखने से मुहब्बत करता हूं। मुझे फूलों, रंगों और लफ़्ज़ों से प्यार है, लेकिन मुझे पानी और आसमान सबसे ज़्यादा पसंद हैं। मैं ठहराव और अकेलेपन से बहुत घबराता हूं।
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