यौवन की ऋतु में जो भी मरता है,
वह या तो फूल बन जाता है या तारा।
यौवन की ऋतु में आशिक़ मरता है
या फिर करमों वाला।
हमारे यहां बहुत उम्दा कवि हुए हैं, लेकिन ऐसे कम ही हैं, जिन्हें लोगों का इतना प्यार मिला हो। हिंदी में बच्चन को मिला, उर्दू में ग़ालिब और फ़ैज़ को. अंग्रेज़ी में कीट्स को. स्पैनिश में नेरूदा को. पंजाबी में इतना ही प्यार शिव को मिला. शिव कुमार बटालवी. शिव हिंदी में कितना आया, यह अंदाज़ नहीं है. पंजाब आने से पहले मैंने सिर्फ़ शिव का नाम पढ़ा था. इतना जानता था कि कोई मंचलूटू गीतकार था. पर शिव सिर्फ़ मंच नहीं लूटता. उसकी साहित्यिक महत्ता भी है. उसे पढ़ने, सुनने के बाद यह महसूस होता है. वह अकेला कवि है, जिसकी कविता मैंने अतिबौद्धिक अभिजात अफ़सरों के मुंह से भी सुनी है और साइकिल रिक्शा खींचने वाले मज़दूर के मुंह से भी. ऐसी करिश्माई बातें हम नेरूदा के बारे में पढ़ते हैं. पंजाब में वैसा शिव है.
1973 में जब शिव की मौत हुई, तो उसकी उम्र महज़ 36 साल थी। उसने सक्रियता से सिर्फ़ दस साल कविताएं लिखीं. इन्हीं बरसों में उसकी कविता हर ज़बान तक पहुंच गई. 28 की उम्र में तो उसे साहित्य अकादमी मिल गया था. प्रेम और विरह उसकी कविता के मूल स्वर हैं. वह कविता में क्रांति नहीं करता. मनुष्य की आदत, स्वभाव, प्रेम, विरह और उसकी बुनियादी मनुष्यता की बात करता है. वह लोककथाओं से अपनी बात उठाता है और लोक को भी कठघरे में खड़ा करता है. जिस दौर में लगभग सारी भारतीय भाषाओं में कविता नक्सलबाड़ी आंदोलन से प्रभावित थी, शिव बिना किसी वाद में प्रवेश किए एक मेहनतकश आदमी की संवेदनाओं और भावनात्मक विश्वासों की बात कर रहा था. इसीलिए पंजाबी कविता के प्रगतिशील तबक़े ने शिव को सिरे से ख़ारिज कर दिया. हालांकि उसकी कविता इतनी ताक़तवर है कि अब तक लोकगीतों की तरह सुनी-गाई जाती है. कहते हैं, एक बार पाश ने शिव का गला पकड़ लिया था, किसी मंच पर. पाश को शिव की कविता पसंद नहीं थी. ख़ैर.
शिव की बरसी पिछले सप्ताह ही बीती है। यहां शिव की एक कविता प्रस्तुत है, जो पंजाबी में ही है. शिव बहुत सुंदर था. नाम था. कविताओं की गूंज थी. कहते हैं, एक वरिष्ठ साहित्यकार की बेटी उस पर फिदा हो गई. नाराज़ होकर बाप ने लड़की को लंदन भेज दिया. तो उस 'खो गई लड़की' के लिए शिव ने यह कविता लिखी थी, जिसका असली शीर्षक है इश्तेहार. सरल-सी यह कविता सरल-सी पंजाबी में है.
इक कुड़ी जिहदा नाम मोहब्बत
गुम है गुम है गुम है
साद मुरादी सोहणी फब्बत
गुम है गुम है गुम है
सूरत उसदी परियां वरगी
सीरत दी ओह मरियम लगदी
हसदी है तां फुल्ल झड़दे ने
तुरदी है तां ग़ज़ल है लगदी
लम्म सलम्मी सरूं क़द दी
उम्र अजे है मर के अग्ग दी
पर नैणां दी गल्ल समझदी
गुमियां जन्म जन्म हन ओए
पर लगदै ज्यों कल दी गल्ल है
इयों लगदै ज्यों अज्ज दी गल्ल है
इयों लगदै ज्यों हुण दी गल्ल है
हुणे ता मेरे कोल खड़ी सी
हुणे ता मेरे कोल नहीं है
इह की छल है इह केही भटकण
सोच मेरी हैरान बड़ी है
नज़र मेरी हर ओंदे जांदे
चेहरे दा रंग फोल रही है
ओस कुड़ी नूं टोल रही है
सांझ ढले बाज़ारां दे जद
मोड़ां ते ख़ुशबू उगदी है
वेहल थकावट बेचैनी जद
चौराहियां ते आ जुड़दी है
रौले लिप्पी तनहाई विच
ओस कुड़ी दी थुड़ खांदी है
ओस कुड़ी दी थुड़ दिसदी है
हर छिन मैंनू इयें लगदा है
हर दिन मैंनू इयों लगदा है
ओस कुड़ी नूं मेरी सौंह है
ओस कुड़ी नूं आपणी सौंह है
ओस कुड़ी नूं सब दी सौंह है
ओस कुड़ी नूं रब्ब दी सौंह है
जे किते पढ़दी सुणदी होवे
जिउंदी जां उह मर रही होवे
इक वारी आ के मिल जावे
वफ़ा मेरी नूं दाग़ न लावे
नई तां मैथों जिया न जांदा
गीत कोई लिखिया न जांदा
इक कुड़ी जिहदा नाम मोहब्बत
गुम है गुम है गुम है
साद मुरादी सोहणी फब्बत
गुम है गुम है गुम है।
- यही गीत ख़ुद शिव की आवाज़ में यहां से सुनिए.
- शिव का इंटरव्यू हिंदी में यहां सुनिए.
- नुसरत की आवाज़ में एक गीत यहां .
18 comments:
गीत जी,
शिव कुमार जी का ये गीत पहली बार पढा और सारे लिन्क सुने..
बहुत आभार ...नहीँ तो बहोत अफसोस रह जाता ! अगर ना सुनते तो !
-- लावण्या
अरे गीत जी सोनू का ये गीत हर किसी को अपना सा लगता है। आप को बता कर मैं पूरी पोस्ट को हूबहू अपने ब्लाग पर डाल रहा हूं, आप ने जिन कवियों के बराबर उन का कद बताया है वह बिल्कुल वाजिब है, शिव के इंगलैंड दौरे के दौरान टीएस एलिएट ने उन्हें सुन कर कहा था कि ऐसी आवाज और कविता मैंने अपनी जिंदगी में कभी नहीं सुनी। वो गदगद थे शिव से मिलकर।
ये लोग कहाँ चले गए! हो सकता है ये हमारे आस-पास ही हों एकदम साधारण कवियों की तरह और हम इन्हें ढूँढते हैं बयाबानों में.
.. वे कवि जो एक-एक शब्द में अपनी रूह उड़ेल कर रख देते हैं.
गीत भाई
आपका आभार करने को शब्द नहीं मिल रहे. शिव जी के बारे में जानना, अल्प आयु में देहवसान और उस पर भी इतना बड़ा नाम-कविता पढ़ी पंजाबी का अल्प ज्ञान होते हुए भी, सुने सारे लिंक और नत मस्तक हो गया.
बहुत बहुत आभार.
समीर लाल
गीत है, नदी की तरह बहता हुआ, आम लोगों के सपनों में नाचती परियों सा।
Nice Post !
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गीत भाई,
हमारे यँहा भी मोह्ब्बत की खूशबू फैल रही है
आपका आभार।
बहुत दिनों बाद यह गाना सुना बहुत अच्छा लगा शुक्रिया
गीत जी, शिव के गीत को पढ़ सुन कर तो कई ब्लॉग शिवमय हो गए हैं।
पंजाब में आकर पूरे पंजाबी हो रहे हैं धीरे धीरे
शुक्रिया, लगे हाथ पंजाबी भी सीख डालिए।
शिव का यह गीत रब्बी शेरगिल ने भी बेहद खूबसूरत अंदाज में गाया है। इतने खूबसरूत कवि से परिचय कराने के लिए धन्यवाद। प्रसंग जानने के बाद गीत और दमदार बन गया।
पाश की नजर में शिव मृत्यु-पूजक थे। मुझे यह सरलीकरण लगता है क्योंकि इस हिसाब से संसार के ज्यादातर रोमांटिक कवि मृत्यु-पूजक नजर आएंगे। शिव के बरक्स पाश की कविता को जिंदगी के गीत गाती हुई कहा जाता है, लेकिन मृत्यु उनके यहां भी लगभग शिव जितनी ही रूमानी शक्ल में मौजूद है। मेरे लिए शिव की कविताएं आज भी जगजीत द्वारा गाए 'शिवकुमार बटालवी-बिरहा दा सुल्तान' कैसेट के बारह-तेरह गीतों तक ही सीमित हैं, हालांकि उन्हें ऐडमायर करने के लिए इतना भी कम नहीं है।
bahut badhiya sir..
panjabi nahi aate huye bhi samajh me aa gai..
bahut badhiya laga padh sun kar..
aapke blog par to shuru se hi aata raha hun, magar buddhijiviyon jaisa post padhkar achchha to lagta tha magar koi comment karne me sakuchaata tha.. aaj ke post me aam aadmi ki abhivyakti jhalak rahi hai.. :)
गीत जी, मैंने जब तक शिव को नहीं पढ़ा था तो सोच भी नहीं सकता था कि कविता ऐसी भी हो सकती है। 'इश्तिहार' पहली कविता थी, जिसे मैंने रब्बी शेरगिल की आवाज़ में सुना और फिर शिव का ऐसा फैन बना कि जाने कहाँ कहाँ से ढूंढ़कर क्या क्या पढ़ डाला।
वे आपको देर तक रुला सकते हैं। शिव की बराबरी का हिन्दी में भी कोई कवि नहीं है।
उन्हें पढ़ना जीवन धन्य होने जैसा ही है।
गीत जी, मैंने जब तक शिव को नहीं पढ़ा था तो सोच भी नहीं सकता था कि कविता ऐसी भी हो सकती है। 'इश्तिहार' पहली कविता थी, जिसे मैंने रब्बी शेरगिल की आवाज़ में सुना और फिर शिव का ऐसा फैन बना कि जाने कहाँ कहाँ से ढूंढ़कर क्या क्या पढ़ डाला।
वे आपको देर तक रुला सकते हैं। शिव की बराबरी का हिन्दी में भी कोई कवि नहीं है।
उन्हें पढ़ना जीवन धन्य होने जैसा ही है।
शुक्रिया इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए !
समय से हम ज़रा-सा हटते हैं तो वह नरम दिखायी देता है. जैसा कि कुछ टिप्पणियों में दिखाई दिया.
गीत भाई, धन्यवाद! शिव के गीत बचपन से सुनता आया हूं--महेंद्र कपूर और जगजीत जी की आवाज़ में । यह गीत अगर सिर्फ़ प्रेम के बारे ही होता और किसी व्यक्ति के लिए नहीं, तब भी इतना ही दमदार रहता । ’हुण तां मेरे कोल खड़ी सी /हुण तां मेरे कोल नहीं है’ । कितना सच, कितना सुंदर!
शिव का एक और गीत मुझे इससे भी ज़्यादा पसंद है ।
’माए नी माए
मेरे गीतां दिया नैंना विच
विरहा दी रड़क पवे’
इतने सहज बिंब शिव के ही पास थे। कभी मौका लगे तो जगजीत जी की आवाज़ में सुनियेगा।
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