जो नहीं समझ सका
तुम्हारी चुप्पी
वह क्या समझेगा तुम्हारे बोल?
कितना बुरा था यह सुनना
मैं तुमसे प्यार करता हूं
हंड्रेड परसेंट
और सच है ये सच
हंड्रेड परसेंट
नहीं, कहन का तरीक़ा नहीं था यह
माप लेने की नपी-तुली साजि़श थी
दिल साफ़ रहा बरहमेश ज़िंदगी गंदी
दिल साफ़ रहा बरहमेश ज़िंदगी गंदी
अब कम से कम
आसमान से गिरती हर शै को गाली मत दो
पुरानी किताबों में पढ़ा है मैंने
बौराई बारिश की तरह
कभी-कभार पंखुरियां भी बरसती थीं
***
***
(काग़ज़ पर गिरकर फैल गए, किसी झोंक या झक के आज वाले रंग के बीच आईं कुछ बेतरतीब पंक्तियां.)
और एनिग्मा का सेडनेस.
5 comments:
भई, सच सच समझ नहीं आई। :(
जो नहीं समझ सका
तुम्हारी चुप्पी
वह क्या समझेगा तुम्हारे बोल?...yh to hai...
bol to shor kartey hain/aksar chuupiyan hi samjh aati hain/
bahut acchey...
जो नहीं समझ सका
तुम्हारी चुप्पी
वह क्या समझेगा तुम्हारे बोल?
अच्छी लगी ये पंक्तियॉं। संगीत भी।
बढ़िया पंक्तियां ... ऊपर से एनिग्मा!
हुण की दस्सां!
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