कितनी ही पीड़ाएं हैं
जिनके लिए कोई ध्वनि नहीं
ऐसी भी होती है स्थिरता
जो हूबहू किसी दृश्य में बंधती नहीं
ओस से निकलती है सुबह
मन को गीला करने की जि़म्मेदारी उस पर है
शाम झांकती है बारिश से
बचे-खुचे को भिगो जाती है
धूप धीरे-धीरे जमा होती है
क़मीज़ और पीठ के बीच की जगह में
रह-रहकर झुलसाती है
माथा चूमना
किसी की आत्मा चूमने जैसा है
कौन देख पाता है
आत्मा के गालों को सुर्ख़ होते
दुख के लिए हमेशा तर्क तलाशना
एक ख़राब कि़स्म की कठोरता है
28 comments:
सही ..किँतु,
हँसी गुलाबी धूप की मानिँद
तो कभी माँ की थपकी की तरह
आके यूँही..बहला भी जाती है .
और, जीना सीखा जाती है ..
खुश रहिये ..सदा !
माथा चूमना
किसी की आत्मा चूमने जैसा है
कौन देख पाता है
आत्मा के गालों को सुर्ख़ होते
-बहुत उम्दा रचना के लिये बधाई.
अद्भुत। हमेशा की तरह।
अच्छी और सच्ची कविता है.
शब्दों को बहुत सुन्दरता से पिरोकर ये माला बनाई आपने.
आभार.
मेरी सुबह की सुखद शुरूआत हुई आपकी पंक्तियों को पढ़कर .
उन पीड़ाओं की जिनकी ध्वनि नहीं .. सही !
Superb!!!
What a poem!
I would like to translate it into Telugu.
AS Ravikumar Reddy
माथा चूमना
किसी की आत्मा चूमने जैसा है
कौन देख पाता है
आत्मा के गालों को सुर्ख़ होते
bahut hi khuubsurat kavita...badhayee
प्यारी कविता है बंधु
बहुत प्यारी
दुख के लिए हमेशा तर्क तलाशना
एक ख़राब कि़स्म की कठोरता है
वाह...वा..जितने सुंदर शब्द उतने ही सुंदर भाव...ऐसी शानदार रचना देने के लिए बहुत बहुत बधाई.
नीरज
उफ!
माथा चूमना
किसी की आत्मा चूमने जैसा है
कौन देख पाता है
आत्मा के गालों को सुर्ख़ होते
behtareen...shabd nahi is rachna ke liye.
आज पढी यह कविता. बहुत सुन्दर.
कलेजा चीरकर रख दिया महाराज आपने ...मैने इन्ही विचारों पर एक कविता लिखकर पोस्ट करने की तैयारी की थी ..टेंशन में फाड दिया ....
प्रिय भाई बधाई सचमुच माथा चूमना आत्मा को चुमने जैसा है। भाव का पूरा आस्वाद है। बधाई।
आख़िरी दो पंक्तियाँ तो
जीवन-सूत्र की तरह हैं.
बड़े हृदय में ही दुःख रह सकता है
और बड़प्पन बेशर्त होता है.
कठोरता,क्षुद्रता की निशानी है !
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आपने बड़े दिल से लिखी है
बड़े दिल की ये कविता.
शुभकामनाएँ
डा.चंद्रकुमार जैन
शीर्षक पंक्ति बहुत गहरी है. बढ़िया..बढ़िया...
गीत जी एक बार फिर छा गए आप
aapka naam sahi hi rakha gayaa hai...GEET. aapke father bhi poet hai'n....umm..nahi...THE'y! kuch adhoori ichchhaye'n, kuch adhoore khwab...pure hone me kayee janm lag jaate hai'n....kuch agle' janm me poore hote hai'n.....aur agla janm hamesha punarjanm nahi hota.....agli peedhee bhi ek kism ka PUNARJANM hai...tumhe adhoora geet pura karna hai....
दुख के लिए हमेशा तर्क तलाशना
एक ख़राब कि़स्म की कठोरता है
किन्तु सभी यही करते हैं। इस कटु सत्य को कविता में सटीक तरीके से रखने के लिये बधाई।
प्रदीप कान्त
दुख के लिए हमेशा तर्क तलाशना
एक ख़राब कि़स्म की कठोरता है
किन्तु सभी यही करते हैं। इस कटु सत्य को कविता में सटीक तरीके से रखने के लिये बधाई।
-प्रदीप कान्त
अरे भाई जान! पहले क्या कम कहर ढाया है साहेब हैं रंगरेज पढ़वाकर। जो दोबारा फिर कहर ढा दिया। कसम से हिलाकर रख दिया आपने।
माथा चूमना
किसी की आत्मा चूमने जैसा है
कौन देख पाता है
आत्मा के गालों को सुर्ख़ होते
दुख के लिए हमेशा तर्क तलाशना
एक ख़राब कि़स्म की कठोरता है
सच में जब कोई आपका माथा चूमता है, तो आत्मा में एक सिरहन सी दौड़ जाती है।
और सच कहा आपने हमेशा दुखों के तर्क नहीं तलाशने चाहिए।
मज़ा आ गया पढ़कर।
बधाई हो आपको
yh kavita bahut pasand aai...kun ke naam pr aage jo bhi kahnga khraab kism ki tipanni bn jayegi...sirf itna khunga ek kalatmk dipti jo mujhe idhar ki kavita men dhoondhe nahin mil rahi thi, anayaas mil gai...aapki kavita ke prati aaswasti badh gai hai...apekshon ka bojh aapko wahan krna hai...shbhkamnayen...
bahut shaandaar! khoobsurat kavita hai. Geetji, kavita to aapki pahle bhi padata raha hun. tadbhav me adbhut kahani 'sahib hai rangrez..'bhi padhi. D D Ahbd ke ek prgm me is par lambi baat kar chuka hun, kai dino se duba hua hun. us par ye kavita...WAH..WAH.
maatha chumna kisi ki aatma chumne jaisa hai,khayaal mehasoos kiya ja sakta hai. yahi kehane waale ki safalta hai.shukriya is khayaal ke liye.
ओस से निकलती है सुबह
मन को गीला करने की जि़म्मेदारी उस पर है
शाम झांकती है बारिश से
बचे-खुचे को भिगो जाती है
SHAYAD JEEVAN KA YAHI FALSAFA HAI...?
पहली बार आना हुआ लेकिन बहुत अच्छा हुआ... एक से बढ़ कर एक रचना... लेखनी में गज़ब का आकर्षण....
"माथा चूमना
किसी की आत्मा चूमने जैसा है
कौन देख पाता है
आत्मा के गालों को सुर्ख़ होते -- "
बेहद खूबसूरत भाव...
bas ek hi shabd shandar
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