Monday, August 11, 2008
भाषा के मानचित्र में एक निर्वासित कवि का देश.
महमूद दरवेश समकालीन अरबी दुनिया के सबसे बड़े कवि थे. एक ऐसे देश के कवि, जिसका अस्तित्व सिर्फ़ शब्दों और भाषा में है. हज़ारों लेखों, भाषणों में उन्हें फ़लीस्तीन की दिलो-जु़बां कहा गया. वह अपने देश की लड़ाई लड़ते रहे, अपनी ज़मीन को अपना कह सकने की लड़ाई. कुछ उनके साथ रहे, कुछ उनके खि़लाफ़. संबंधों का विकेंद्रीकरण ऐसे ही होता है. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, जीते-जी अपने लिए एक राष्ट्र नहीं पा सका मैं, सिर्फ़ इसका सुकून है कि मैंने अपनी भाषा में अपने लिए एक राष्ट्र बनाया, अपनी मातृभूमि के सीवान उसी भाषा में पहचाने. कई बरस जेल में गुजारने के बाद उन्हें निर्वासित होना पड़ा. और वह इतना लंबा चला, कि एक कविता में उन्होंने लिखा- अब निर्वासन की लत लग गई है. वह मूलत: लिरिकल कवि थे. प्रेम और विद्रोह के गीत गाते. उनकी कई कविताएं, मसलन रीता और राइफल, मैं जहां से आया, मेरे शब्द आदि अरबी दुनिया में बाक़ायदा गाए और गुनगुनाए जाते हैं. लोकप्रियता इतनी कि उनकी कविता या भाषण सुनने के लिए अस्सी हज़ार की भीड़ इकट्ठी हो जाए. मेरे पास एक वीडियो था, जिसमें वह नेरूदा पर बोल रहे हैं, उनकी कविताओं को अरबी अनुवाद सुना रहे हैं और एक लाख के क़रीब भीड़ हर चौथी लाइन पर तालियों के शोर में तब्दील हो रही है.
उनकी कविताएं बाग़ी तेवर की हैं, लेकिन 90 के बाद की कविताएं मिस्टिक या रहस्यवादी प्रवृत्ति की हैं. निर्वासन के दिनों में उन्होंने अंग्रेज़ी और फ्रेंच सीखी और इनसे जुड़े मिथक उनकी कविता में तेज़ी से आए. आलोचकों ने उन पर भटकने का आरोप लगाया, पर उनकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई. उनका कहना था, मैं ख़ुद की आलोचना करता हूं और हमेशा ख़ुद को एक सीढ़ी ऊपर उठाना चाहता हूं. लेकिन इसका मतलब यह क़तई नहीं कि मैंने पहले जो कविताएं लिखीं, उनके लिए मुझमें कोई अफ़सोस या क्षमायाचना का भाव हो. वह स्वर मेरी कविता की टेक है, जो नई कविताओं में भी बरक़रार है. अच्छा कवि वही होता है, जो बहुत ज़्यादा पढ़े और समय-समय पर दूसरों से प्रभावित भी हो.
कल उनके निधन पर कबाड़ख़ाना में कुछ कविताएं लगाई गई थीं. आज यहां प्रस्तुत है एक कविता और डायरी से एक पीस. कविता उनकी शब्दयात्रा का आख्यान है और जबकि डायरी ख़ूबसूरत गद्य का नमूना. उस पीस में आया मच्छर क्या है, वे लोग भली-भांति समझ जाएंगे, जिन्होंने सत्ता के असली रूपों को बहुत क़रीब से देखा हो. आप अपना ब्लडग्रुप बदलवा लें, सत्ता आपको नहीं काटेगी. यह पीस अनुवाद करते समय मुझे मायकोवस्की की वह कविता बार-बार याद आई (जो उन्होंने आखि़री दिनों में सोवियत व्यवस्था में फैली और निर्णायक रूप से घातक साबित हुई भ्रष्ट अफ़सरशाही पर लिखी थी), '... शार्क मछलियों को मैंने छका दिया, फलां-फलां ख़तरनाक जानवरों से मैं बच निकला, पर जिन्होंने मुझे मारा, वे खटमल थे.'
मेरे शब्द
जब मिट्टी थे मेरे शब्द
मेरी दोस्ती थी गेहूं की बालियों से
जब क्रोध थे मेरे शब्द
ज़ंजीरों से दोस्ती थी मेरी
जब पत्थर थे मेरे शब्द
मैं लहरों का दोस्त हुआ
जब विद्रोही हुए मेरे शब्द
भूचालों से दोस्ती हुई मेरी
जब कड़वे सेब बने मेरे शब्द
मैं आशावादियों का दोस्त हुआ
पर जब शहद बन गए मेरे शब्द
मक्खियों ने मेरे होंठ घेर लिए.
मच्छर और आपका ब्लडग्रुप
मच्छर, मेरी भाषा में हमेशा स्त्रीलिंगी है और गॉसिप से ज़्यादा जानलेवा है. वह न केवल आपका ख़ून चूसती है, बल्कि एबसर्डिटी के खि़लाफ़ आपको एक लड़ाई में झोंक देती है. और बुख़ार की तरह हमेशा अंधेरे में आती है. किसी जंगी जहाज़ की तरह वह झिन-झिन, घुं-घुं करती है, जिसे आप निशाने पर उसके हमले के बाद सुन पाते हैं. निशाना आपका ख़ून है. आप उसे खोजने के लिए बत्ती जला देते हैं और वह आपकी हैरानी की सबसे ऊंची अटारी पर जाकर खो जाती है. वहां किसी दीवार पर बैठ वह सुस्ता रही होती है, सुरक्षित, शांतिपूर्ण, स्वीकार्य. आप उसे अपने जूते से मार देना चाहते हैं, पर वह याचना करती है, बचकर भाग निकलती है, और फिर एक आत्महंता जि़द के साथ दुबारा आप तक आ जाती है. आप फिर कोशिश करते हैं, और फिर हार जाते हैं. चीख़-चीख़कर उसे बददुआएं देते हैं, वह कान तक नहीं धरती. आप मीठी ज़बान में उससे शांतिवार्ता करते हैं: तुम सो जाओ, उसके बाद मैं भी सो जाऊंगा. आपको लगता है कि आपने उसे मना लिया है, बत्ती बुझाकर आप सो जाते हैं. भले उसने आपको ढेर सारा ख़ून चूस रखा हो, वह फिर अपनी झिन:झिन, घुं-घुं शुरू कर देती है, अगले हवाई हमले की घोषणा में. और आपको अनिद्रा के साथ एक दूसरी लड़ाई में झोंक देती है. एक बार फिर आप बत्ती जलाते हैं और कोई किताब पढ़ने लगते हैं, ताकि अनिद्रा और उससे, दोनों से लड़ा जा सके. वह खुले हुए पन्ने पर आकर बैठ जाती है और आप पुलक उठते हैं कि चलो, अब ये फंसी जाल में. आप ज़ोर-से किताब बंद करते हैं. मैंने उसे मार डाला... मैंने उसे मार डाला. जीत का जश्न मनाने के लिए जब आप किताब दुबारा खोलते हैं, तो पाते हैं, वहां न तो मच्छर है, और न ही शब्द. पन्ना पूरी तरह सफ़ेद और ख़ाली है. मेरी भाषा में हमेशा स्त्रीलिंगी अभिव्यक्ति पाने वाली मच्छर कोई रूपक नहीं है, बल्कि एक कीट है, जो आपके ख़ून से प्यार करता है. वह बीस मील दूर से भी आपके ख़ून को सूंघ सकती है, और उससे युद्धविराम का सिर्फ़ एक ही रास्ता है, आप अपना ब्लडग्रुप बदलवा लें.
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8 comments:
गीत भाई,
महमूद दरवेश को पहले पढ़ने का मौका नहीं मिला, मगर पिछले दो दिनों से ब्लोग्स पर ही काफ़ी कुछ पढ़ गया हूँ और अब यहाँ भी। उम्मीद है कि ब्लोगर्स उनको दो-चार दिनों में भुला नहीं देंगे।
mahmood jaise kavi ka mahtw aapsabon ke madhyam se jaan-boojh pa rha hun...shukriya
गीत तुम्हारे खिड़की - दरवाजे इस कदर खुले रहते हैं कि मुझे हैरानी होती है। इतने-से वक्त में इतना कुछ कैसे कर लेते हो ? मुझे तुमसे जलन होती है यार !अशाक पांडे के बाद तुम दूसरा चमत्कार हो मेरे लिए। महमूद दरवेश पर तुम्हारी पोस्ट कबाड़खाना पर भी देखी। उन्हें हम सबकी श्रद्धांजलि।
पहली बात तो आप टेम्प्लेट की सेटिंग ठीक कर लें। आपने खूबसूरत तो चुन लिया लेकिन ठीक तरह से व्यवस्थित नहीं किया।
अच्छा कवि वो है जो अधिकाधिक पढ़ें, दूसरों से प्रभावित हो। और ये सारे लक्षण आपमें हैं। बहुत बढ़िया प्रस्तुति
कल जब रफू कर दी जाएगी हर चीज
तब आखिर में खुल पड़ेंगे हमारे घाव
खून कभी बदल नहीं पाएगा
रात की कमीज का रंग...
महमूद दरवेश का जाना तमाम लोगो को बेघर कर दिए जाने के अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक षड्यंत्र के खिलाफ एक तीखे प्रतिरोध का खामोश हो जाना है। लेकिन कवि तो उसकी कविता में रहता है इसलिए वह ताकतवर स्वर हमेशा हमें उनकी कविता से सुनाई देता रहेगा, कुछ हिम्मत, कुछ भरोसा देता हुआ...
धन्यवाद गीत जी..महमूद दरवेश के बारे मे जानकारी देने के लिए..
महमूद दरवेश का जाना दुनिया के संघर्षशीलजन का बड़ा नुकसान है. तुमने उन्हें उचित तरीके से याद किया है. उनकी कवितायें हमारी मार्गदर्शक रही हैं, रहेंगी.
शैलेश जी, अगर यह भी लिख देते कि सेटिंग में आपको क्या गड़बड़ दिख रही है, तो दुरुस्त करने की कोशिश कर लेता. यहां तो ठीक दिख रहा है.
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