किसी कॉलेज के कैंपस में ऊपर से बरसती बारिश और नीचे से उछलते कीचड़ के बीच, प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठकर, छूट गई छुअन का ताप कंधे पर महसूस करते खिंचवाई तस्वीर को देखकर ख़ुश होने की कोशिश भी 'नो' के डिब्बे की तरफ़ ले जाती है और कॉलरा का फ्लोरेंतीनो दिखाई पड़ता है, जिसने अपने कंधे आज तक उचका रखे हैं, क्योंकि जब पहली बार वह छुअन उसके कंधे पर आकर बैठी थी, तो विस्मय, हर्ष और स्वीकार की कोमलता में उसके कंधों का वही पहला रिस्पॉन्स था। लगातार सफ़ेद होती मूंछ बताती है कि उम्र एक अंधेरी सुरंग है महज़. बेरंग, बदरंग।
या कि वान गॉग का आर्ल्स का कमरा देखते रहें, जहां पीले के बीच उभरा हुआ हरा भी बेनूरी में थककर पीला हो जाता है, जहां पलंग पर एक ख़ालीपन रहता है, गोकि यह उसी की पलंग हो और कमरे में एक ख़ालीपन विचरता है गोकि यह उसी का कमरा हो, और बग़ल की मेज़ पर बिसूरती दवा की बोतल जैसे जानती हो कि यह उसकी मेज़ नहीं है। दीवार पर लटकी तस्वीरें, कपड़े, तौलिए बारहा कोशिश करते हैं कि वे ख़ालीपन को निराश कर दें। पर एक तस्वीर क्या होती है ख़ालीपन को निराश करने वाली? एक मैं क्या होता हूं? भरे-भरे का अस्तित्व तो इसीलिए है कि ख़ालीपन कहीं ढंका-तुपा रह जाए।
एक बेपरवाह फुसफुसाहट औचक आती है, कहती है कि सच हमेशा बेआरामी से भरा होता है और सिर झुकाकर अंगूठे से फ़र्श को खोदते रहने की क्रिया हमेशा ख़ुशी से ख़ाली रहती है। पैरों को अपराधबोध होता है कि वे चलने तक से मना कर देते हैं, नाचना तो दूर की बात है।
वैसे, अपराधबोध से भरा होना भी एक तरह से ख़ालीपन ही होता है. क्या ये ख़ालीपन को निराश करने लायक़ हो सकता है?
जॉर्ज माइकल की केयरलेस व्हिस्पर.
5 comments:
सचित्र गद्य काव्य! अपने को तलाशता रहा इस में। मैं भी हूँ इस में कहीं।
खालीपन तो अपने आप में ही एक तलब की ललक से भरा होता है...अपराधबोध से भरते ही इस ललक, तलब और खालीपन का अस्तित्व कहाँ रहता है.....?!!
khlipan ki kuch nematen bhi hain...pr zaroori hai use chinhnna...naam dena...
मैंने देखा उसके सोने का कमरा
वहां दो दरवाज़े थे
एक से आता था जीवन
दूसरे से गुज़रता निकल जाता था
वे दोनों कुर्सियां अन्तत: खाली रहीं
anita verma ki kavita ka ye hissa aapne kamre ke liye geet jee.
Bahut khub
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